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गार्गी याज्ञवल्क्य : अजयकुमार झा

गार्गी याज्ञवल्क्य
याज्ञवल्क्य और गार्गी के, बीच बढ़ा संवाद।
याज्ञवल्क्य को गार्गी के, प्रश्न से बढ़ा संताप।।
प्रश्न से बढ़ा संताप, कि मुनिवर उत्तर दे दो।।।
करते क्यों अहंकार, प्यार से हमें समझा दो।।।।
देख जगत मुसकाय, मुनिवर काँपन लागे।।।।।
लाल बबूला आँख, गार्गी को श्रापन लागे।।।।।। 1



सात खण्ड इस धरती का, क्या है यहाँ आधार?
शेषनाग और सूर्य का, ब्रह्म का कहो आधार।।
ब्रह्म का कहो आधार, मुनि ब्रह्मज्ञानी प्यारे।।।
अथवा करो स्वीकार, आज गार्गी से हारे।।।।
भड़ी सभा के बीच, याज्ञवल्क्य क्रोधित हो गए।।।।।
गार्गी को कह नीच, अहम् से मोहित हो गए।।।।।।  2

गार्गी यह अति प्रश्न है, सुनलो ध्यान लागाय।
धर से शर कर दू अलग, मुनि रहे आँख दिखाय।।
मुनि रहे आँख दिखाय, कि ऋषिगण काँपन लग गए।।।
महिला पढ़ने न पाय, भाग्य इनके अव लद गए।।।।
फ़ैल गए सन्देस, दसो दिस इस भुवन में।।।।।
नारी हुई निष्तेज, सनातन के उपवन में।।।।।। 3

नारी शिक्षा बंद करो, सुनो आचार्य गन आज।
वरना उस गुरु आश्रम में, लगवा दूंगा आग।।
लगवा दूंगा आग कि गुरुकुल रहने न दूंगा।।।
गुरुकुल से कर दूर नारी को पढ़ने न दूंगा।।।।
हुआ हिन्दू का नास, नारी हुई दलित बेचारी।।।।।
आधी आवादी ह्रास, नारी पर पलित लाचारी।।।।।।  4

नारी के सौन्दर्य का, यहीं हुआ मटिया मेट।
शिक्षा सीप से वन्चित कर, कर दिया इन्हें अचेत।।
कर दिया इन्हें अचेत, कि घर घर रोती नारी।।।
पुरुष के हाथ का खेल, बन गई आज बेचारी।।।।
कह अजय कविराय, देख ममता की मूरत।।।।।
सह दुःख कष्ट हजार, पुत्र की प्यारी सूरत।।।।।।  5

उपनिषद के काल खण्ड, रहा ज्ञान का श्रोत।
नारी को अन्धा किया, याज्ञवल्क्य का क्रोध।।
याज्ञवल्क्य का क्रोध, कि नारी ज्ञान से वंचित।
राजन को हुआ क्षोभ, कार्य यह लगता अनुचित।।
कहे अजय कविराय, नारी अब बस्तु बन गई।।।
घर में शोभा पाय, पुरुष के अनुचर रह गई।।।।
फिरभी रहे हर्षाय, मती गई इनकी मारी।।।।।
लाख कष्ट दुःख पाय, पति सेवा में प्यारी।।।।।। 6



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