नवें महाधिवेशन के नए तेवर
श्रीमन नारायण:अन्ततः खड्ग प्रसाद शर्मा “ओली” ही एमाले के नये तारणहार हुए । लगता है सन् २०१४ उनके लिए सफलताओं का वर्षहै । वर्षके प्रारम्भ में उन्हों ने पार्टर्ीींसदीय दल के नेता के चुनाव में झलनाथ खनाल एवं माधवकुमार नेपाल को पराजित किया था और पुनः पार्टर्ीीध्यक्ष के चुनाव में उसी जोडÞी को पराजित किया । संसदीय दल के नेता ने खनाल को पराजित कर तथा पार्टर्ीीध्यक्ष के चुनाव में नेपाल को पराजित कर ओली ने सावित कर दिया है कि एमाले में उनसे बडा नेता कोई नहीं है । एमाले पार्टर्ीीब उनके रहमोकरम पर चलेगी ।
एमाले के इस ९ वें महाधिवेशन को कतिपय कारणों से जाना जाएगा । संविधानसभा जो फिलहाल नेपाल का संसद भी है, इसमें यह दूसरी सबसे बडÞी पार्टर्ीीै । कहा जाता है कि सियासत में शक्ति के दो केन्द्र हमेशा वजूÞद की टकराहट का कारण बनते हैं लिहाजा उन्हे काम करने में दिक्कत नहीं होगी । पार्टर्ीीपाध्यक्ष के पाँच पदों के लिए हुए निर्वाचन में नेपाल र्समर्थक भीम रावल, युवराज ज्ञवाली एवं अष्टलक्ष्मी शाक्य निर्वाचित हुए, वहीं ओली र्समर्थक वामदेव गौतम एवं विद्या भण्डारी विजयी हुए । महासचिव में ओली र्समर्थकर् इश्वर पोखरेल ने नेपाल र्समर्थक सुरेन्द्र पाण्डे को ६ वोटो के मामूली अन्तर से पराजित किया । उपमहासचिव में नेपाल र्समर्थक तेजतर्रर्ाानेता घनश्याम भुषाल विजयी होने में सफल रहे वहीं दूसरे उपमहासचिव चुनाव में ओली र्समर्थक विष्णु पौडेल विजयी हुए । घनश्याम भुसाल एक ऐसे शख्सियत हैं, जो अकेले भी भाडÞ को फोडÞ सकते हैं । सचिव में नेपाल र्समर्थक गोकर्ण्र्ाावष्ट, योगेश भट्टर्राई एवं भीम आचार्य विजयी हुए । वहीं ओली र्समर्थक शान्त एवं सौम्य स्वभाव के प्रदीप ज्ञवाली तथा पृथ्वी सुब्बा गुरुंग विजयी हुए । गोकर्ण्र्ाावष्ट को र्सवाधिक मत मिले । देश के ऊर्जा मन्त्री रहते उन्होंने जोर् इमानदारी दिखाई, इसका फल उन्हे मिला । वहीर्ंर् इमानदार होने के बावजूद मधेसी होना लालबाबु पण्डित को महँगा पडÞा । देश के कर्मिक मन्त्री के रूप मंे उन्होंने अब तक अच्छा काम किया है परन्तु वे एमाले कार्यकर्ताओं की नजरों में अच्छे नहीं दिखे । मधेशी नेताओं का पराजय का सिलसिला जारी है । लालबाबु पण्डित नेपाल खेमे से उपाध्यक्ष पद के प्रत्याशी थे जबकि धर्मनाथ साह ओली खेमे से परन्तु दोनों पराजय के शिकार हुए । उपाध्यक्ष के पद में तीन पहाडÞी ब्राहृमण, एक क्षत्री एवं एक क्षत्री/नेवार निर्वाचित हुए । अध्यक्ष, महासचिव एवं उपमहासचिव पद पहाडÞी ब्राहृमणों के ही नाम रहा । सचिव में तीन पहाडÞी ब्राहृमण एक क्षत्रीय एवं एक जनजाति निर्वाचित हुए । रामचन्द्र झा सरीखे नेताओं को