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मधेश, बालेन्द्र और काठमाण्डौ का अन्तर सम्बन्ध vs अन्तरद्वन्द : कैलाश महतो

कैलाश महतो, पराशी, 17 मई 022 । काठमाण्डौ के गल्ली और सडकें तथा देश के राजनीति में एक हलचलीय तरङ्ग पैदा कर रहे बालेन्द्र साह की उम्मीदवारी ने विदेशी राजधानियों समेत को एक क्रान्तिकारी सन्देश प्रवाह कर रखा है । बालेन्द्र साह मानों काठमाण्डौ के यूवा, यूवती, विद्वान, शिक्षक, बुद्धिजीवी, वकिल, वैज्ञानिक, कलाकार, शिल्पकार, किसान, मजदूर, उद्योगी, व्यापारी, विद्यार्थी, महिला और बुजुर्ग सब के लिए एक आइकन फिगर हो । हर लव और जूवां पर बालेन्द्र, हर कोने में बालेन्द्र, हर दिल में बालेन्द्र, हर भीड में बालेन्द्र और हर तस्वीर में बालेन्द्र की झलक देखी जा सकती है । बालेन्द्र साह गीतों में, संगीतों में, गजलों में और कवितों में समेत एक जनप्रेम प्राप्त उदीयमान फरिश्ते नजर आ रहे हैं ।
देश के राजधानी में एक स्वतंत्र उम्मीदवार का इतना बडा राजनीतिक मार्केट बनना वाकई अदभूत और जादुई घटना है । संभवतः नेपाल के राजनीतिक इतिहास में यह पहली घटना होनी चाहिए । बालेन साह का राजनीतिक उदय अपने आपमें एक बेमिशाल इतिहास है । स्वतंत्र उम्मीदवार के रुप में बालेन्द्र साह का उदय मूंछो पर ताव फेर रहे बडेमान के राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ले लिए जहाँ एक पत्थर का लकीर है, वहीं राजधानी में काम करना बालेन्द्र साह के लिए भी लोहे के चना चवाने से कम नहीं है । मगर कयास यह लगाना कोई गलत नहीं होनी चाहिए कि बालेन्द्र उन हर उछृंखल बाधाओं को उठा फेकने में सफल होंगे जो उनके रास्ते में दिखाई देगा, अगर आज का जनसैलाब का उनके साथ सकारात्मक रुप से अडा रहा ।
अनेक अन्तरवार्ता, पब्लिक साक्षात्कारों और सामाजिक सञ्जालों के हवालों से आये आधार और खबरों को मानें तो बालेन साह हिम्मती, बुलन्द, कर्मठ और भिजनरी युवा नेता के रुप में सावित हो रहे हैं । उन्हें उनके उंचाई से नीचे गिराने के कोशिश करने बाले उनके प्रतिद्वंद्वियों के आरोप कि : वो पहाडी ठकुरी या राजशाही वंश के नहीं, मधेशी हैं । वो काठमाण्डौ के मिट्टियों से अनभिज्ञ हैं । वो नेपाली/नेवारी चाहनाओं पर खडे उतर नहीं सकते । वो गायक हैं, और गायक ही रहें तो बेहतर होगा । कला स्टेजों पर उन्हें मौका दिया जायेगा, आदि इत्यादि ।
उपरोक्त आरोपों में साम्प्रदायिकता स्पष्ट रूप में दिख रही है । एक नेवार, खस बाहुन-क्षेत्री, पहाडी जनाजति और दलित मधेश का नेता, जमिनदार, उद्योगपति, शासक,  प्रशासक बन सकता है । मगर एक मधेशी उस काठमाण्डौ का नेता और जनप्रतिनिधी नहीं बन सकता, जिसे उसके बाप दादों ने सिंचा है, बनाया है, सजाया है । आज भी काठमाण्डौ के सारे ऐतिहासिक धरोहरों में गुप्त वंश, गोपाल वंश, देव वंश, लिच्छवि वंश, भृकुटी वंश, वर्मा वंश और मल्ल वंशों की कला और सुगन्ध मिलती हैं । काठमाण्डौ उपत्यका को बास बसने लायक बनाने बाले “ने” ऋषि, सत्यवती (काठमाण्डौ उपत्यका का पौराणिक नाम) में काष्ट मण्डप बनाकर काठमाण्डौ नाम देने बाले मौर्य वंश और ईसापूर्व २७१ में सत्यवती को नेपाल नाम देने बाले भी मधेशी ही रहे हैं ।
दु:ख की बात है कि जिस काठमाण्डौ को मधेश ने सभ्यता दी, कला और संस्कृती दी, उसीके सन्ततियों पर समासीय मानसिकता के आधार पर उसे काठमाण्डौ इत्तर के माने जाते हैं । समासीय मानसिकता को विग्रह किया जाय तो यह शंका करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि बालेन्द्र साह को कहीं काठमाण्डौ ने किसी बडे रणनीतिक आवरण में तो स्वीकार नहीं किया है ?
