Sat. Nov 8th, 2025
English मे देखने के लिए क्लिक करें

काठमांडू में हिंदी का विरोध करनेवाले तराई पहुँचते ही हिन्दी में भाषण करना शुरु करते हैंः अध्यक्ष यादव

काठमांडू, ११ जनवरी । पूर्व उपप्रधानमन्त्री एवं समाजवादी पार्टी नेपाल के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव ने कहा है कि नेपाल में हिन्दी का विरोध सिर्फ दिखावें के लिए है । उनका मानना है कि जो लोग काठमांडू में हिन्दी भाषा के विरुद्ध बात करते हैं, वही लोग तराई–मधेश या बोर्डर पर पहुँचते ही हिन्दी बोलना शुरु करते हैं । हिन्दी मंच नेपाल द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर शनिबार काठमांडू में बोलते हुए उन्होंने ऐसा कहा है ।
विश्व हिन्दी दिवस और हिंदी मंच नेपाल की स्थापना दिवस के अवसर पर हिन्दी मंच नेपाल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में विशेष अतिथि एवं वक्ता के रुप में बोलते हुए नेता यादव ने कहा– ‘हिन्दी भाषा नेपाल के लिए पुरानी भाषा नहीं है । पृथ्वीनारायण शाह ने नेपाल एकीकरण करते वक्त जो लालमोहर प्रयोग किया, उसमें हिन्दी भाष ही थी, इसीलिए नेपाल राज्य एकीकरण के साथ–साथ यहां हिन्दी का प्रवेश हुआ । लेकिन बाद में नयी शिक्षा नीति के नाम में रेडियो नेपाल, समाचारपत्र, स्कूल और कॉलेजों से हिन्दी को हटाया गया ।’

यह भी पढें   आज और कल बच्चों की दी जा रही विटामिन ए


उनका मानना है कि नेपाल में ९५ प्रतिशत जनता हिंदी भाषा समझते हैं, लेकिन यहां हिन्दी सरकारी कामकाज की भाषा ना होना दुर्भाग्य है । उन्होंने आगे कहा– ‘हिन्दी को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने के लिए लड़ाई जारी है ।’
नेता यादव ने कहा है कि हिन्दी को इन्कार करने से सिर्फ तराई–मधेश में रहनेवालों को ही नहीं, पहाड़ में रहनेवालों को भी नुक्सान है । उन्होंने आगे कहा– ‘यहां के कई लोग हिन्दी को भारत की भाषा कहते हैं, लेकिन यह भारत की भाषा नहीं, विश्व की भाषा है ।’ नेता यादव ने कहा है कि राज्य शक्ति की आड़ में अगर कोई व्यक्ति किसी भी भाषा और संस्कृति को नष्ट करता है तो उसको सशक्त प्रतिकार होना चाहिए । उनका मानना है कि भाषा और साहित्य लोगों को जोड़ने की काम करती है, लेकिन राजनीति तोड़ने की । अधिक से अधिक भाषा की ज्ञान पर जोर देते हुए नेता यादव ने कहा कि भाषा के नाम पर राजनीति करनेवालों से सतर्क रहना चाहिए ।

यह भी पढें   मैथिली विकास कोष के अध्यक्ष सहित कई लोग सम्मानित


इसीतरह कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए हिन्दी मंच नेपाल के अध्यक्ष मंगल प्रसाद गुप्ता ने नेपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन करने की वजह बताया । उनका कहना है कि आज हिन्दी विश्व भाषा बनती जा रही है, इसमें विभिन्न देशों की भूमिका महत्वपूर्ण है, जहां नेपाल का भी योगदान रहे, इसी उद्देश्य के साथ नेपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजन की गई है । उन्होंने कहा– ‘हुम्ला–जुम्ला में हरनेवाले अधिकांश लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं, लेकिन हिन्दी बोलते हैं । उन लोगों को हिन्दी भाषा में अपनी भावना अन्तर्राष्ट्रीय करने के लिए कोई भी दिक्कत नहीं है ।’ उन्होंने कहा है कि नेपाल से बाहर निकलते ही लोगों को हिन्दी भाषा की जरुरत पड़ती है ।
कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि तथा पूर्व प्रधानमन्त्री लोकेन्द्रबहादुर चन्द ने कहा कि नेपाली और हिन्दी में अधिक समानता है, इसीलिए हिन्दी भाषा बोलनेवाले लोग नेपाली समझते हैं तो नेपाली भाषीवाले लोग हिन्दी समझते हैं । हिन्दी भाषा–साहित्य के साथ अपना पुराना संबंध पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नेपाल में भी हिन्दी और नेपाली दोनों भाषा साथ–साथ आगे बढ़ना चाहिए । नेपाल में हिन्दी भाषा विरोधी गतिविधि करनेवालों को संकेत करते हुए पूर्व प्रधानमन्त्री चन्द जी ने कहा कि हिन्दी बोलने से राष्ट्रवाद खतरे में पड़नेवाला नहीं है ।


इसीतरह कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए प्रदेश नं. २ के पूर्वप्रमुख रत्नेश्वरलाल कायस्थ ने कहा कि नेपाल में शिक्षा–दीक्षा कि शुरुआत ही हिन्दी से हुई थी, लेकिन बाद में इसको हटा दिया गया, जो विल्कुल गलत है । कार्यक्रम में अखिल भारत विश्व हिन्दी समिति के अध्यक्ष डा. दाउजी गुप्ता, त्रिभुवन विश्व विद्यालय हिन्दी विभाग के प्रमुख डा. संजीता वर्मा, नेपाल स्थित भारतीय राजदूतावास कार्यवाहक राजदूत डा. अजय कुमार, डा. उषा ठाकुर, लगायत विभिन्न वक्ताओं ने हिन्दी–भाषा सहित्य के संबंध मं अपना–अपना विचार प्रस्तुत किया । कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमन्त्री लोकेन्द्रबहादुर चन्द लगायत विभिन्न देशों से आए हिन्दी साहित्यकारों को सम्मानित भी की गई ।

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *