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  डा. मंजु श्रेष्ठ:सामान्य अर्थ में ज्ञान प्राप्त करना शिक्षा है जो जीवनपर्यन्त निरन्तर रूप में चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा के सम्वन्ध में विभिन्न विचारकों ने अपनी-अपनी अभिव्यक्तियाँ दी हैं। साक्षरता को विकास की चाभी माना गया है। साक्षरता विशेषज्ञा मारिया लर्ूइस के अनुसार उन्नति का शक्तिशाली आधार शिक्षा है। कोई भी कला सीखने का मूल आधार शिक्षा है। अब सवाल उठता है कि क्या है साक्षरता – निरक्षर लोगों को पढÞने-लिखने लायक बनाना ही साक्षरता है। ऐसी शिक्षा आठ साल से चौदह साल तक के बच्चों और पन्द्रह साल तक की निरक्षर महिला तथा पुरुषों को उनके अनुकूल स्थान और समय में दी जाती है। अक्षर पहचान कराने के बाद लिखने पढÞने तथा अन्य सम्बन्धित विषय में बातचीत कर जन-चेतना की अभिवृद्धि करना, साथ ही मानवीय गुणों का विकास करना और आनेवाली समस्याओं का समाधान तथा निर्ण्र्ाालेने में सक्षम करना इसका उद्देश्य है।



womenpower
महिला साक्षरता आज की आवश्यकता

प|mांसीसी क्रान्ति से प्रभावित प|mंासीसी महिला ओलाम्दे द गोउसने १७९१ से महिला अधिकार की शुरुआत की। १८५३ में अमेरिकन महिला सोजोनोर टुथ ने महिला अधिकार के सम्बन्ध में बहस शुरू की। १८६५ मे एमिल डेविस और लिज ग्यारेट ने इंग्लैंड की प्रतिनिधिसभा में जाँन स्टर्ुअर्ट मिल को एक विज्ञप्ति दी, जिसमें महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, समान अधिकार, मताधिकार और पारिवारिक सम्मान के अधिकार की जोडÞदार माँग की गई थी। उपर्युक्त अधिकारों के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया। इसके लिए विभिन्न विरोध के कार्यक्रम आयोजित किए गए एवं आन्दोलन किया गया। वषार्ंर्ेेे प्रयास के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने महिला-अधिकार के सम्बन्ध में एक आयोग गठन किया। सन् १९७९ में महासन्धि प्रस्ताव पारित और अनुमोदन कर १९८० में इसकी घोषणा की गयी। इस महासन्धि की धारा दस में महिलाओं को शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों के बराबर अधिकार होने का उल्लेख है। पर्ूव प्राथमिक शिक्षा, सामान्य शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा, पेशागत उच्च प्राविधिक शिक्षा के साथ हरेक प्रकार के शैक्षिक संस्थान से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित किया गया। छात्रवृत्ति, प्रौढ और कार्यमूलक साक्षरता कार्यक्रम के साथ ही खेलकूद, शारीरिक शिक्षा में भाग लेन का अवसर प्रदान करने की बात उल्लेखित की गयी। नेपाल में महिला साक्षरता को उत्पे्ररित करने के लिए विभिन्न जिलों में विभिन्न प्रकार के अपाङ्ग, दलित, जन-जाति, द्वन्द्व पीडितों के लिए छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया है। निरक्षर को साक्षर बनाने के लिए विविध कार्यक्रम सञ्चालन किया जाता है। फिर भी देश पर्ूण्ातः साक्षर नहीं बन पाया। यूनेस्को के मापदण्ड अनुसार पन्द्रह साल से ऊपर के लोगों को कम से कम ९६ प्रतिशत लोगों को लिखने-पढÞने लायक बनाया जाय तब हीे निरक्षरतामुक्त देश घोषित किया जा सकता है।
