भगौडे नेता और मधेश का विकास व समृद्धि ….? : कैलाश महतो
कैलाश महतो, पराशी | मेरी परिवार कहती हैं, मधेश में तो विकास और समृद्धि धडल्ले से हो रहा है । मगर मधेशियों का विकास कहां है ? क्यों नहीं ? अकल्पनीय रुप में मधेश में भौतिक विकास हो रही है । वह करना भी सारे सरकारों की आवश्यकता, बाध्यता और राजनीतिक आकांक्षा भी है । मगर सवाल यह है कि मधेश में हो रहे उन भौतिक विकासों का उद्देश्य, मापदण्ड, भलाई, उपयोगिता और मालिकाना किसका है ?
लोग अमेरिका, यूरोप और अरब देशों के विकासों को ज्यादातर देखकर आये हैं । कुछ लोग भोगकर भी आये हैं । तो क्या अमेरिका, यूरोप और अरब राष्ट्रों के विकास को अपना विकास मान लेते हैं ? नहीं, कतई नहीं । क्योंकि वे सारे भौतिक विकास उन देशों के सरकार और वहाँ के जनता के लिए हैं, किसी विदेशी कामदार या कर्मचारियों के लिए नहीं । हाँ, इतना जरुर है कि उन सडकों पर कोई विदेशी कामदार चल लेते हैं, चमक दमक को देखकर आनन्द ले लेते हैं । मगर याद रहें कि उसके भी ट्याक्स तिरने पडते हैं ।
कुछ छली मधेशी नेता मधेश में विकास और समृद्धि लाने, दश लाख युवाओं को रोजगार देने, जनता राज कायम करने, सामुदायिक स्वराज लाने, आदि इत्यादि की बात जनता में पडोस रहे हैं । उनके पिछे आंखों में पट्टे बंधे कुछ इमानदार और भोलेभाले युवा भी लगे हैं । धुर्त नेतृत्व के साथ में वक्त के पारखी कुछ फरेबी मधेश भक्त अरबपति भी अपना अपना गंजा बायोडाटा इस तरह प्रस्तुत करते दिख रहे हैं, जिनकी औकात उस वक्त में कुछ नहीं थी, जिस समय अपने घर के दाना पानीतक को बेचकर तन, मन और धन सहित मधेश मुक्ति के लिए किसी नेता के नाम और निर्देशन पर दीवानों के तरह युवा लोग हर खतरा मोलने को तैयार थे । मगर शर्म की बात यह है कि उन धुर्तों के जाली बायोडाटा पर भी युवा लोग थपडी पिट रहे हैं ।
बडे चालाकी पूर्वक निर्लज्जता के साथ कुछ पाखण्डी लोग यहाँतक मधेश में भ्रम बो रहे हैं कि करोडों की नौकरियाँ छोडकर वे अमेरिका, यूरोप और अरब देशों से मधेश माँ की सेवा करने मधेश लौट आये हैं । प्रचार यह करते हैं कि वे उच्च शिक्षित, बडका यूनिवर्सिटी के डिग्रीधारी, विदेशों में वैज्ञानिक, सैकडों आर्किटेक्चरल कामों में निपुणता प्राप्त हैं । मगर मधेश को ध्यान इस बात पर भी देना जरुरी है कि हमने कहीं उन लोगों को अपने भूल से नेता तो नहीं बनाने जा रहे हैं जिन्होंने मच्छर भगाने बाला एक लिक्विड भी आविष्कार नहीं किया है, उन्हें महान् वैज्ञानिक मान बैठे हैं । जो राजनीति को व्यतिm नीति समझते हों, उन्हें राजनीतिक युग पुरुष का सर्टिफिकेट दे रखे हैं । जिन्होंने राज्य के समान्य हप्की दप्की से मुद्दों को ही बेच डाले, उन्हें महानायक कहते हैं । कुछ वो मसीहा जो अपना सारा लगानी काठमाण्डौं में लगाये हों, वो मधेश में दश लाख यूवाओं को रोजगारी देने की बात करते हैं । जो काठमाण्डौं में करोडों की महल खरीदता है, वह यह कहता है कि मधेश आजाद करके रहेंगे ।
आदमी राजनीतिक पद पाने के लिए इतना तिकडमी हो जाता है कि वह यहतक कहने से बाज नहीं आते कि वह मधेश को अन्तर्राष्ट्रिय शक्ति केन्द्रतक पहचान दिलाने के काम किये हैं । उनके बातों को थपडी पिटकर समर्थन करने बाले लोगों को इन बातों को समझ लेनी चाहिए कि वे अगर अन्तर्राष्ट्रिय किसी निकाय में गये भी हैं तो विदेशों में काम करने बाले मधेशी कामदारों के पैसों पर गुलछर्रे उडाते हुए जेट विमानों से अपनी औकात बढाने गये थे, न कि मधेश का कोई पहचान दिलाने । क्योंकि मधेश का पहचान मधेश जन विद्रोह ने २०६३–६४ में ही अन्तर्राष्ट्रियकरण कर चुका था । अगर उन्होंने ही मधेश का पहचान विश्व रंग मंच पर कायम किया है तो फिर स्वतन्त्र मधेश का सम्बोधन आजतक क्यों नहीं ? दावा यह किया जाना कि दर्जनों देशों में लाखों मधेशियों को किसी मधेशी संगठन से जोडा गया है, तो हमें यह समझना होगा कि उनसे पैसे वसूलने के उद्देश्य से जोडा गया है, न कि राजनीतिक मुक्ति से । उसका परिणाम देखा जा चुका है और आने बाला समय भी बता ही देगा ।
