Tue. Mar 18th, 2025

सांसद अपहरण की सेंध व पर्दे के पीछे की राजनीतिक खेल को कुरेदना बेहद जरुरी है : कैलाश महतो

कैलाश महतो, परासी | बडौदा महाराज संभाराव गायकवाड ने डा. भीमराव अम्बेडकर को उनके अध्ययन पश्चात बडौदा राज में नौकरी करने के लिए कहा था । अम्बेडकर की पढाई का सारा खर्च महाराज द्वारा व्यवस्था किए जाने के कारण वे अपने वचन के अनुसार वहाँ काम करने गये । अपने गाँव से बडौदा पहुँचे अम्बेडकर को नीच जाति के होने के कारण बडौदा में किसी होटल में नहीं ठहरने दिया गया । जिसने भी उनका परिचय जाना, सारे हिन्दु तथा मुस्लिम के ठेकेदारों ने उनसे दूरी बनाकर ही बाहर जाने का रास्ता बताया ।
बडौदा महाराज ने अम्बेडकर को अपने राज्य का वित्त मन्त्री बनने के लिए आमन्त्रित किया था । मगर महाराज के मंत्रीमंडल में रहे तथाकथित उच्च वर्ण व जात के लोगों ने अम्बेडकर नीच जाति के होने के कारण महाराज द्वारा मन्त्रीमण्डल में रखे जाने के कार्य को विरोध किया । बाध्य होकर महाराज को उन्हें मिलिट्री के सचिव पद पर नियुक्त करना पडा ।
मिलिट्री के सचिव रहे अम्बेडकर एक पारसी आवास गृह में ठहरे होने की खबर पाकर पारसियों के एक हुडदङ्ग दल हाथों में लाठियाँ लेकर अम्बेडकर के पास आकर पूछा –
“कौन हो तुम ?”
“हिन्दु हूँ मैं ।” अम्बेडकर ने कहा ।
“तुम कौन हो, यह हम सब जानते हैं । तुमने हमारे समाज के आवास गृह को भ्रष्ट किया है । तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम यहाँ से जल्द से जल्द चलते बनो ।” भीड ने कहा ।
“आठ घण्टे बाद मैं यहाँ से चला जाऊँगा ।” अम्बेडकर ने डरते हुए बडी कठिनाई से कहा ।
अम्बेडकर ने महाराज को यह बात सुनाने के बाद महाराज ने अपने दीवान से उनका उचित व्यवस्था करने की जिम्मेवारी देकर मैसूर चले गये । मगर दीवान ने कोई व्यवस्था करने के बजाय उन्हें काफी बेइज्जत की । नगर में अम्बेडकर को किसी भी हिन्दु या मुस्लिम ने आश्रय नहीं दी । अम्बेडकर  खुले आकाश तले बिना कोई छत भूखे प्यासे फफक फफककर रो पडे । उन पर किसी की दया नहीं उभरी । उन्हें जानवर जितनी भी सहानुभूति लोगों से नहीं मिली ।
गत मंगल/बुधबार के दिन पूर्व स्वास्थ्य राज्यमन्त्री डा. सुरेन्द्र यादव के अपहरण को लेकर अपहरण कार्य में संलग्न सांसद द्वय महेश बस्नेत तथा किसान श्रेष्ठ के साथ प्रधानमन्त्री ओली के शब्दजाल में पडकर अख्तियार में आयुक्त बनने के लालच में अपराध को अंजाम देने बाले पूर्व प्रहरी महानिरीक्षक सर्वेन्द्र खनाल विरुद्ध पीडित डा. यादव व पक्ष के पार्टी नेतृत्व द्वारा निवेदित निवेदन काठमाडौं प्रहरी द्वारा अस्वीकार होना कानुन के रखवाले द्वारा की गई ज्यादती ही नहीं, राज्य आतंक का नङ्गा तस्वीर है । जो काठमाडौं प्रहरी रवि लामिछाने को भरतपुर के प्रहरी हिरासत में रखकर काठमाडौं में मुद्दा दर्ता करती है, वही प्रहरी महोत्तरी और काठमाडौं दोनों जिलों से सम्बन्धित मुद्दा के उजुरी को काठमाडौं में स्वीकार क्यों नहीं कर सकती ? आश्चर्य तो तब और बढ जाती है जब दोषी के विरुद्ध खडे होकर न्यायालय को न्याय दिलाने में सहयोग करने बाला सरकारी वकिल कार्यालय ने समेत अपहरण सम्बन्धी मुद्दा को दर्ता करने से इंकार करता है । राज्य जब अपने पूर्व मन्त्री और सांसद के साथ इतना घिनौना हरकत कर सकता है तो समान्य लोगों की स्थिति क्या होगी, यह विचार करने बाली बात है । इस हालात को देखते हुए पून: लोग यह क्यों नहीं सोंचेंगे कि इस राज्य का औचित्य क्या है ? क्यों लोग उस राज्य का नागरिक कहलायेगा जहाँ वो और उसका वजूद सुरक्षित नहीं है ।