यह सच है कि लाख प्रयासों के बावजूद राष्ट्र को निरक्षरता मुक्त नहीं बनाया जा सका फिर भी यह कहा जा सकता है कि तुलनात्मक रूप से स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। वि. स. २००७ मे २.० प्रतिशत, २००८ मे पुरुष ९.५% और महिला ०.७% कुल ५.३ प्रतिशत, २०१८ में पुरुष १६.३% और महिला १.८% कुल ८.९ प्रतिशत, २०२८ में पुरुष २३.६% और महिला ३.९% कुल १४ प्रतिशत, २०३८ में पुरुष ३४.४% और महिला १२% कुल २३.४ प्रतिशत, २०४३ मे पुरुष ५१.८% और महिला १८% कुल ३९.६ प्रतिशत, २०४८ में पुरुष ५४.५% और महिला २५% कुल ३९.६ प्रतिशत, २०५४ मे पुरुष ६७.९% और महिला ३७.८% कुल ५२.६ प्रतिशत, २०५८ में पुरुष ६५.१% और महिला ४२.५% कुल ५३.७ प्रतिशत हैं, २०६८ में पुरुष ७५.१ और महिला ५७.४ कुल ६५.९ प्रतिशत है।
इस विषय को आधार बनाकर अब तक चार विश्व-महिला-सम्मेलन हो चुके हैं। प्रथम सम्मेलन १९७५ मे मेक्सिको में सम्पन्न हुआ जिसमें साक्षरता और शिक्षा प्रतिशत में वृद्धि के साथ-साथ अन्य बिन्दुओं को भी समाविष्ट किया गया था। द्वितीय सम्मेलन डेनमार्क के कोपेनहेगन में १९८० में हुआ था। महिलाओं को सभी स्तर की शिक्षा और प्रशिक्षण पाने के समान अवसर के साथ ही महिला अधिकारों पर विचार-विमर्श करना इसका उद्देश्य था। केन्या के नैरोवी में १९८५ मे समानता के आधार पर अवसर प्रदान करना और पर्ूववर्ती निर्ण्र्ााें का कार्यान्वयन इसका रणनीतिक आधार था। चौथा सम्मेलन १९९५ में चीन की बेइजिङ्ग में सम्पन्न हुआ, जिसमें विगत के आन्दोलनों का सिंहावलोकन किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने २००३-२०१२ को साक्षरता दशक घोषित किया जिसका मूल नारा साक्षरता और सशक्तीकरण था।
१९८० मे घोषित महासन्धि के प्रति प्रतिबद्धता जतलाते हुए तत्कालीन सरकार ने १९९१ में इस पर हस्ताक्षर किया। नेपाल अधिराज्य के संविधान २०४७, भाग ४ में महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की विशेष व्यवस्था कर राष्ट्रिय विकास में उसे आधिकारिक सहभागी बनाने की नीति राज्य ने अवलम्बन किया। महिला शिक्षा को प्रोत्साहन करने के उद्देश्य से अधिराज्य के १८ जिलांे मे सुगम क्षेत्रों में रु. ८५०।- और दर्ुगम क्षेत्र में रु.१०५०।- छात्रवृत्ति प्रदान करने का उल्लेख किया है। -कान्तिपुर २०५६, आषाढ २८)। २०६५-२०६६ की बजट में निरक्षरता उन्मूलन और साक्षरता अभियान चलाने का निर्ण्र्ाालिया गया। २०६६ – २०६७ में “साक्षर बनें, क्षमता बढाएँ” का नारा दिया गया।
सरकार के इस प्रयास को सकारात्मक माना जा सकता है। राष्ट्र समुन्नति के लिए तैयार आठ योजनाओं में महिलाओं को पुरुषों के समान शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर प्रदान करने के अभ्रि्राय से बहुत प्रयास हुआ फिर भी महिला साक्षरता के तथ्याङ्क में अपेक्षित बढÞोतरी नहीं हो पायी। वर्तमान में महिला साक्षरता की संख्या छः साल से ऊपर ५१% है। यह माना जा सकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में स्थिति में सुधार है। वर्तमान त्रिवषर्ीय योजना में छ साल से ऊपर साक्षरता ७६% और १५% साल से ऊपर ६०% पहुँचाने का लक्ष्य है।
