Thu. Mar 28th, 2024
himalini-sahitya

स्त्री, सिर्फ स्त्री है, शहरी या ग्रामीण नहीं आज भी उसके छोटे से मन में बसता है मिट्टी का घरौंदा

वंदना गुप्ता



स्त्री,
सिर्फ स्त्री है,
शहरी या ग्रामीण नहीं
आज भी उसके छोटे से मन में
बसता है
मिट्टी का घरौंदा
जिसमें आस का दीपक
दहलीज पर जला
करती है वह अपने
सपनों का इन्तजार
आज भी उसके मन में बसी है
कागज की कश्ती,
नदी का किनारा, तालाब, पोखर
, गुड्डे, गुड़ियों की चाह,
बाजारीकरण के वाबजूद भी
जिन्हें खोजती है, वह
देश विदेश की जमीन पर,
आज भी बसा है,
उसकी जिह्वा पर
मक्के की रोटी सरसों का साग
आम की चटनी का देशी स्वाद
जिसे खोजने निकल जाती है वह
दूर पांच सितारा होटलों में
आज भी बसी है उसमें
, नवीन परिधानों के बीच,
विशुद्ध भारतीय आत्मा
जिसे तुम नहीं समझ पाएं
पारखी नजरों के
वाबजूद भी।



About Author

यह भी पढें   संघ पर जंग क्यों ? : अजय कुमार झा
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: