नजरें हमेशा गरीब की रोजी–रोटी पर ही क्यों ? : कंचना झा
कंचना झा, हिमालिनी अंक अगस्त । भुवनेश्वर की एक छोटी सी गली, बहुत ही साफ सुथरी गली । जहाँ सड़क के दोनों ओर पेड़ लगे हैं । वही सड़क के एक ओर एक घने पेड़ के नीचे एक छोटी सी दुकान है । जहाँ सुबह के ७ बजे से लोगों की भीड़ रहती है । नाश्ता के लिए । वहाँ एक नौजवान अपनी माँ और पिता के साथ एक ठेले पर इडली, डोसा, चटनी, तरकारी,उत्पम,और उपमा, गरम गरम बनाता है । हर आने जाने वाले वहाँ रुकते हैं नाश्ता करते हैं, पैसे दिए और चल दिए अपने काम पर । किसी को कोई आपत्ति नहीं है । नगर निगम ने कुछ नियम बनाए हैं स्ट्रीट फूड और सफाई को लेकर । वहाँ एक विशेष तरह की छूट है स्ट्रीट फूड को लेकर । लेकिन ध्यान केवल इतना रखा जाता है कि वह नाश्ता हेल्दी हो जिसमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं हो । ताजा और गरम–गरम बनावें, और लोगों को कम पैसे में खिलावे । उस गली में केवल एक नौजवान ही नहीं बहुत से नौजवान हैं जो इसी तरह का काम कर अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं । स्ट्रीट फूड का काम करने वाला हर युवा सफाई के साथ शुद्ध पानी का पूरा–पूरा ध्यान रखता है ।
महंगाई के इस जमाने में वहाँ यह खाना जरा भी महंगा नहीं । आप भारतीय २०रुपए में चार इडली चटनी और तरकारी खा सकते हैं । उसी तरह आप चाहे तो डोसा ३० भारतीय रुपए में और उत्पम तथा उपमा ४० रुपए में खा सकते हैं । और क्या चाहिए ? एक आदमी को यदि कम पैसे में दो वक्त का नाश्ता मिल जाए तो वह जमकर काम कर सकेगा । और कुछ पैसे बचा भी सकेगा । नियम कुछ इस तरह के बनाए गए हैं कि वहाँ के लोग सुबह के समय में ७ से ११ बजे तक सड़क के दोनों ओर पेड़ के नीचे ठेला लगा सकते हैं । दोपहर में सभी अपने ऑफिस का काम करते हैं और फिर शाम को कुछ दूसरे लोग ठेला लगाते हैं । खाने वाले लोगों की इतनी भीड़ लगी रहती हैं कि लोगों को गिनना मुश्किल हो जाए ।
यह जानकार बहुत अच्छा लगता है कि हमारे पड़ोसी देश के युवक किसी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझते । वो काम को काम समझते हैं और इसमें सरकार उनकी पूरी सहायता करती है । उन्हें किसी तरह से रोका नहीं जाता है । सरकार केवल इतना चाहती है कि वो विदेश नहीं जाए, अपने देश में अपना बिजनेस करें ताकि देश के साथ–साथ उसकी भी तरक्की हो । जिस शहर की यहाँ चर्चा की जा रही है यह उड़ीसा का पुराना शहर भुवनेश्वर है । जो आधुनिकता के साथ अपने इतिहास को भी साथ लेकर चल रहा है । ये वो शहर है, जहाँ से करीब ६० किलोमीटर की दूरी पर जगन्नाथ पुरी है । समुद्र की लहरें मन को भाव विभोर कर देती है । फिर कोर्णाक मंदिर है । लिंगेश्वर महादेव हैं, राम मंदिर है । हर जगह पर स्ट्रीट फूड का काफी चलन देखा जाता है । समुद्र तट पर बहुत से युवको ने ठेले लगाए हैं । तरह–तरह के आइटम बनाते है और लोग खूब आनंद से उसको खाते हैं । ये है रोजगार सृजन करना । आप दो बातें एक साथ कर रहे हैं एक तो आपके देश का युवा आपके साथ खड़ा है और दूसरा सभी का अपना–अपना रोजगार है । यानी एक ऐसा चलन जो पहले बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन अब सरकार भी युवाओं की पसंद को जान गए हैं तो उस अनुसार अपने देश को बढ़ा रहे हैं । ये केवल स्ट्रीट फूड नहीं है । ये रोजगार की बातें हैं । जो जहाँ जैसे है वह वहाँ अपनी ओर से सफाई का पूरा–पूरा ध्यान रखते हैं । कम पैसे में सरकार ने जगह–जगह पर पानी की सुविधा दे रखी है । आप कहीं भी जाए, आप शुद्ध पानी पी सकते हैं । वो भी निःशुल्क ।
अब करते हैं अपने देश नेपाल की बातें । हम और सभी जानते हैं कि हमारा देश विकास की तलाश में है । हम नए नेपाल की कल्पना कर रहे हैं । हम नया काठमांडू शहर को बनाने जा रहे हैं और ये जरूरी भी है । लेकिन किसी नए शहर के निर्माण से पहले कुछ योजनाएं बनाई जाती है । कुछ विकसित शहरों का अवलोकन किया जाता है । अनुसंधान किया जाता है न केवल सड़कों का वरन उसके साथ आर्थिक, धार्मिक,सामाजिक संरचनाओं का भी अनुसंधान किया जाता है । इस बात की भी तहकीकात की जाती है कि जब हम इन चीजों को हटा देंगे तो इसका परिणाम क्या होगा ? यह भी देखना होगा कि हम किसी को मजबूर तो नहीं कर रहे हैं भूखे सोने के लिए । या हम किसी का रोजगार तो नहीं छीन रहे हैं ना । ऐसा न हो की हम आधुनिक शहर बनाने के चक्कर में अपने उन नागरिको का शोषण करने लगे जो पहले से ही निरीह हैं या, पहले ही हम जिनकी बातों को अनसूना कर रहे हैं, या फिर वो जिन्हें हम उस तबके में रखते हैं जिनके बारे में कभी सोचते ही नहीं है । केवल चार लोग मिलकर मीटिंग करते हैं अपनी बातों को रखते हैं और फाइनल सूचना आकर सुना देते हैं । देश के विकास के बारे में सोचना कोई गलत बात नहीं है । राष्ट्रीयता की बातें करना भी गलत नहीं है । अपने देश को सुन्दर और स्वच्छ बनाने की बातें भी गलत नहीं है लेकिन क्या इसके लिए स्ट्रीट फूड का बंद कर देना या उन्हें अपने महानगर से हटा देना । ये कहाँ तक उचित है ?
कुछ दिन पहले एक समाचार पढ़ा था कि बाजार व्यवस्थापन तथा उपभोक्ता हित संरक्षण समिति की बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि बरसात के समय में खुले रूप में बेचे जाने वाले वस्तु जैसे पानीपुरी, चटपटी और भी पेय पदार्थ, तरकारी तथा फलफूल के बजार में निगरानी बढ़ाई जाएगी । निगरानी बढ़ानी भी चाहिए क्योंकि ये सेहत, स्वस्थय की बात है । लोगों की जिन्दगी की बात है । इसमें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है । लेकिन हर बार गरीबों पर ही नजर क्यों जाती है काठमांडू महानगरपालिका की ? कभी सड़क पर खड़े फलफूल बेच रहे साइकिल वालों पर नजर जाती है तो कभी सब्जी बचने वालों पर । दो वक्त की रोटी कोई चैन से मेहनत कर, चोरी चकारी नहीं कर खाना चाहता है तो महानगरपालिका को आपत्ति क्यों ? ये बात किसी की समझ में नहीं आ रही है । बैठक में प्रमुख प्रशासकीय अधिकृत बसन्त अधिकारी ने कहा कि पानीपुरी, चटपटी जैसे खाने वाली चीजों से, खाने वाले व्यक्तियों को हैजा हो सकता है तथा यह बीमारी बहुत तेजी से फैल सकती है । और इसे फैलने से रोकने के लिए आवश्यक है कि हम पहले से ही सावधानी बरतें और इस समय पर इन वस्तुओं को खुलेआम बिक्री से बचाए ।
समस्या ये नहीं है कि उन्हें हटाया जा रहा है । समस्या यह है हम किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले क्यों सोच विचार नहंीं करते है ? हम किसी को हटाना चाह रहे हैं तो इस बात पर जरा सा भी ध्यान नहीं रख रहे हैं कि इसका असर उनपर क्या पड़ेगा ? या जिस पानीपुरी, चटपटे वालों या सड़क पर रहकर काम करने वाले को आप हटाना चाहते हैं उसके लिए कोई और व्यवस्था की है या नहीं ? क्या इस पर बहस नहीं होनी चाहिए थी । एक व्यवस्थापन तो होनी ही चाहिए ।
फिर हम और आप ये क्यों नहीं देखते कि देश में एक ऐसे तबके के लोग भी हैं जो केवल २० या ४० रुपए की चटपटी,पानीपुरी, या फिर मकई खाकर अपना एक वक्त निकाल देता है । उसके पास इतने पैसे नहीं है कि वह किसी होटल या रेस्टोरेंट में बैठकर खाए । क्या आने वाले समय में उनसे जीने का हक भी छीन लिया जाएगा ?