सवाल उठता है कि महिला निरक्षर क्यों होती हैं – विकासोन्मुख राष्ट्र में गरीबी, सम्पत्ति पर पितृसत्तात्मक अधिकार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक विकृति, अन्धविश्वास, आर्थिक आदि कारणों से बालिकाएँ विद्यालिय में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पातीं। निरक्षरता के कारण विकास की गति में अवरोध उत्पन्न होता है। साक्षरता अभियान सक्रिय बनाने, महिलाओं को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व मेें १९९० को अन्तर्रर्ाा्रीय साक्षरता वर्षऔर ८ सितम्बर को साक्षरता दिवस मनाने की घोषणा की है। तत्कालीन श्री ५ सरकारने सन् २००० से “सबके लिए शिक्षा” नीति कार्यान्वयन के लिए जि.शि.अ. की अगुवाई में स्थानीय आवश्यकता अनुरूप शिक्षा योजना निर्माण कार्य शुरू हुआ। महिलाओं की नयी भूमिका, नया शिल्प विकास, आत्मनिर्भरता आदि पुरुषों को नहीं पचता। उसका परम्परागत रूप ही पुरुषों को अधिक पसन्द है। स्वयं महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी, पुरुषों के प्रति आवश्यकता से ज्यादा नम्रता, शर्मिली प्रवृत्ति के कारण महिला निरक्षता की दर अधिक है।
महिलाओं में निरक्षरता समाप्त करने के लिए आवश्यक है मातृभाषा में शिक्षा, शिक्षिका व्यवस्था, सहयोगी कार्यकर्त्तर्ााा चयन, सहभागिता की आवश्यकता, अध्ययन सामग्री, स्थान और समय की व्यवस्था, राष्ट्रीय, अन्तर्रर्ाा्रीय गैरसरकारी संस्थाओं को साक्षरता कार्यक्रम में संलग्न कराना, शिल्प को व्यवहार में लाना, निरन्तर शिक्षा की व्यवस्था, साक्षर बच्चों को विद्यालय में दाखिला की व्यवस्था आदि। देश की सम्पर्ूण्ा जनसंख्या का अधिकाँश भाग अज्ञानता, अन्धविश्वास, परम्परागत रुढिवादिता और भाग्यवादी धारणा पर निर्भर होने की प्रवृत्ति के कारण महिलाएँ निरक्षर हैं। निरक्षरता के कारण उन्हें शोषण का शिकार होना पडÞता है। विगत की तुलना में वर्त्तमान में साक्षरता दर बढÞने के बावजूद वर्त्तमान समय में जनसंख्या वृद्धि के कारण यह उपलब्धि नगण्य लगती है।
उपर्युक्त शिक्षा नीति को मर्ूत रूप प्रदान करनेके लिए राष्ट्रीय, जिला , नगर, गाँव और कक्षा व्यवस्थापन समिति, केन्द्र से वार्ड तक की साक्षरता समिति, बाल-क्लब, समावेशी समिति आदि को मिलकर पर्ूण्ा जिम्मेवारी निभाना जरूरी है। विकासोन्मुख राष्ट्र में सम्पन्न परिवार की महिलाएँ शिक्षित दिखती हैं। लेकिन यही पर्याप्त नहीं है। सिर्फहस्ताक्षर के ज्ञान से वह अपनी समस्याओं से नहीं जूझ सकती। उन्हें सम्यक् ज्ञान प्रदान कर जीवन और जगत के वृहत्तर क्षेत्र में उसके प्रयोग को प्रोत्साहित करना होगा। एक शिक्षित महिला परिवार में एक अच्छा नागरिक का निर्माण कर सकती है और पूरे परिवार को साक्षर बना सकती है। तर्सथ महिला साक्षरता आज की आवश्यकता है। त्र



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