जहांतक दश लाख यूवाओं की रोजगार की बता है, तो इस बात पर भी हमें गौर करना होगा कि जो योग्य इंसान खुद किसी विदेश का गुलामी किये हाें, वो किस संविधान, विधान या ऐन कानुन के बल पर दश लाख नौकरी सृजना करेंगे ः संसद से, सरकार से या प्रशासन से ? वो आज मधेश माँ का सेवक बनने आ पहँुचे हैं जो कभी किसी स्वराजी से स्वराज के कार्यक्रम के दौरान उनसे विदेश में भी मिलने से इंकार किए यह कहकर कि अगर वे उनसे मिले, तो नेपाल सरकार काठमाण्डौ एयरपोर्ट से उन्हें गिरफ्तार कर लेगी नेपाल जाने पर । कुछ वे मधेश भक्त कद से ज्यादा हो चले हैं जिनके कभी प्रहरी को देखकर प्राण उडने लगते थे । प्रहरी के सामने स्वराजियों को पहचाननातक छोड देते थे ।
आश्चर्य की बात तो यह है कि नेता जी अपने एक भी मुद्दा पर स्थिर नहीं हैं । न वो एक मुद्दा पर खडे हैं, न उनके द्वारा किये गये सहमति के एक भी अक्षर का सरकारी पालन हुआ है । एक बात स्थिर और पक्का जरुर है कि औकात से बडा वे सपना देखता है । उन सपनों का शिकार मधेशी यूवाओं को बनाता है । छल, कपट, धुत्र्याई, फरेब, घमण्ड और अहंकार को ही सफलता मानता है । मुद्दों को बेचकर भी अपने सर्टिफिकेट्स, योग्यता, फोटो फ्याशन आदि का प्रचार व मंचन करता है । अपने को परमात्मा का अवतार बताकर भोलेभाले यूवाओं से जय जयकार करवाता है ।
मेरा किसी से कोई वैरभाव या जलन इष्र्या आदि कुछ भी नहीं है । अगर होता तो मैंने खुद कभी उन्हें अपने दिल से सम्मान नहीं किया होता । क्योंकि उनके साथ उस समयतक उनका क्रान्तिकारी मुद्दा था । मैं उनके मुद्दों से जुडा था । उन्होंने मुद्दा बेचा, मैंने उन्हें जब छोड दी तो मेरे उपर पागलों के भाँति भद्दे और घिनौने आरोप लगाया । उससे भी ज्यादा मुझे तकलीफ यह है कि मधेश कबतक नेताओं का धोखा खाता रहेगा ? आज जहाँ भी जाएँ, लोग कहते हैं ः किस नेता पर विश्वास किया जाय ? सबने मधेश को बेचा है । करते कुछ लोग हैं, बर्बादी मधेश का है । यही मेरा पीडा है ।
लोगों को यह भी जानना होगा कि हम अगर नेता जी के सहमति को स्वीकार भर लिये होते, विरोध नहीं किये होते तो वहाँ तो आज भी मेरा स्थान और महत्ता तो अब्बल ही होता न ? कोई पद, स्थान या लाभ का बात आता तो उसके लिए मैं ही अग्र स्थान पर होता न ? मेरा मानना है कि मैं पद, स्थान या लाभ का विरोधी नहीं हूँ । मगर मुद्दा बेचकर व्यक्तिगत लाभ और आकांक्षा का हम विरोधी हैं । हम थोडा सा धैर्य और कर दिये होते, राज्य के सामने आत्मसमर्पण भर न किये होते, तो आज मधेश और मधेशी कुछ और होते ।
मधेश का विकास तो वैसे भी लोग बजेट को चलाने के लिए, पैसा कमाने के लिए, राजनीति टिकाने के लिए भी कर रहे हैं । करेंगे भी । मगर वह विकास मधेश के लिए नहीं होगा । किसी के कमाई के लिए होगा । भ्रष्टाचार के लिए होगा । धरती और आकाश मधेश का होगा, श्रम और लगानी मधेशियों का होगा । मगर विकास और समृद्धि गैरमधेशियों का होगा । मधेश में विस्तार और साम्राज्य पहाडियों का होगा । इसिलिए विकास केवल मधेश का नहीं, मधेशियों का होना अपरिहार्य है । पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली उसका आधार है ।