आलसी दिमाग शैतान का घर
रवीन्द्र झा शंकर’:वास्तव में अकर्मण्य-आलसी व्यक्ति जीवित होते हुए भी मरे के समान है । वह अपना सारा जीवन खाने-पीने, मौज उडÞाने में व्यतीत कर देता है । उसका जीवन पशुओं से भी गया-गुजरा रहता है । वह अपने जीवन में कोई भी अच्छा काम नहीं करता है । वह जो कुछ करता है, या तो सारहीन होता है अथवा शरारत से भरा हुआ मानवता को कलंकित करने वाला होता है ।
जिसे अपने समय की चिन्ता नहीं रहती, उसे अपने मित्र मण्डली और अपने कार्यों की भी परवाह नहीं रहती । समय की लापरवाही के कारण वह अपने जीवन का बहुमूल्य क्षण र्व्यर्थ में खोता रहता है तथा मित्र मण्डली और अपने कार्यो की ओर से लापरवाही उसे घसीट कर पतन के गर्त में ले जा कर गिरा देती हैे । वह अपने- आप को भूल जाता है । मित्रगण जिधर खींच ले जाता है, वह उधर ही चल देता है । इन कार्यो का परिणाम क्या होगा – इस बात को वह नहीं सोचता कि भला क्या और बुरा क्या है, उचित क्या है ओर अनुचित क्या है –
हमें स्मरण रखना चाहिए कि हमें एक बहुत बडÞे कार्य का संपादन करना है, बहुत से शत्रुआंे पर विजय प्राप्त करनी है । बहुत सी बुराइयों का उन्मूलन करना है, बहुत सी मुसीवतें झेलनी हैं, बहुत-से कष्टों पर विजयी होना है, बहुत सी आवश्यकताओं को पूरी करनी है, बहुत से सत्कार्य करने हंै, बहुत से मित्रों की सहायता करनी है, इसी थोडÞे-समय के भीतर क्षणभंगुर जीवन ही में । कितने व्यक्ति कहते हंै कि क्या करुँ, मुझे तो समय नहीं मिल पाता है, चार बजे तक सोने के लिए, सात बजे तक का समय टीभी देखने के लिए है । सर्त्कर्म करने के लिए समय नहीं है, ये सभी बातें आलसपना की हैं, प्रभु ने प्रत्येक मनुष्य के लिए यथेष्ट कार्य करने को दिया है । वह वेद में कहता है- कर्ुवन्नेवेह कर्माणि जिजीविशेत् शतं समाः । अर्थात् कार्य करते हुए ही सौ वर्षतक जीने की इच्छा करो । आलसी मत बनो । एक पीपीलिका तक आलसियों की भाँति हाथ-पर हाथ रख कर नहीं बैठना चाहती-
मैं नन्ही चींटी से बोला, “क्यों यों करती है उद्योग,
पैर तले दव मर जाएगी, कर न पाएगी इनका भोग । ”
तिरस्कार करती वह बोली, “कौन देख पाया भवितव्य –
जग में आकर किया भला क्या, जो न किया पूरा कर्तव्य -”
संसार में आलस्य के लिए कोई स्थान नहीं है । जहाँ कार्य के लिए समय निर्दिष्ट किया है, वहाँ आराधना के लिए भी समय का व्यवधान किया है, जिसे थोडÞा काम करना है, उसे चाहिए कि वह आत्म-निर्माण में, आराधना में, अपना बाँकी समय लगाए, जिसे बहुत अधिक कार्य करना हो, उसे चाहिए कि वह अपना सारा कार्य प्रभु सेवार्थ पवित्र उद्देश्य से करता रहे और जब भी कुछ समय मिले, आराधना करने बैठ जाए ।
जो हो हमारे जीवन में आलस्य, जब तक दूर रहेगा, तब तक लम्पटता, कोमलता, निन्दा चर्चा आदि पापों से हम र्सवथा पृथक रह सकेंगे, फिर प्रलोभनों के लिए समय ही नहीं रह जाएगा, इसीलिए जो मनुष्य हर समय काम में लगे रहते हैं, उन पर विषयों का प्रभाव बहुत कम होता है, उन पर कभी-कभी ही पापों का आक्रमण हो पाता है, विशेष परिस्थितियों में पडÞ जाने पर ही प्रलोभन उन पर विजय प्राप्त कर पाते हैं, पर आलसी व्यक्ति सदैव ही उनका शिकार बना रहता है, उसके आलस्य का वे भरपूर लाभ उठाते हैं और पराजित करने में वे अपनी सारी शक्ति लगा देते हैं, हतभागा विवश होकर उनके सम्मुख घुटने टेक देता है ।
जान-बूझ कर कर्तव्य की अवहेलना करने वाले आलसी जीव तो इससे भी अधिक निन्दा के पात्र हैं । समय ऐसी अमूल्य वस्तु है जो एक बार हाथ से निकल जाने पर दुवारा हाथ नहीं आती । ऐसी अमूल्य वस्तु का अपरिमित व्यय कितना हानिकारक हो सकता है । सोच कर आर्श्चर्यचकित होना पडÞेगा । लाख प्रयत्न करके भी इस कमी को पूरा नहीं किया जा सकता । समय के सर्न्दर्भ में एक प्रसिद्ध कहावत है, ‘आलसी दिमाग शैतान का घर । ‘