Fri. Apr 19th, 2024

बाबुराम पौड्याल:पिछले दिनों यूूक्रेन के रुसी आबादी वाले प्रदेश क्रिमिया में हुये जनमत संग्रह में तकरीबन पचानबे फीसद मतों के साथ नतीजा जब यूक्रेन से अलग हो कर रुस में विलय के पक्ष में आया और रुसी संसद ने इसे बिना किसी विलम्ब के अनुमोदन करने की घोषणा कर दी तब से दुनिया में तीव्र प्रतिक्रियाएं शुुरु हो गई हैं । वैसे इस नतीजे को मास्को के अलावा अन्य किसी ने भी स्वीकार नहीं किया है । अमेरिका, यूरोपियन यूूनियन जैसे नाटो के सदस्य देशों ने तो रुस के खिलाफ और यूक्रेन के पक्ष में मोर्चा ही खोल लिया है । रुस के पारम्परिक मित्र भी उसके इस कदम के चलते खुश नजर नही आये । हुआ यहाँ तक कि मास्को ने उस क्षेत्र में अरसे से तैनात अपने सैनिक अखाडेÞ से लडÞाकु विमान, बख्तरबन्द गाडिÞयो और सैनिकों की टुकडÞी केा क्रिमिया को भेज दिया । नाटो ने भी यूक्रेन की राजधानी कीभ की सत्ता के र्समर्थन में सैनिक कार्यवाही करने की धमकी तक दे डाली । सामरिक शक्तियों के इस धौंस को देखकर इसे शीत युद्ध का प्रारम्भ तक कहा जाने लगा । घटना क्रम की नाटकीयपन को देख कर ही यह साफ होता है कि जो कुछ हुआ है उसकी शुरुआत यहीं से नहीं बल्कि शीत युद्ध के पतन के तत्काल बाद से ही हो गया था । मामला संयुक्त राष्ट्रसंघ तक भी पहुँचा । वहाँ भी होना तो यही था कि अपने खिलाफ आये प्रस्ताव को रुस ने भीटो पावर का प्रयोग कर निष्त्रिmय कर दिया ।
दुनिया के ताकतवर ही नही गरीब, रणनीतिक हिसाब से संवेदनशील और तकरीवन इसी तरह के छोटे बडेÞ समस्याओं से जूझ रहे देशों में किमिया पर रुसी मन्सूबे को लेकर तरह-तरह के बहसों का बाजार गर्म हो रहा है । नेपाल जैसे राजाशाही प्रजातन्त्र से लोकतंात्रिक संघीयता की ओर बडÞी ही धीमी गति से संक्रमण कर रहे देश में भी क्रिमिया में विकसित घटना क्रम को लेकर चर्चाएँ शुरु हो गई हैं । जाहिर है, नेपाल में पहली संविधान सभा संघीयता और शासकीय स्वरूप पर उठे तीव्र विवादों के चलते असफल हो चुकी है । वर्तमान दूसरी संविघान सभा में भी इन मुद्दों पर फिर से विवादो का उठना तय है । उस बार की संविधानसभा में सियासी मैदान मे कुछ नये आन्दोलनोÞ से स्थापित कई राजनीतिक शक्तियों की महत्वपर्ूण्ा उपस्थिति थी परन्तु इसबार उनकी उपस्थिति बहुत कमजोर है । संबन्धित एक सांस्कृतिक समुदाय या फिर बहु सांस्कृतिक समुुदाय के पहचान में से किस आधार पर प्रदेशों के स्वरुपो को तय किया जाये, इस पर फिर सडÞक से संविधान सभा तक चलने वाले संभावित तूफान की पुरजोर तैयारी अभी भीतर ही भीतर चल रही प्रतीत होती है । इन हालातों में क्रिमिया पर मास्को के मन्सूबे ने कुछ लोगों में संशय खडेÞ कर दिये हैं । संघीयता के विरोधी और बहुु सांस्कृतिक प्रदेशो के पक्षधरो के खेमें से कुछ लोगों ने क्रिमिया की उपमा देकर तर्क करना शुरु कर दिया है कि चीन और भारत जैसे दो विशाल देशेां के बीच में अवस्थित नेपाल को भी कभी क्रिमिया की नियति का शिकार बनना पडÞ सकता है । उनका मानना है कि संघीयता केा लेकर सोचते समय इस बात पर भी गौर करना चाहिए ।
समय रहते ही हर किसी मसले पर विचार विमर्श के जरिये निष्कर्षपर पहुँचना अच्छी बात तो है परन्तु आधार हीन बातों के पीछे दौडÞना कोई बुद्धिमानी नही है । किसी पर आरोप प्रत्यारोप और शंका करने से पहले हमे अपने ही गिरेवान में झांक कर देखना उचित होगा । नेपाली राजनीति में भाषणबाजी और आन्दोलनों के जरिये कुछ नये मुद्दे जरूर आए हैं परन्तु उस पर अमल करने में बार-बार भारी कमजोरियां हर्ुइ है । मतलब हमारी राजनीतिक प्रवृत्तियां बचकानेपन से अभी तक भी उबर नही पाई है । नेपाल को इस समय सब से अधिक खतरा किसी और से नहीं, ऐसी ही अन्दरुनी प्रवृतियों से है । उत्तर में चीन और दक्षिण में भारत के साथ सांस्कृतिक समानता रखने वाले भाई-बहनों को क्रिमिया के रुसी भाषियो से तुलना करना उनकी नेपाली पहचान पर कीचडÞ उछालना है । इस कदर अविश्वास के बीज बो कर कोई भी एकात्मक और संवृद्ध नेपाल, सोच भी कैसे सकता है – कहने का मतलव है कि क्रिमिया और नेपाल की परिस्थिति उपरी तौर पर भले ही एक सी लगे परन्तु सच्चाई बिल्कुल अलग है, दोनो के बीच तात्विक रुप से कोई समानता नहीं है ।
नेपाल अब तक किसी भी बाहरी देश के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से बचा रहा है । भारत और चीन से चारों ओर घिरे नेपाल के अपने इन दो पडÞोसियो के साथ प्राचीनकाल से ही सुमधुर सांस्कृतिक, आर्र्थिक और राजनीतिक सम्बन्ध रहे हैं । दोनो देश की जनता के बीच की मैत्री तो और भी प्रगाढÞ है । अपनी ही कमजोरियो के कारण नेपाल अपने पडÞोसियो से हर तरक्की में पीछे हो चला है । पिछडेÞपन से निजात पाने के लिए राजनीतिक प्रणाली की आवश्यकता होती है, उसके लिए देर से ही सही अभी भी कोशिशंे जारी हैÞ और संविधान बनाने के लिए संविधानसभा काम कर रही है । क्रिमिया की तरह यहां तत्काल किसी विदेशी ताकत के सामरिक हस्तक्षेप होने की संभावना नहीं है ।
नवीं सदी से इतिहास में दर्ज काले सागर के उत्तरी किनारे बसा क्रिमिया प्रायद्धीप इसकी रणनीतिक महत्व के कारण बारहंवींं सदी के उपरान्त शक्तिशाली देशों व साम्राज्योंे का क्रीडÞा स्थल बन कर रह गया है । रुसी और तर्ुर्की साम्राज्य के लिए रणनीतिक महत्व के कारण किमिया सदा ही प्रभावित रहा है । बारहवीं शताद तक इस क्षेत्र में क्रिमिया ताकतवर किवियन राज्य हुआ करता था । उसके बाद इस राज्य का छोट-छोटे प्रभावहीन टुुकडÞोंं में विघटन हो गया । सन् १७९३ में यह रुसी साम्राज्य का अंग बन गया । इसी तरह रुसी कम्यूनिष्ट क्रान्ति के बाद सन् १९२२ में सोवियत रुस का अंग बन गया । बाद में सोवियत नेता ख्रुश्चेव ने सन् १९५४ मेंं क्रिमिया को रुसी गणराज्य से निकाल कर यूक्रेनी गणराज्य मे मिला दिया । सन १९९१ में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन स्वतन्त्र देश बन गया और क्रिमिया उसका एक स्वायत्त प्रदेेश बना ।
सोवियत संघ के पतन के बाद भी अलग हुये देशों में आर्थिक राजनीतिक और हो सके तो सामरिक सक्रियता के लिए एक गठबन्धन बनाकर रुस इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखना चाहता था । यूक्रेन ने रुस के बदले यूरोपियन यूनियन के साथ सम्झौता किया । इतना ही नही सन् २००६ में यूक्रेन ने अपने क्षेत्र में नेटो साथ मिलकर सैनिक अभ्यास भी किया । इस से रुस नाराज था । कीभ की सत्ता में रुस र्समर्थकं यानकोभिच के आ जाने के बाद परिस्थितियों में भारी बदलाव आया । सन् २०१० मे यानकोभिच ने रुस के साथ कुछ आथ्ािर्क सम्झौते कर आपने रुझान को स्पष्ट किया । यूक्रेन की यानकोविच सरकार ने सन् २०१२ में यूरोपियन यूनियन केे साथ सम्झौते को खारिज कर रुसी खेमे में जाने का निर्ण्र्ााकिया । सरकार के इस फैसले के खिलाफ राजधानी कीभ मे भारी प्रदशर्न हुये । बडे तादाद में लोगों की जानें गर्इृं । रुस ने यूक्रेन कोे दी जानेवाली गैस की मात्रा में भारी कटौती के साथ कीमतों में भारी वृद्धि की । यानकोभिच को सत्ता छोडकर रुस की ओर भागना पडÞा । उधर क्रिमिया में कीभ के खिलाफ और रुस के समथर्न में हथियारबन्द प्रदशर्न होने लगे । इस से एक बात का सहज अनुमान तो लगाया जा सकता है कि यानकोविच के पहले वाली कीभ की सरकारो ने क्रिमियाई रुसी जनता के प्रति अपने को सशंकित बनाए रखीं । आखिर बात जनमत संग्रह और रुस में विलय तक जा पहुँची । इन सभी घटनाओं के बाद मास्को के बयानों में अब थोडÞी सी नरमी आई है । उसने अपने सैनिकों को अखाडेÞ में वापस कर लिया है और यूक्रेन के साथ सम्बन्ध सुधारने का इच्छुक भी बताया है । इन बातों में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाला कल ही बताएगा । जो भी हो एक बात साफ है की रुस क्रिमिया में गृहयूद्ध जरूर थोपा गया है जो स्वयम् क्रिमिया को ही सबसे पहले तबाह कर देगा । अपने अन्दरुनी हालातो को ठीक किए बिना बाहरी ताकतों के पीछे दौडÞने के परिणाम का सीख नेपाल जैसे देशो को क्रिमिया से लेना उचित होगा ।
क्रिमिया का एक और दुःखद सच है वहँा की आदिवासी तारत जाति की स्थिति । बताया जाता है स्तालीन के जमाने में मुश्लिम तातरों को क्रिमिया से विस्थापित होने के लिए बाध्य किया गया था । पिछडेÞ तातरों के प्रति कम्यूनिष्ट मास्को के रवैये के प्रति कहीं से भी आलोचना नहीं हर्ुइ । उसके बाद क्रिमिया में रुसी भाषियों का आप्रवासन बढा और यह रुसी आबादी वाला क्षेत्र बन गया । सोवियत संघ के पतन के बाद वहां तातरो की संख्या में वृद्धि हर्ुइ है । आकडÞों के मुताबिक अब वहां कुल जनसंख्या के बारह फीसद तातर हैं । सोवियतसंघ से स्वतन्त्र होने के बाद वहां की जनसंख्या में गिरावट आ रही है । इन सभी दृष्टि से नेपाल के साथ क्रिमिया की वो समानताएँ नही है जो दूसरों को नेपाल के खिलाफ सैनिक कार्यवाही के लिए प्रेरित करे ।



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