आप स्वथ्य शहर, स्वच्छ शहर, सुन्दर शहर, हरा–भरा शहर बनावें लेकिन नजरें गिद्ध की रखें । रास्ते पर साईकिल या ठेले पर सब्जी, चटपटी, पानीपुरी या किसी मकई बेचने वाला, या फिर फलफूल वाले को ही न देखें उन्हें भी देखें जो बड़े बड़े होटलों में बहुत तरह के ऐसे चीज परोसते हैं जिन्हें खाकर लोग बीमार पड़ जाते हैं । लेकिन न तो हमारी दृष्टि वहाँ तक जाती है न ही महानगर के मेयर और उपमेयर साहिबा की ।
भारत के उड़ीसा के एक नए शहर का उल्लेख केवल इसलिए किया गया है ताकि हम समझ सके कि एक नए शहर को एक दिन में नहीं बनाया गया है बल्कि पूरी छानबीन, तहकीकात, और अनुसंधान के बाद बनाया गया है । तभी वो अपने इतिहास के साथ आधुनिकता को बनाए रखने में सफल हो सका है । आप आधुनिकता के साथ अपने अतीत, अपने कुछ पुराने चीजों को नए आयाम के साथ रखें और आगे बढ़े तभी एक सुन्दर और स्वच्छ शहर का निर्माण कर सकेंगे ।
सुन्दर शहर बनाने के चक्कर में क्या किया जा रहा है ? आजकल एकबार सड़क का निर्माण किया है । कुछ दिनों के बाद अचानक से याद आता है कि अरे सड़क के नीचे से नाला निकालना है । पाईप बिठाना है बस तुरंत सड़क को तोड़कर नाला के पाइप बिठाने लगते हैं । अभी ये काम हुआ नहीं की फिर बरसात शुरु बनी बनाई सड़क का कबारा बन जाता है । इन सबके पीछे केवल और केवल यही है कि किसी भी काम को करने से पहले कोई योजना नहीं बनाई जाती है ।
हमें युवा नेताओं से बहुत उम्मीदें थी कि वो जब राजनीति में आएंगे तो अपनी दृष्टि को खुला रखेंगे । वो जानते हैं कि हमारे देश में हर तबके की जनता निवास करती है तो हमें उसी तरह के नियम कानून बनाने होंगे ताकि कोई भूखा न रहे । कोई विदेश नहीं जाएं । सभी अपने परिवार और अपने देश में रहे । रही कुछ बाहर वालों की जो बाहर से आकर हमारे देश में काम करते हैं तो इसमें तो हमारी जीत ही है जो कम से कम हमारे देश में भी लोग काम करने आते हैं । इससे हमें क्या तकलीफ है । लेकिन अफसोस की युवाओं में भी दूर दृष्टि की कमी है । उन्हें भी अब केवल और केवल वहीं दिखता है जो पुराने नेताओं और लोगों को दिखता था । वो भी उसी जाल में फंस रहे हैं जिसमें एक अरसे से हमारा नेपाल फंसा है । वो निकलना चाहता है लेकिन निकल नहीं पा रहा है ।