एमाले में हो रही नेतृत्व के विकल्प की तलाश : कंचना झा




कंचना झा, काठमांडू, १५ असोज । मैथिली में एक कहावत है ‘नव घर उठे पुरान घर खसे’ ये तो जानी मानी बात है कि जब कोई पुराना घर गिरेगा तभी वहाँ एक नए घर का निर्माण किया जा सकेगा । यह बात हर क्षेत्र में लागू होती है तो राजनीति इससे अछूता कैसे रह सकता है ? अभी नेकपा एमाले की भी कुछ यही अवस्था है । नेकपा एमाले जहाँ वर्चस्व है केपी शर्मा ओली की । ओली अपने अच्छे कार्यकाल या कुशल राजनीतिज्ञ के रुप में नहीं याद किए जाते हैं । ओली याद किए जाते है अपनी बोली के लिए । वो अपनी बोलने की शैली के लिए जाने जाएंगे आने वाले समय में भी । जब देश आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार से लड़ रहा होता है वो एक हंसी ठहाका की बात निकाल जनता को हंसाने का काम करते हैं । रही बात वर्चस्व की तो ये न कभी किसी एक की रही है न रहेगी । तो अपनी पार्टी में अभी ओली के वर्चस्व में भी कमी आ रही है । ये पूरी तरह से दिखाई दी नेकपा एमाले के प्रदेश अधिवेशन में । जहाँ आन्तरिक लोकतन्त्र की तलाश की जा रही है ।
हुआ कुछ यूँ कि ओली चाहते थे कि किसी भी प्रदेश अधिवेशन में किसी तरह की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं हो । वो हमेशा चाहते हैं कि सर्वसम्मत की विधि को अपनाया जाए । और यही वो प्रदेश अधिवेशन में चाहते थे कि प्रतिस्पर्धा न होकर सर्वसम्मत की विधि अपनाई जाए । ओली ने यह निर्देश दिया था कि सर्वसम्मत की विधि अपनाई जाए । लेकिन उनके इस निर्देशन का पालन नहीं किया गया ।
इसबार पार्टी के भीतर ही तनाव नजर आई जहाँ लुम्बिनी प्रदेश में उनके इस विधि का उल्लंघन हुआ और आन्तरिक प्रतिस्पर्धा शुरु हुई । यहाँ से ये नजर आया कि अब पार्टी अध्यक्ष ओली की बातों को पार्टी में नकारा जा रहा है । उनका जो एकछत्र राज था उसमें कमी आ रही है । पार्टी के भीतर लोग उनकी बातों से असहमत हैं ये अधिवेशन में खुलकर नजर आ रही है । भादव १५ से लेकर १८ तक हुए प्रदेश अधिवेशन में यह स्पष्ट दिखा कि कि प्रतिस्पर्धा हुई । पाल्पा के पूर्वसांसद एवं उसी प्रदेश के निवर्तमान अध्यक्ष राधाकृष्ण कँडेल और केन्द्रीय सदस्य हरि रिजाल के बीच अध्यक्ष पद के लिए प्रतिस्पर्धा हुई ।
लुम्बिनी के बाद इस तरह की आन्तरिक प्रतिस्पर्धा वागमती प्रदेश, कोसी प्रदेश और कर्णाली प्रदेश में भी हुई । वागमती में पार्टी की ईच्छा थी कि सर्वसम्मति विधि से चुनाव हो । लेकिन ये वातावरण तैयार नहीं हो सका । यानी कहीं न कहीं ओली की यह असफलता है । वो चाह कुछ रहे हैं लेकिन पार्टी के लोग कुछ और ही चाह रहे हैं । और उनके खिलाफ जाकर पार्टी में काम कर रहे हैं ।
लुम्बिनी में ओली की जो इच्छा थी वह पूरी नहीं हुई तो उन्होंने वागमती में प्यानल बनाकर उम्मीदवारी ही खारिज करने की धमकी दे दी । लेकिन धमकी देने का कोई असर नहीं हुआ ।
कुछ ऐसी ही बात गण्डकी अधिवेशन में न हो इसके लिए तैयारी चल रही है । एमाले के उपमहासचिव पृथ्वी सुब्बा गुरुङ का कहना कि गण्डकी में ओली यही चाहते हैं कि सर्वसम्मत विधि को अपनाया जाए । लेकिन वागमती में जो दिखा वो अच्छा नहीं हुआ ।
यदि हम प्रतिस्पर्धा की बात करेंगे तो सभी जानते हैं कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लोकतंत्र का गहना है । जब लोकतंत्र है तो प्रतिस्पर्धा होगी ही । और यह जरुरी भी है । एक व्यक्ति की तानाशाही आखिर कब तक चलेगी । इतिहास गवाह है कि तानाशाही का अंत होता ही है । जब लोकतंत्र है तो सर्वसम्मति से चुनाव क्यों हो? किसी एक व्यक्ति अनुरुप क्यों हो चुनाव । स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो तो पता चलें कि किसमें कितना दम है ? लोगों को अवसर मिले कि वो अपने मुताबिक अपने नेता का चुनाव करें ।
लेकिन इतना होते हुए भी नेकपा एमाले में ओली के बाद किसी और का चेहरा नजर नहीं आता है । उनमें जो अराजकता है वो दूसरे में नहीं । यह सही है कि पार्टी के भीतर कुछ लोग खुलकर उनके विरुद्ध बोल रहे हैं । पार्टी के कुछ लोग यह चाहते हैं कि अध्यक्ष पद का चुनाव हो तो एक नया चेहरा आए । इसलिए प्रदेश अधिवेशन में कुछ इस तरह की गतिविधियां नजर आ रही हैं । सत्य है कि अभी उनके वर्चस्व में कमी आई है लेकिन उन्हें हटाना इतना आसान नहीं होगा ।
