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“अस्थिरता लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं” : श्वेता दीप्ति

डॉ श्वेता दीप्ति, (सम्पादकीय) हिमालिनी ,अंक मार्च 2024  : प्रायः गठबंधन की सरकारें प्रजातंत्र का मान सम्मान भूल कर मनमानी को महत्त्व देती हैं । क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की बाढ़ के कारण कई बार एक दल को बहुमत नहीं मिलता । ऐसी स्थिति में कुछ दल मिलकर गठबंधन सरकार बनाते हैं । यह भी सत्य है कि विपरीत विचारधारा के दल ज्यादा दिनों तक साथ में रह कर काम नहीं करते हैं । नतीजा सरकारें बनती बिगड़ती रहती हैं । इससे देश की आर्थिक स्थिति पर तो प्रभाव पड़ता ही है, साथ ही विकास कार्यों में भी बाधा आती है । अच्छा हो यदि केन्द्रीय राजनीति में दो दलीय राजनीतिक व्यवस्था को लागू किया जाए । यदि ईमानदार नजरिए से देखा जाए तो आज की राजनीति लोकतंत्र की धज्जियां ही उड़ा रही हैं । गठबंधन की राजनीति में लोकतंत्र को बहुत नुकसान हो रहा है ।

सत्ता प्राप्ति के लिए विभिन्न विचारधाराओं वाले राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने में सफल तो हो जाते हैं, लेकिन उनका ध्यान सिर्फ सत्ता सुख पर रहता है, जिससे वे जनता की समस्याओं के प्रति ध्यान नहीं दे पाते है । लोकतंत्र के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है ।

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जापान, कोरिया और ताइवान जैसे देश, जो हमारी राजनीतिक और आर्थिक स्थिति से भी बदतर स्थिति में थे, आज विकास के उच्चतम शिखर पर पहुंच गए हैं, जबकि नेपाल अब तक अपने आर्थिक या राजनीतिक स्वरूप को निर्विवाद स्थिरता प्रदान नहीं कर सका है । २०४५ तक हमारे पास खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता थी और हम खाद्यान्न, दलहन और तिलहन को विदेशों में निर्यात करते थे, लेकिन आज इन बातों पर नई पीढ़ी यकीन नहीं करेगी । क्योंकि आज हम पूरी तरह अपने पड़ोसी राष्ट्र पर निर्भर हैं । देश में नौकरी के अवसर नहीं होने के कारण गरीब युवा भारत में रह रहे हैं, जो युवा थोड़ा कर्ज ले सकते हैं वे जापान, कोरिया और खाड़ी देशों में रह रहे हैं, जबकि शिक्षित युवा अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, स्विट्जरलैंड जैसे अंग्रेजी देशों में रह रहे हैं । नेपाल अब बूढ़ों का ऐसा देश बन गया है कि जहाँ किसी दिन शवों को श्मशानघाट तक ले जाने वाले लोग नहीं मिलेंगे ।

महर्षि, ऋषि की इस पवित्र भूमि पर ‘लूटो और खाओ’ की नीति ने अपना वर्चस्व जमा लिया है जो अति शर्मनाक है । राजनीतिक अस्थिरता के नाम पर लूट और भ्रष्टाचार को सर्वव्यापी बना दिया गया है । ऐसी बुरी स्थिति के लिए राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और नेतृत्व का चरित्र अधिक जिम्मेदार है । हम जहां हैं वहां नेतृत्व पक्ष या तो विकास और समृद्धि इन दो शब्दों के वास्तविक अर्थ और उसमें निहित भावनाओं को समझ नहीं पा रहा है या फिर उसे आत्मसात नहीं कर पा रहा है । विकास का अर्थ है सकारात्मक विकास एवं प्रगति, और विकास का अपरिहार्य परिणाम ‘समृद्धि’ होना चाहिए । अन्यथा इसे विकास नहीं कहा जा सकता । समृद्धि पूर्ण, स्थायी, व्यापक, अहिंसक, सुलभ और न्यायपूर्ण होती है । हालांकि नेपाल के संविधान २०७२ में लोकतांत्रिक समाजवाद की बात कही गई है, लेकिन जब तक देश में रोजगार के अवसर युद्ध स्तर तक नहीं बढ़ जाते, तब तक सभी नारे, आश्वासन और लोकतांत्रिक आदर्श गपशप के अलावा कुछ नहीं माने जाएंगे । नेपाल और नेपाली जनता के सर्वोत्तम हित और कल्याण पर ध्यान देना आवश्यक है ।
देश की वर्तमान अवस्था आम जनता को निराशा की ओर ले जा रही है । देश का सौंदर्यीकरण तभी नजरों को सुख देगा जब भूख की आग से निजात मिलेगी ।

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