Tue. Apr 29th, 2025
himalini-sahitya

तुम सृष्टि हो : अंशु कुमारी झा

तुम सृष्टि हो
बागों में यूं स्तब्ध खड़ी,
निश्चल प्रकृति को देख रही,
जैसे खुद को उसमें ढूंढ रही,
कहा जाता है,
सच्ची श्रद्धा से अगर,
प्रभु को ढूंढो,
तो वह मिल जाते हैं ।
पर खुद को कब ढूंढ पाओगी ?
क्योंकि तुम हो क्या,
तुम्हें स्वयं नहीं पता,
तेरा चरित्र बंटा है,
कई हिस्सों में,
कभी बेटी, कभी बहन,
कभी प्रेयसी, कभी पत्नी,
कभी बहू तो कभी मां,
आदि विभिन्न किरदार हैं तेरे ।
तो बता !
कैसे ढूंढ पाओगी खुद को ?
अगर तुम सारे किरदारों को,
एकत्रित करोगी तो,
तुझे मिलेगी एक औरत,
जिसे यह समाज ने,
सदियों से किया है,
अवहेलित, प्रताडि़त और अपमानित ।
इसलिये हे नारी !
अब तुम जागो,
अपनी प्रतिभा को निखारो,
छू लो आसमां को,
बता दो उन समाज को,
तुम अवहेलना की पात्र नहीं,
तुम सृष्टि हो,
तुम शक्ति हो ।

अंशु झा, काठमांडू।

 

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *