माँ दर्गा ! जरा सस्ता करे दे मुर्गा !!:
मुकुन्द आचार्य
हर वर्षकी तरह दशहरा आ गया। सभी के दिलो-दिमाग में बुरी तरह छा गया। इस पावन अवसर पर मैंने महामहिम राष्ट्रपति जी से पूछा, जनाब ! आप दशहरा कैसे मना रहे हैं – जरा कविता में जवाफ दीजिएगा।
महामहिम ने फरमायाः-
देश की चिन्ता मुझे खाए जा रही है !
दूसरी पारटि शिकायत हर पारटि जा रही है !!
अरे मेरा क्या हैं, जैसे तैसे दशहरा मना लूंगा !
नेपाल के इतिहास में अपना नाम बनालूंगा !!
इस के बाद मैंने प्रधानमन्त्री को पकडÞा। वे राष्ट्र संघ में भाग लेने अमेरिका भाग रहे थे। मैंने पूछा, आप कैसे दशहरा मना रहे हैं – उन्होंने गंभीर चेहरा बनाकर गंभीर वाणी में फरमायाः-
माओवादी किसी देवी देवता को नहीं मानते हैं !
हम इमानदारी के साथ कर्म करना जानते हैं !
लोग कहते हैं, भारतीय इसारे पर ये सरकार बनी है !
मेरे, विरोध में चारों ओर नंगी तरवार टंगी है !!
मधेश के नाम को भुनाकर खानेवालें पर्व कांग्रेसी नेता उप्रधानमन्त्री जी से पूछा- आप दशहरा कैसे मना रहे है – कविता में बोलिए !
वे बोलेः-
हम माँ दर्ुगा देवी से शक्ति मागेंगे !
शक्ति संचय के लिए गुण्डो के पीछ भागेंगे !
गृहमंत्री हैं ! अपने गृह और गृह जिल्ला को शानदार बनाएंगे !
कुछ इसी तरह हम इस बार दशहरा मनाएंगे !!
गृहमंत्री जी को विजया दशमी की शुभकामना देते हुए मैं भागा। दूसरे मंत्री जी राजेन्द्र महतो से पूछा, आप कैसे विजया दशमी मना रहे हैं – उन्होंने अपनी खिचडÞी दाढÞी सहलाते हुए फरमायाः-
नेपाल आयल पीते-पीते में घायल हो गया हूँ !
स्वास्थ्य मंत्री हूँ, नर्र्सोर् के पाँव का पायल हो गया हूँ !!
हर मिनिष्ट्री में मुझे मंत्री बनना ही बनना है !
सत्ता और भत्ता का मैं कायल हो गया हूँ !!
मैने बड मुश्किल से प्रचण्ड को पकडÞा और प्रेमपर्ूवक पूछा, आप क्या कर रहे हैं दशहरे में –
जरा कविता में बोलिए,
उन्होंने आपने स्टाइल में कन्धा और सर को हिलाया और फिर फरमायाः-
बडेÞ पापडÞ बेले हैं, बाबुराम को पीएम बनाने में !
समय तो लगेगा ही दल के विभीषणों को मनाने में !!
दूसरे के कन्धे पर बन्दूक रखकर गोली मैं दागूंगा !
दशहरे में माँ दगा से शक्ति और सत्ता मागूंगा !!
झलनाथ जी और सुशील दादा दोनों एक जगह बैठकर खुसुर-फुसुर कर रहे थे। मैनें कहा, आप दोनों दशहरा कैसे मना रहे हैं –
सुशील दा बोले,
हम दोनों हारे हुए जुवाड हैं, लेकिन हम जरुर बदला लेंगे !
न अपना कोई आशियाना है, न दूसरों को घर बनाने देंगे !!
सारे दोष दूसरों पर मढ कर, हम खुद को पाक-साफ बतायेंगे !
मर्ुगा और विपक्षी की टांग खींचेगे, हम इस तरह दशहरा मनायगें !!
एक र्सवसाधारण से पूछा, भैया आप दशहरा कैसे मना रहे हैं – जबाव जरा कविता में दीजिएगा।
र् र्सवसाधारण नेपाली कुछ देर तक सोचता रहा, फिर बोलाः-
मैं एक आम नेपाली हूँ, मैं त्यौहार नहीं मना सकता !
महंगाई कोई नहीं रोकता, देश कोई नहीं बना सकता !!
हम गरीबों के लिए क्या माता लक्ष्मी, क्या माता दर्ुगा !
हो सके तो माँ दर्ुगा ! जरा सस्ता करदे मर्ुगा !!
मेरो प्यारे पाठक आप कैसे दशहरा मना रहे हैं –