एक सांसद तक से अपहरण शैली में व्यवहार करना क्या सिर्फ केपी चरित्र है ? क्या यह केवल सर्वेन्द्र चिन्तन या महेश किसान प्रवृत्ति है ? नहीं, यह राज्य चरित्र है । यह शासकीय प्रवृत्ति है । अगर यह केवल ओली चरित्र होता या महेश-किसान-सर्वेन्द्र प्रवृत्ति भर होता तो काठमाडौं प्रहरी उससे अलग होता । महोत्तरी प्रहरी प्रशासन अपहरण में संलग्न न होता । निवेदन दर्ता के लिए महोत्तरी का प्रहरी उपरीक्षक बकवास न करता । यह सब नश्लीय धर्म के कारण होता है ।
हमने पढा है कि शक्ति प्राप्ति के लिए किए जाने बाले संघर्ष को ही राजनीति कहा जाता है । कोई भी राह अख्तियार करके अगर शक्ति प्राप्त करना राजनीति है तो राजनीति से बडा जीवननीति होता है और उसे प्राप्त करने के लिए अपनाये जाने बाले चोरी, डकैती, हत्या, अपहरण जैसे कृत्याों को अपराध क्यों माना जाना चाहिए ? बैसे अपराधियों के ही लिए जेल और सजा घर क्यों ?
राजनीति से शक्ति निर्माण होता है । वह शक्ति राज्य संचालन के लिए होता है । मगर जब वह शक्ति राज्य और जनता के मौलिक आधारों के विपरीत स्थापित होने लगे तो जनता को वैसे राज्य से सम्बन्ध तोड लेना चाहिए । डा. भीमराव अम्बेडकर ने वही किया । वे हिन्दु घर के हिन्दु कोख से जन्मे । हिन्दुत्व के लिए अपने को जागृत करना चाहा । मगर वही हिन्दु धर्म, जिसके लिए वो जीना चाहे, ने उन्हें हिन्दु बनने में सहयोग नहीं किया । उनके साथ उसी धर्म में अन्याय और अत्याचार हुए । वह धर्म उनके लिए नासूर बनता जा रहा था । अन्ततः उन्होंने बौद्ध की शरण ली जहाँ उन्हें अपार आनन्द और शकुन मिला । जीवन को गति मिला और मानव होने का एहशास हुआ । वो जन्म से हिन्दु बने, मगर बौद्ध बनकर शान्ति से अपना इहलीला समाप्त किये । मार्क्स और अल्बर्ट आइन्स्टाइन जन्मे जर्मन होकर । मगर जर्मनी ने उन्हें जब पहचाना नहीं तो बेलायती और अमेरिकन होकर प्राण निकाले । वैचारिक और भौतिक ताकतों का राष्ट्र बेलायत और अमरिका बने ।
केपी ओली के षड्यन्त्र को अरिस्टोटल के भाषा में hamartia (हमरसिआ) कहते हैं जिसका अर्थ होता है : एक छोटा सा गल्ती जिसके भयंकर परिणाम के बारे में गलतीकारक को आभासतक नहीं होता है । पर जब वह गलत स्थान को ग्रहण करता है, एक अकल्पनीय विष्फोटक परिणाम देता है । वही हुआ है प्रधानमन्त्री ओली के द्वारा जो अब उनके नियंत्रण से बाहर प्रायः है । लम्बे अरसे से ताकझाँक में रहे नेकपा के अन्य देशभक्त नेतायें अब उसका मजा लेकर अपने अपने रोटी सेकने के फिराक में लग चुके हैं । वे सारे ओली इत्तर के पार्टी प्रेमी नेता दलिल यह दे रहे हैं कि ओली द्वारा लाये गये अध्यादेश और उसके विष्फोट से पार्टी, सरकार और देश की बदनामी हुई