जिस बालेन्द्र साह को काठमाण्डौ के सामन्तों ने गैर काठमाण्डौवन कहने की हिमाकत की है, वह बेवजह नहीं हो सकता । जहाँ तक कुछ लोगों का विश्लेषण है कि बालेन्द्र साह को काठमाण्डौ में स्वीकारा जाना मधेश और काठमाण्डौ, तथा मधेशी और पहाडी के बीच में रहे वैर भावों  की समाप्ति है, तो इसे सत्य तबतक नहीं माना जा सकता जबतक राज्य पूर्णतः समानुपातिक प्रतिनिधित्व का आकाशगंगा नहीं बन जाता । ध्यान यह करना होगा कि काठमाण्डौ या किसी बडे शहर का मेयर बनना शासन नहीं है, न शासन संचालन है । क्योंकि शासन संचालन का सूत्र और चाभी संसद, संविधान, ऐन, कानुन और विधानों में होता है, न कि सांसद, मेयर, मन्त्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति में । अगर ऐसा होता तो इस देश के सरकार में ७२% मन्त्री मधेशी रहने का भी शुभ इतिहास है । राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधान न्यायाधीश, उपप्रधानमंत्री लगायत के सारे शक्‍तिशाली मन्त्रालय मधॆशियों के हाथों में थीं । लेकिन उसी मधेशी बहुमतीय सरकार काल में राज्य ने मधेश के न्यायिक हकहित की बात करने बाले संचारमन्त्री रहे जेपी गुप्ता को जेल भेजा दिया, शरद सिंह भण्डारी को मन्त्री पद से हटाया, महेन्द्र राय यादव को मन्त्रालय घुसने पर प्रतिबंध लगाये और सरिता गिरी को मन्त्री पद से जबरदस्ती हटाया गया । बिना प्रमाण आज भी रेशम चौधरी और संजय साह (टकला) जेल के हावा खा रहे हैं, वहीं बडे बडे प्रमाणित हत्यारा और बलत्कारी जेलतक या तो जाते ही नहीं । चले भी जाय तो औपचारिकता पूरा कराकर जेल से बाइज्जत निकाल दिये जाते हैं ।
जिस संविधान अन्तर्गत आजका देश, संसद, सरकार और स्थानीय सरकार चल रही हैं, उस असफल संविधान को केवल पाँच पहाड़ी बाहुनों ने लिखकर संसद और ९०-९५% लोगों पर जबरन लाद दिया । उस संविधान के अन्तर्गत काठमाण्डौ, पोखरा, भरतपुर, धरान, गोरखा चल सकता है, मगर जनकपुर, वीरगंज, विराटनगर, राजबिराज, लहान, नेपालगंज और धनगढी वगैरह को चलाने में दिक्कत हो रही है । वहाँ के समाजों की अपार क्षति हो रही है ।
हम जरा काठमाण्डौ के प्राचीन और मध्य इतिहासों को कुरेदें तो यह पता चल जायेगा कि काठमाण्डौ के आज जो रैथाने कहलाते हैं, उनके परिवारों में मधेशी ब्राम्हण, यादव, गुप्त, गुप्ता, चौहान, मुसलमान आदि भी हैं जो आज मधेश के मधेशियों से अपने को इत्तर मानने में सफल सभ्य नेपाली समझते हैं । आज भी भले ही उनके आन्तरिक संस्कार, संस्कृति और परम्परा मधेश से मिलते हैं, मगर वो अपने को मधेशी मानने से इंकार करते हैं । आज भी पशुपतिनाथ मन्दिर के प्रथम प्रार्थनाओं में मैथिली भजन ही है । मगर  पशुपतिनाथ भी आज पहाडी नेपाली बन चुके हैं ।
बालेन्द्र साह के जीवन चक्र को डायोग्नाइज और परीक्षण किया जाय तो उन्हें मधेशी होने के आधार पर काठमाण्डौ का नेता कतई नहीं स्वीकारा जा सकता । मूल कारण यह है कि काठमाण्डौ अब उन्हें मधेशी नहीं मानता । हिम्मत है कि नेपाल या काठमाण्डौ के किसी मंच पर बालेन्द्र जी हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी, उर्दू, मगही, ठेठी, थारु या कोच में गीत या र्याप कर लें और गायक कहला लें ? वे ज्योंही हिन्दी या मधेशी किसी भाषा पर जोर दें, उसे प्रथम स्थान देंगे, उन्हें फौरन देशी, मधेशी या धोती, बिहारी, इण्डियन का बिल्ला लगा दिया जायेगा ।
मधेश, बालेन्द्र और काठमाण्डौ का अन्तर सम्बन्ध vs अन्तरद्वन्द दोनों का सम्बन्ध है । फिरभी बालेन्द्र साह काठमाण्डौ का जेलेंश्की बने । यह हमारा कामना है । क्योंकि भोलोदोमिर जेलेंश्की भी एक कलाकार रहे हैं । कला क्षेत्र से राजनीति में कदम रखे  यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंश्की को उनके मुश्किल के हर घड़ियों में भी जिस तरह यूक्रेन और यूक्रेनी जनता, सेना और प्रशासन हिम्मत से उन्हें साथ और सहयोग दे रहे हैं, उसी तरह काठमाण्डौ और अपने देश की राजधानी के भावी कार्यकारी प्रमुख बालेन्द्र साह को पूरे देश और प्रदेश, जनता, सेना और प्रशासन से दिली सहयोग मिलनी चाहिए । क्योंकि बालन साह केवल उम्मीदवार, कार्यकारी प्रमुख और नेता ही नहीं, देश और जनता का साहस, उम्मीद, उर्जा और भविष्य भी हैं । कल्ह का सुन्दर सबेरा भी है ।

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