राधा, जो विश्व में प्रेम का प्रतिमान बन गईं, क्या राधा बनना आसान था : श्वेता दीप्ति
सच्चा प्रेम तो उन फूलों की खुशबू की तरह है जिसे छुआ नहीं जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है। जिसने महसूस कर लिया उसका जीवन भी प्रेम भरी खुशबु से महकने लगेगा। ” राधा ने श्री कृष्णा से पूछा प्यार का असली मतलब क्या होता है , श्री कृष्णा ने हंस कर कहा जहाँ मतलब होता है वहां प्यार ही कहाँ होता है ।“
डा श्वेता दीप्ति, काठमांडू। राधा अष्टमी विशेष, आज राधा कृष्ण के प्रेम की चर्चा करते हैं । देवी राधा को पुराणों में श्री कृष्ण की शाश्वत जीवनसंगिनी बताया गया है।ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि राधा और कृष्ण का प्रेम इस लोक का नहीं बल्कि पारलौक है। सृष्टि के आरंभ से और सृष्टि के अंत होने के बाद भी दोनों नित्य गोलोक में वास करते हैं। राधा-कृष्ण की अलौकिक प्रेम कहानी से हर कोई परिचित है। उन दोनों का मिलना और फिर मिलकर बिछड़ जाना, शायद यही उन दोनों की नियति थी।लेकिन लौकिक जगत में श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम मानवी रुप में था और इस रुप में इनके मिलन और प्रेम की शुरुआत की बड़ी ही रोचक कथा है।
एक कथा के अनुसार देवी राधा और श्री कृष्ण की पहली मुलाकात उस समय हुई थी जब देवी राधा ग्यारह माह की थी और भगवान श्री कृष्ण सिर्फ एक दिन के थे। मौका था श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का । कहते हैं कि देवी राधा भगवान श्री कृष्ण से ग्यारह माह बड़ी थी और कृष्ण के जन्मोत्सव पर अपनी माता कीर्ति के साथ नंदगांव आई थी । यहां श्री कृष्ण पालने में झूल रहे थे और राधा माता की गोद में थी ।
भगवान श्री कृष्ण और देवी राधा की दूसरी मुलाकात लौकिक न होकर अलौकिक थी। इस संदर्भ में गर्ग संहिता में एक कथा मिलती है। यह उस समय की बात है जब भगवान श्री कृष्ण नन्हे बालक थे। उन दिनों एक बार एक बार नंदराय जी बालक श्री कृष्ण को लेकर भांडीर वन से गुजर रहे थे। उसे समय आचानक एक ज्योति प्रकट हुई जो देवी राधा के रुप में दृश्य हो गई। देवी राधा के दर्शन पाकर नंदराय जी आनंदित हो गए। राधा ने कहा कि श्री कृष्ण को उन्हें सौंप दें, नंदराय जी ने श्री कृष्ण को राधा जी की गोद में दे दिया। श्री कृष्ण बाल रूप त्यागकर किशोर बन गए। तभी ब्रह्मा जी भी वहां उपस्थित हुए। ब्रह्मा जी ने कृष्ण का विवाह राधा से करवा दिया। कुछ समय तक कृष्ण राधा के संग इसी वन में रहे। फिर देवी राधा ने कृष्ण को उनके बाल रूप में नंदराय जी को सौंप दिया।
तीसरी मुलाकत में हुआ लौकिक प्रेम – राधा कृष्ण की लौकिक मुलाकात और प्रेम की शुरुआत संकेत नामक स्थान से माना जाता है। नंद गांव से चार मील की दूरी पर बसा है बरसाना गांव। बरसाना को राधा जी की जन्मस्थली माना जाता है। नंदगांव और बरसाना के बीच में एक गांव है जो ‘संकेत’ कहलाता है। कहते हैं कि राधा की कृष्ण से पहली मुलाकात नंदगांव और बरसाने के बीच हुई।एक-दूसरे को देखने के बाद दोनों में सहज ही एक-दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ गया। माना जाता है कि यहीं से राधा-कृष्ण के प्रेम की शुरुआत हुई। इस स्थान पर आज एक मंदिर है। इसे संकेत स्थान कहा जाता है। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। जब श्री कृष्ण और राधा के पृथ्वी पर प्रकट होने का समय आया तब एक स्थान निश्चित हुआ जहां दोनों का मिलना तय हुआ। मिलन का स्थान संकेतिक था इसलिए यह संकेत कहलाया।
ये बात तो हम अकसर सुनते आए हैं कि राधा और कृष्ण केवल प्रेमी-प्रेमिका थे, उन दोनों का वैवाहिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक रिश्ता था। राधा एक आध्यात्मिक पृष्ठ है, जहां द्वैत से अद्वैत का मिलन है। राधा एक सम्पूर्ण काल का उद्गम हैं, जो कृष्ण रुपी समुद्र से मिलती हैं| श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं और विश्व में प्रेम का प्रतिमान बनकर बस गईं| जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी। यही वजह है कि आज भी हर जगह श्रीकृष्ण राधारानी के संग ही नज़र आते हैं|