है । राजनीतिक संस्कार के नाम पर अब वे सारे लोग ओली जी का राजिनामा मांग रहे हैं । जबकि अगर ओली जी सफल हो जाते तो निश्चित रुप से मधेश बेस्ड पार्टियों के फूट पर वे सब ठहाके लगाते । हकिकत तो यही है कि राजनीतिक इमान किसी के पास नहीं है । यह उनकी राजनीतिक बेइमानी और छीछलेदर राजनीतिक महत्वाकांक्षीय प्रवृत्ति है जो अपने पार्टी नेता और प्रधानमन्त्री के गलती व असफलता को अपना सुनहरा किस्मत मान रहे हैं । किसी ने देशप्रेम, राजनीति सुधार या बदनामी के कारण नहीं, अपितु पदीय अभिलाषा व भूख को मिटाने का अवसर मान रहे हैं । उनके लिए अगर पार्टी की साख, नेताओं की इज्जत, अपराध की खात्मा और देश की प्रतिष्ठा की बात होती तो नेकपा के सारे नेता राजनीतिक धर्म और मर्यादा को बचाने हेतु अपने पार्टी पंक्ति से बाहर बाले किसी अन्य पार्टी को सरकार बनाने के लिए अनुरोध करते और सरकार से हटकर अपने पार्टी में सुधार लाने के लिए दो सालतक आन्तरिक और बाह्य मुहिम चलाते । लेकिन एेसा है नहीं । सबकी मानसिकता एक है ।
दूसरी तरफ तो और भी गंभीर घोपलेबाजी की रहस्यमय खेल दिख रही है । डा. सुरेन्द्र यादव ने जो बयान दिया है, उसपर मनोवैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान होना बेहद जरुरी है । यह तो स्पष्ट है कि केपी ओली से लेकर सर्वेन्द्र खनालतक ने अपराध किया है । उसकी सजा तो उन्हें हर हाल में मिलनी चाहिए । मगर पर्दे के पिछे जो खेल हुई थी, उसका रहस्योद्घाटन होना बेहद जरुरी है । दिखने में तो यही लग रहा है कि तत्कालीन समाजवादी पार्टी के नेता अपने पार्टी और पार्टी नेतृत्व के प्रति बफादार हैं । लेकिन बिते कुछ दिनों के तर्क वितर्क और स्पष्टीकरणों के तौर तरीकों से मामला कुछ और भी होने का संकेत मिल रहे हैं । सांसद अपहरण की सेंध व पर्दे पीछे के खेल को कुरेदना भी बेहद जरुरी है ।
पार्टी फूटना कोई आसमान से तारे तोडने बाली बात नहीं है । दुनियाँ की हर पार्टी किसी न किसी विषय पर कोई न कोई मोड पर टुटने फुटने से लेकर जुडने तक की इतिहास और घटना विद्यमान है । विचार के कसौटियों पर पार्टी फुट्ने का इतिहास सर्वकालिक है । मगर सत्ता मोह, पद और पैसों के लिए पार्टी फोडना गंभीर अपराध है । एेसे अपराध करने बालों को राजनीतिक मैदान से हमेशा के लिए बाहर निकाल देने की प्रावधान बनना चाहिए । एेसे लोगों से केवल राजनीतिक  क्षेत्र को ही नहीं, समाज, देश और पूरे मानव समाज को नोक्सान होता है ।
तपसिल में जो भी हों, मगर पूर्व प्रधानमन्त्री, पूर्व उपप्रधानमन्त्री, मन्त्री, पार्टी के वरिष्ठ नेता लगायत के अनुरोध पर भी अपहरण जैसे गंभीर अपराध के दोषियों के उपर राज्य और शान्ति सुरक्षा की जिम्मेवारी निर्वाह करने बाली प्रहरी प्रशासन द्वारा उजुरी अस्वीकार होना यह स्पष्ट करता है कि नेपाली राज्य और प्रशासन के नजर में आज भी मधेशी जनता और उसके प्रतिनिधित्व करने बाले नेताओं की औकात उसी भीमराव अम्बेडकर के तरह तो नहीं जो हिन्दुत्व के परिधि में ही हिन्दु द्वारा ही अपहेलित, प्रताडित और बहिस्कृत होना पडा था ?

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