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काठमान्डू



 

वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है। वट सावित्री व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की  पूजन सामग्री पूजा विधि और महत्व के बारे में।

हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन रखा जाता है। महिलाएं प्रत्येक वर्ष वट सावित्री व्रत का इंतजार करती हैं। इस व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह व्रत पति की दीर्घायु और संतान के उज्जवल भविष्य के लिए रखा जाता है। माता सावित्री की कथा तो लगभग सभी ने सुनी होगी। वट सावित्री व्रत करने से सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है।

वट सावित्री पूजन सामग्री

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वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री में सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप-दीप, घी, फल-फूल, बांस का पंखा, लाल कलावा, कच्चा सूत, सुहाग का सामान, पूड़ि‍यां, बरगद का फल, भिगोया हुआ चना, जल से भरा कलश आदि शामिल हैं।

वट सावित्री व्रत पूजा विधि

वट सावित्री व्रत के दिन स्नान आदि से निवृत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद वट सावित्री व्रत और पूजा का संकल्प लें। माता सावित्री और सत्यवान की पूजा करें। साथ ही जल से वटवृक्ष को सींचे और कच्चा धागा वटवृक्ष के चारों ओर लपेट दें। इस दौरान उसकी तीन बार परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने बनाएं और उसे पहनकर सावित्री-सत्यवान की पुण्यकथा को सुनें। यह कथा दूसरे को भी सुनाएं। अब भीगे हुए चने एक पात्र में निकाल दें, कुछ रुपए के साथ अपनी सास के पैर छूकर आशीष लें। पूजा के समापन पर बांस के एक पात्र में वस्त्र तथा फल किसी ब्राह्मण को दान करें।

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वट सावित्री व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सावित्री अपने पति के प्राण यमराज से मुक्त कराकर ले आई थीं। इसी वजह से इस व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष और सावित्री-सत्यवान की पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है, जिसके कारण सुहागिनों को विशेष फल की प्राप्ति होता है। मान्यता के अनुसार, वट सावित्री व्रत की कथा को सुनने मात्र से ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है।

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