Mon. Oct 2nd, 2023
himalini-sahitya

मैं यहाँ हूँ, एक अंश तुम्हारा, माँ आज फिर तेरी याद आ गई : बसंत चौधरी

माँ तेरी याद




देह की गलने लगी
हिम चोटियां हैं
सांस पर संकट खड़ा है
किंग्कर्तव्य विमूढ़ हुआ हूँ
माँ तेरी याद आ गई
अब हवा बिकने लगी है
बहुत ऊँचे दाम में
धूप से दूरी बढी है
पर साँसें चल रही हैं,
ये सभी तेरी दुआ है ।
नींद आज भी खो जाया करती है
तुम्हारी गोद के बिना
सुन रहा हूँ अर्धचेतन अवस्था में
लोरी, कहानी चाँद वाली
माँ तेरी याद आ गई ।
हरजस भजन की गूँज
अब कहाँ ?
पर सोचता हूँ
मैं यहाँ हूँ
एक अंश तुम्हारा
माँ आज फिर
तेरी याद आ गई ।



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