“पर उपदेश कुशल बहुतेरे” हिंदुओं के खिलाप लुटेरी हरकतें
मुंबई। भारत में ‘सर तन से जुदा ‘, ‘वक़्फ़ बोर्ड की लुटेरी हरकतें ‘ जैसी घटनाओं के विरुद्ध बनाते वातावरण को कुंद करने और मंदिरों को बचाने के लिए जाग्रत होते हिन्दुओं को रोककर उनको भाईचारा और अहिंसा के भ्रमजाल में फांसने के लिए ‘इस्लामी स्कॉलर्स’ अपना एजेंडा ले निकल पड़े हैं ताकि गजवा -ए -हिन्द में तेजी बनी रहे एवं हिन्दुओं को हलाल किया जाता रहे। म्हाडा के पूर्व चेयरमैन युसूफ अब्राहम , साबू सिद्दीकी कॉलेज की प्रिंसिपल जेबा मलिक , उर्दू कारवाँ के संयोजक फरीद खान ,आबिद अहमद और सईद खान ने आज मुंबई प्रेस क्लब में एक पत्रकार वार्ता आयोजित करके औपचारिक रूप से इसकी घोषणा की। उस पत्रकारवार्ता में अधिकाँश लोग इन मुस्लिम वक्ताओं द्वारा चलाये जा रहे संस्थानों के लोग ही थे यानी मुंबई प्रेस क्लब ने उसको महत्त्व नहीं दिया।
आहूत प्रेसवार्ता के अनुसार आगामी ९ अक्टूबर को ‘पैगंबर मोहम्मद ‘ के जन्मदिन पर इस्लामी गतिविधियों को विस्तार देने के भव्य कार्यक्रम मुंबई समेत देश के कोने -कोने में होंगे जिसका सिलसिला एक अक्टूबर से प्रारम्भ होगा। उसमें हिन्दुओं -ईसाइयों खासकर वंचित समाज और पिछड़े वर्ग के लोगों को ‘मोहम्मद पैगंबर की शिक्षाओं’ से अवगत कराया जाएगा तथा उनको बताया जाएगा कि “इस्लाम का अर्थ ही शांति है’ और ‘जो २ % लोग हिंसा में लिप्त हैं वह मुसलमानों ही नहीं बल्कि अन्य मतावलम्बियों में भी हैं तो उनको उपेक्षित कर दिया जाना चाहिए’ तथा शेष लोगों को इस्लाम द्वारा बताये शांति और भाईचारे का मार्ग अपनाना चाहिए ” ।
ये एजेण्डाबाज इस्लामी स्कॉलर्स इस्लाम को शांति का झंडाबरदार सिद्ध करने के लिए १ से ९ अक्टूबर के मध्य अपने परिचित और मित्रमंडली के हिन्दुओं को अपने घरों में खाना खाने के लिए आमंत्रित करेंगे तथा प्रशासनिक अधिकारियों – शिक्षकों -पत्रकारों-राजनेताओं-सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को दावत – उपहार इत्यादि से उपकृत कर उनको इस्लाम की अच्छाइयों का प्रचार करने की प्रेरणा देंगे । ऐसा आयोजन पूरे देश में मस्जिदों -मजलिसों की देखरेख में होगा। इससे पूर्व भी अनेक कार्यक्रम करने की रूपरेखा बनाई गयी है ताकि ‘इस्लाम की ब्रांडिंग’ की जा सके।
आगामी १ अक्टूबर को हिंदी -मराठी -गुजराती -पंजाबी -सिंधी भाषाभाषी साहित्यकारों -कवियों द्वारा उर्दू के ही गीत -ग़ज़ल -शेरोशायरी की सार्वजनिक प्रस्तुति करायी जाएगी। इसके लिए भव्य मुशायरा का आयोजन किया जाएगा।देश भर के मस्जिदों के उलेमाओं तथा मौलवियों को अपने -अपने इलाके में होने वाले मुशायराओं के आयोजन में सहभागिता के लिए कहा गया है। दो अक्टूबर से विभिन्न स्कूलों -कॉलेजों में इस्लाम में बताए शांति -भाईचारा -अहिंसा -पर्यावरण रक्षा -जल संरक्षण – दया -दान जैसे विषयों की जानकारी देकर बच्चों -किशोरों -किशोरियों तथा युवाओं को इस्लाम के प्रति जागरूक और स्नेहीभाव रखनेवाला बनाया जाएगा। इसके साथ ही उनके आसपास इस्लाम से उपरोक्त विषयों को जोड़कर संवाद – लेख प्रतियोगिताएं आदि आयोजित किये जाएंगे जिसमें वैज्ञानिक -कलाकार -शिक्षाविद की मुख्य भूमिकाएं रहेंगीं।
इसके लिए उन्होने पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन ९ अक्टूबर तक गैर -मुसलमानों को इस्लाम की अच्छाइयां , कला -साहित्य -संस्कृति को इस्लाम की देन बताने का बीड़ा उठाया है।हास्यास्पद है कि ये स्कॉलर्स शांति का संदेशवाहक इस्लाम को बताते हैं किन्तु उनके पास इस बात का उत्तर नहीं है कि शांति का सन्देश देनेवाले इस्लाम के अनुयायी अर्थात मुसलमान ही पूरी दुनिया में हिंसा -बलात्कार -लूटपाट क्यों करते हैं। वे इस जिम्मेदारी को भी उठाने के लिए तैयार नहीं हैं कि इस्लामी शिक्षा से पहले मुसलमानों को ही मनुष्य बनाने का काम करें। वे इस बात का दावा करते हैं कि इस्लाम में औरतों को बराबरी का दर्जा मिला है किन्तु ‘हलाला’ औरतों का ही क्यों होता है ‘तलाकशुदा मर्दों’ का क्यों नहीं या फिर जब एक मुस्लिम मर्द एक से अधिक बीवियां रख सकता है तो कोई मुस्लिम औरत एक साथ दो या दो से अधिक शौहर क्यों नहीं रख सकती ? जैसे प्रश्न पूछने पर ‘बराबरी -शांति -भाईचारा’ का सन्देश फैलाने निकले युसूफ -आबिद -सईद स्टेज से उतर जाते हैं और प्रेस -परिषद् में चाय -नाश्ता बाँटना शुरू कर दिया जाता है। उस समय अनौपचारिक बातचीत में भी इस्लाम की अच्छाइयां गिनाने एकजुट हुए ‘अल्लाह के ये नेक बंदे’ इस प्रश्न पर हकलाने लगते हैं कि उनके ७२ फिरकों में आपस में भाईचारा क्यों नहीं है या मुसलमानों में ही भाईचारा स्थापित करने के लिए उनकी क्या योजना है अथवा क्या उन्होने इस दिशा में कोई काम किया है ?
पर्यावरण को करोड़ों जीवों की कुर्बानियों से क्षति पहुँचती है तो इस्लाम किस तरह से पर्यावरण रक्षा कार्यक्रमों में कुर्बानियां रोकने के लिए उपाय करेगा अथवा जब मुस्लिम देशों में कोई वास्तुशिल्प नहीं है तो वे कैसे शिल्प -कला को आगे बढ़ाकर इस्लामिक शिक्षा का प्रसार करेंगे इन प्रश्नों का उत्तर देने के बदले उनकी एक मात्र रट यही है कि इस्लाम को गलत समझा गया है और उनका आयोजन गैर मुस्लिमों को इस्लाम को अच्छी तरह से समझने में सहायता करेगा।