श्री राधा रानी कृष्ण से उम्र में बड़ी थी, लेकिन उनका प्रेम तो बचपन से ही चरम सीमा पर था. कहते है ना प्रेम उम्र के दायरे में बंधकर कभी भी नहीं रह सकता है. लक्ष्मी जी ही राधा अवतार में धरती पर आई थीं.संसार के लोग राधा और कृष्ण को दो अलग अलग नाम से जानते होंगे, मगर वे बिरले ही भक्त हैं जो एक संयुक्त तत्व को समझ पाते हैं , ये बिरले लोग आपको बृज में ही मिलेंगे, वहां जाइए तो जानेंगे कि कृष्ण शब्द तो है ही नहीं वहां , वहां तो बस राधेय-राधेय है ।
राधेय अर्थात जो राधा का हो , मतलब कृष्ण | इतना ही नहीं उज्जवल वर्ण वाली राधा रानी को वहां श्यामा जु पुकारा जाता है, श्यामा अर्थात जो श्याम की हो ।प्रेमी ही समझ सकते हैं इस गूढ़ता को कि एक के नाम से दुसरे को पुकार जाए । राधा कृष्ण का प्रेम वह भौतिक और काम पूर्ण प्रेम नहीं था जिसपर आकर सांसारिक प्राणियों की सोच ठहर जाती है | राधेय का प्रेम को संसार के लिए वह ज्ञान रुपी अमृत था जो किसी विचारधारा में जकड़ ही नहीं सकता , जहां कृष्ण होता है वहां काम नहीं होता , वहां भौतिकता नही होती वहां अलौकिकता होती है ।
श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं और विश्व में प्रेम का प्रतिमान बनकर बस गईं. जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी.यही वजह है कि आज भी हर जगह श्रीकृष्ण राधारानी के संग ही नज़र आते हैं. इस राधाकृष्ण के प्रेम में तो समर्पण और अधिकार दोनों का वह सागर है जिसे कोई ज्ञात ही नहीं कर सकता । सचमुच जिसने काम खोजा उसे तो कृष्ण मिल ही नहीं सकता, और जिसने कृष्ण में भी काम खोजा उससे बड़ा मूर्ख कोई हो नहीं सकता ।
राधा का अदभुत कृष्ण ज्ञान
एक बार कृष्ण के सखा उद्धव जी जो ज्ञान और योग सीख कर उसकी महत्ता बताने में लगे थे तब ,कृष्ण ने उन्हें एक चिट्ठी लिख कर दी जिस पर कृष्ण ने लिखा था कि :-” मैं अब वापस नहीं आऊंगा तुम सभी मुझे भूल जाओ और योग में ध्यान लगाओ ” और कहा कि इसे ले जाकर ब्रज के लोगों को दिखाना और योग के महत्व से उन्हें परिचित करवाना ।
उद्धव जी के लिए परमब्रह्म का लिखा लेख वेद समान था वे उसे संभाले संभाले ब्रज में गए और कृष्ण विरह में व्याकुल राधा जी को वह पाती दिखाई , राधा रानी ने उसे पढ़े बिना गोपियों को दे दी और गोपियों ने उसे पढ़े बिना उसके कई टुकड़े कर आपस में बाँट लिया । उद्धव जी बौखला गए , चिल्लाने लगे अरे मूर्खो इस पर जगदगुरु ने योग का ज्ञान लिखा है , क्या तुम कृष्ण विरह में नहीं हो जो उनका लिखा पढ़ा तक नहीं ।तब राधा जी ने उद्धव को समझाया
” उधौ तुम हुए बौरे, पाती लेके आये दौड़े..हम योग कहाँ राखें ? यहां रोम रोम श्याम है “
अर्थात हे उधौ कृष्ण तो यहां से गए ही नहीं ? कृष्ण होंगे दुनिया के लिए योगेश्वर यहां पर तो अब भी वो धूल में सने हर घाट वृक्ष पर बंसी बजा रहे हैं | बताओ कहाँ है विरह ? यह ज्ञान आज के युग के लिए एक मार्ग दर्शन है , जब कि हम कृष्ण को आडम्बरों में खोजते हैं ।
” प्यार सबको आजमाता है। सोलह हज़ार एक सौ आठ रानियों से मिलने वाला श्याम एक राधा को तरस जाता हैं। “
आज भी राधारानी को ब्रज की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है. राधा नाम कृष्ण से पूर्व याद किया जाता हैं. क्योंकी श्रीकृष्ण की ऐसी इच्छा थी कि उनके नाम से पहले जो भी राधा का नाम लेगा उनका वह उद्धार करेंगे.
राधा कृष्ण का प्रेम एक ऐसा प्रेम है जो न तो कभी मिटा, और न ही मिटेगा. आज के समय में राधा कृष के प्रेम की लोग पूजा करते है. राधा कृष्ण ने सब कुछ खो कर भी एक-दूजे को पा लिया.