पार्टर्ीीे चलता कर एमाले का एजेन्सी मधेस में खुद ही चलाने का मनसूवा बनाए रघुवीर महासेठ को मुँह की खानी पडÞी । महाधिवेशन में भी उन्होंने जमकर पैसा बहाया था, ऐसा आरोप है । एमाले में मधेशियों की अवस्था याचक की ही है । महेन्द्रराय यादव, गोपाल ठाकुर, रिजवान अन्सारी, रामचन्द्र झा एवं सलीम मियाँ अन्सारी सरीखे मधेसी नेताओं के पार्टर्ीीे अलग होने के कारण पार्टर्ीीें खुद का स्थान एवं भविष्य सुरक्षित देखनेवाले नेता शायद अपने बारे में सोचने के लिए कुछ नयाँ जरूर ही सोच रहे होंगे । कुछ लोगों का कहना था कि उपाध्यक्षका एक पद मधेसी एवं एक जनजाति के लिए आरक्षित कर देना चाहिए था परन्तु एमाले वैसी पार्टर्ीीो जातीय राजनीति पर भी भरोसा नहीं करती है, ऐसा एमाले में रहनेवाले मधेसी नेता भी कहते रहते हैं, फिर तो काहे को आँसू बहाने का ।
ओली की शख्सियत
के.पी. ओली एमाले के पुराने नेताओं में से एक हैं । वि.सं. २०३३ साल से राजनीति में सक्रिय ओली १४ वर्षतक जेल में रहे हैं । पार्टर्ीीा नेतृत्व चाहे खनाल के हाथों में रहा हो या नेपाल के, ओली पार्टर्ीीें हमेशा से शक्तिशाली रहे हैं तथा उनकी बातों को अनसुना नहीं किया जाता था । ओली की विशेषता यह है कि उनका भाषण बेजोडÞ होता है तथा मुहावरों के जरिए अपने विपक्षी पर सटीक निशाना साधते हैं । नेपाल के माओावदी जब जंगल से निकलकर देश की राजनीति के मूलधार में समाहित हुए थे उस समय ओली के व्यंग्यवाण से माओवादी नेता आक्रोशित हो उठते थे । एक वार माओवादी के गुरिल्लों ने तो ओली के साथ धक्का, मुक्का करने का प्रयास किया था । ओली ने कहा था कि, अगर माओवादियांे को अपनी ताकत या क्षमता पर इतना ही भरोसा है तो ओलम्पिक खेलने जाएँ । पहलवानी बौक्सिंग, मैराथन या सूटिंग में देश के लिए मेडल जीतकर लाएँ मैं भी पुरस्कार दूँगा । बेवजह देश के अन्दर अपनी ऊर्जा को बरवाद क्यों कर रहे हैं – वैसे ही वि.स. २०५६ साल में जब कृष्णप्रसाद भट्टर्राई ने अपने मन्त्री मण्डल का गठन किया था तो पत्रकारांे ने उनसे उनकी प्रतिक्रिया माँगी थी तो ओली ने कहा था कि, इस मन्त्री मण्डल के बहुत से सदस्य उत्खनन -खुदाई) से प्राप्त एवं पुरातात्विक महत्व के हैं ।
ओली माओवादी के घोर आलोचक हैं इसलिए पार्टर्ीीे अन्दर उन्हें काँग्रेस र्समर्थक भी माना जाता है । पार्टर्ीीो लोकतान्त्रिक रास्ते जाना चाहिए तथा सामूहिक नेतृत्व प्रणाली पर भरोसा करना चाहिए यह सुझाव ओली का ही था । ओली मधेसी के प्रति उदार माने जाते हैं, वे दिखावा में यकीन नहीं रखते नतीजा पर भरोसा रखते हैं । वि.सं. २०५७ साल में ऋत्विक रोशन काण्ड के दौरान ओली ने कहा था- इस काण्ड की निन्दा होनी चाहिए तथा इस घटना से मधेशियों के मन में जो दुख उत्पन्न हुआ है, उसका असर अगले तीस वर्षतक रहेगा । कहना न होगा कि उसके वाद निरन्तर यह खाई चौडÞी होती गयी है । ओली का माओवादी के साथ शायद ही अच्छा रिश्ता रहे परन्तु मधेसी दल चाहे तो एमाले के साथ करीबी रिश्ता बना सकते हैं । संघीयता के सवाल पर ओली का दृष्टिकोण अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है । लिहाजा उनसे निरन्तर सर्म्पर्क रखना मधेशी दलांे के हित में होगा । एमाले के इस नवें महाधिवेशन में निर्वाचन परिणाम मिश्रति होने के कारण पार्टर्ीीवभाजन का खतरा टल गया है । परन्तु सैद्धान्तिक रूप मंे ओली र्समर्थक से ओली विरोधी मजबूत दिखते हैं । एमाले के कार्यकर्ताओ ने अच्छे नेतृत्व मण्डली का चयन किया है । सैद्धान्तिक रूप में एमाले को अब तक अस्थिर, ढुलमुल रवैया वाला एवं अविश्वसनीय करार दिया जाता रहा है । पार्टर्ीीे पर्ूव महासचिव मदन भण्डारी ने जब से पार्टर्ीीा सिद्धान्त जनता की बहुदलीय जनवाद में कार्यान्वयन किया, तभी से यह विवाद में है ।
राजनीतिक पण्डितों के अनुसार एमाले यूरो कम्यूनिज्म को आत्मसात करने वाली पार्टर्ीीै । मार्क्स और एंगेल के समय से ही यह चर्चा चलती आई है कि कम्युनिष्टांे को लोकतान्त्रिक तौर तरीका अपनाना चाहिए या नहीं । लोकतन्त्रवादियों को प्रतिक्रियावादी घोषित कर उसे हथियारांे के बलबूते बेदखल करना चाहिए एवं र्सवहारा वर्ग का तानाशाही कायम किया जाए ताकि सत्ता का सदुपयोग कर वर्ग शत्रु का विनाश किया जाए, ऐसा कहते हुए मार्क्स ने जनता का विश्वास जीत कर परिवर्तन का एजेण्डा लागू करने वाले लोकतन्त्रवादियों को संशोधनवादी कहकर निन्दा किया था । बाद में इसे ही यूरो कम्युनिजम कहा गया । जनता के बहुदलीय जनवाद का अर्थ उसी यूरो कम्यूनिजम का फोटोकापी है । यह कोई मौलिक चिन्तन नहीं कन्यूनिजम एवं लोकतन्त्र का वर्ण्र्ाांकर है, तभी तो माओवादी नेता डा. बाबुराम भट्टर्राई ने भी एमाले के सिद्धान्त को तेस्रो लिंगी -हिजडा) सिद्धान्त की संज्ञा दी थी । शायद यही वजह है कि यह कभी लोकतन्त्रवादी दिखता है तो कभी उग्रवाद के सवाल पर माआवादी का भी गुरु । फिर भी एमाले संसदीय व्यवस्थापक को आत्मसात् करने वाला कम्यूनिष्ट है । लोकतन्त्र र्समर्थककांे के लिए यह खतरा नहीं अपितु सहयोगी है । एमाले की इसी बदलती छवि को देख अब अमेरिका और यूरोप वाले भी इसपर यकीन करने लगे हैं । एमाले के ९ वें महाधिवेशन में गालीगलौज एवं आरोप प्रत्यारोप का जो दौर चला, वह काफी भद्दा था । पार्टर्ीीारा आमन्त्रित विदेशी अतिथियों के साथ भी धक्कामुक्की एवं बदसलूकी की गई । बाबजूद एमाले के नये नेतृत्व खास कर के ओली से देश को काफी अपेक्षाएँ हैं ।