Mon. Jan 13th, 2025

तीज का बिगड़ता स्वरूप, आस्था पर टिकटाक का प्रहार : डॉ श्वेता दीप्ति

डा श्वेता दीप्ति, काठमांडू । हिन्दू संस्कृति में यों तो सभी पर्व और त्योहार का बहुत ही महत्तव है । होली हो, दीवाली हो, दशहरा हो सबका अपना उत्साह होता है । जहाँ तक नेपाली संस्कृति का सवाल है, तो यहाँ तो हर रोज कोई ना कोई पर्व त्योहार मनाया जाता रहा है । विभिन्न संस्कृति का स्थल नेपाल अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है । देश की संस्कृति और पहचान पर पहला प्रहार तब हुआ, जब देश की पहचान को दाँव पर लगाकर, इसे विश्व का एक मात्र हिन्दू राष्ट्र की पहचान से वंचित कर दिया गया । यह विडम्बना थी इस देश के लिए । इतिहास गवाह है कि यहाँ कभी भी धर्म के नाम पर विवाद नहीं हुआ था, सभी धर्मों के लोग शाँति से एक साथ रहते थे ऐसे में आवश्यकता नहीं थी इसकी पहचान को दाँव पर लगाने की । किन्तु जब देश के ठेकेदार ही बदगुमान हो जाएँ, तो वहाँ जनता की चाहत और इच्छा की परवाह किसे होती है ? चंद सिक्कों पर बिकती राजनीति ने एक रात में देश की पहचान खो दी ।

खैर आज बात कर रही हूँ नेपाली उन कुछ महिलाओं की, जिनकी वजह से पवित्र पर्व तीज का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है । नेपाल में तीज नेपाली महिलाओं का सबसे बड़ा त्योहार है । इस मामले में किसी की भी दो राय नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए । किन्तु इसका यह अर्थ तो बिल्कुल नहीं है कि आप परम्परा पर, आधुनिकता और पश्चिमी संस्कृति को थोप कर खुद को नारी सशक्तिकरण के नाम पर बेहूदगी का नमूना बना दें । पारम्परिक नृत्य और लोकगीतों का अपना सौन्दर्य और महत्तव होता है, जिसमें हमारी संस्कृति जीवित रहती है, जो हमारी सदियों की परम्परा का परिचायक होती है । उसे अगर हम ही नकार देंगे तो उसके अस्तित्व को बरकरार कौन रखेगा ? आज  यह चिन्ता का विषय बन रहा है । और हमें सजग होने की आवश्यकता है ।
बहुत पहले मैं भारत एक सेमिनार में गई थी, वहाँ जर्मनी से आईं एक साहित्यकार महिला मित्र से मुलाकात हुई । उन्होंने पूछा था कि नेपाल में सभी औरतों को लाल रंग बहुत पसंद है क्या ? तब मैंने बहुत ही गर्व से यह कहा था कि, ‘हाँ यही एक देश है जहाँ उम्र पर रंगों का प्रतिबन्ध नहीं है । आप जहाँ भी चली जाएँ सुहागन महिलाएँ चाहे वो सत्तर साल की ही क्यों ना हों वो आपको लाल साड़ी, हरी चूड़ी और मोतियों की माला में सजी मिलेंगी । यह संस्कृति आपको शायद और कहीं ना मिले ।’ किन्तु आज जो दिख रहा है, उसने विश्वस्तर पर हमारी पहचान पर ही प्रहार किया है । सामाजिक संजाल महिलाओं के उस नृत्य से भरा पड़ा है, जिसे हम आम तौर पर अश्लीलता की संज्ञा देते हैं । सबसे अफसोस तो चीन द्वारा निर्मित एप टीकटॉक पर हमारी बहनों को देख कर होता है । एक नजर में उन महिलाओं को देखकर हम कह ही नहीं सकते कि, ये किसी सभ्य समाज या परिवार की महिलाएँ हैं । पैसा कमाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाने की स्थिति है । सच कहूँ तो इस एप ने तो अर्कमण्य ही बना दिया है । अपनी कला दिखाने की बजाए अपने शरीर और अश्लील हावभाव को अपनाने की होड़ सी मची है यहाँ ।
तीज आने के करीब एक महीने पहले से ही सोशल मीडिया और शहर के बाजार पर नजर डालें तो, तीज की रौनक को छोड़कर बाकी और कुछ नजर नहीं आता है । शहर के बाजार में हर घर, टोल, बस्ती और बाजार में लाल साडि़यों, आभूषण, नृत्य और दावतों ने अपनी जगह बना रखी है । जो अच्छा भी लगता है यह सोच कर कि कुछ दिन तो महिलाओं ने अपने लिए कर रखा है । किन्तु क्या इसके लिए दिखावा, आडम्बर, फैशन, शराब को अपनाना आवश्यक है ? तीज की पार्टी में धड़ल्ले से सिगरेट और शराब में लिप्त बहनें मिल जाएँगी । अगर ऐसी ही पार्टी करनी है तो किसी पवित्र पर्व के नाम पर क्यों ?
धार्मिक दृष्टि से तीज का महत्व बहुत बड़ा है । नेपाली महिलाओं के लिए अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य, लंबे जीवन और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने स्वास्थ्य को जोखिम में डालने की परंपरा है । धर्म के अनुसार तीज सिर्फ एक दिन की होता है । हालांकि अब यह त्योहार सिर्फ एक दिन का नहीं है । नेपाली महिलाओं के मिलने, नाचने, गाने और सामाजिक रूप से मनोरंजन करने के लिए यह त्योहार एक महीने तक चलने वाला त्योहार बन गया है ।
तीज न केवल हिंदू धर्म से जुड़ा है, यह नेपाली समाज की संस्कृति भी है । तीज के अवसर पर नाच गाना, बहनों के घर जाना, मिलना, अच्छे कपड़े पहनना आदि लोकप्रिय संस्कृति से संबंधित हैं । किन्तु आज इसका स्वरूप ही बदल गया है । जो हम सामाजिक संजाल पर मजे से देख सकते हैं । उसकी साड़ी मेरी साड़ी से कीमती क्यों, उसके गहने मेरे गहने से मंहगे क्यों ? सभी के चेहरों पर यही भाव नजर आते हैं । हाथों में ग्लास और वाहियात गानों पर मटकती कमर, यही आज के तीज की पहचान बनती जा रही है । हमें इससे बचना होगा । मनोरंजन करें किन्तु अश्लीलता ना परोंसें । क्योंकि हम पर ही संस्कृति का निर्वहन टिका होता है । आपका सौन्दर्य सिर्फ शारीरिक नहीं मानसिक भी होना चाहिए । सच है कि सजना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, किन्तु सजने के लिए ‘सजना’ की जेब और परिवार की आर्थिक स्थिति का भी ख्याल जरुर रखें ।
समग्र रूप से, नेपाली समाज और वर्तमान पीढ़ी की उपस्थिति तड़क–भड़क की ओर उन्मुख है जिससे हमें खुद को बचाना होगा ।

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
%d bloggers like this: