सी.के. राउत की गिरफ्तारी का औचित्य
:अप्रत्याशित रूप से राउत की गिरफ्तारी ने आम जनता, संचार माध्यम और बुद्धिजीवियों को विस्मित किया है । राउत की गिरफ्तारी का विरोध स्वतःस्फर्ूत रूप में सामने आ रहा है । लोकतंत्र में शांतिपर्ूण्ा तरीके से अपनी बात कहने का मौलिक अधिकार होता है जिसका हनन स्पष्ट रूप से दिख रहा है । एक ओर सरकार उन्हें सहमति समिति में उनके विचार को ध्यान में रखकर आमंत्रित करती है, दूसरी ओर उनके इन्हीं विचारों को दोष देते हुए उसकी गिरफ्तारी होती है । विराटनगर के रंगेली क्षेत्र से डा. राउत को गिरफ्तार किया गया । यह समाचार सामाजिक संजाल में आग की तरह फैली और जनमानस के विचार सामने आने शुरु हो गए । यह प्रतिक्रिया बताता है कि उनका विरोध नीतिगत रूप, उनके व्यक्तिगत सोच से हो सकता है, किन्तु मधेश के उभरते नेता या एक बुद्धिजीवी, जो मधेश को परिभाषित करने की क्षमता रखता है, उस व्यक्ति के साथ विरोध नहीं हो सकता सम्भवतः इसीलिए सभी एकजुट हैं और बिना शर्त उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं ।
नेपाल के अन्तरिम संविधान को ध्यान में रखते हुए विगत कई महीने से राउत द्वारा किए जा रहे अभियान को मधेश पुनर्जागरण अभियान माना जा सकता है । मधेशी, गैरमधेशी और विश्लेषक ये मान रहे हैं कि सरकार के द्वारा उठाया गया यह कदम सही नहीं है और इस घटना की निन्दा पुरजोर तरीके से की जानी चाहिए और डा.सी.के राउत की रिहाई अविलम्ब होनी चाहिए ।
सप्तरी के एक छोटे और निर्धन परिवार में जन्मे सी.के.राउत अपनी मेहनत और लगनशीलता के कारण कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय तक पहुँचने में सफल हुए । वहाँ से पी.एच.डी की और एक सफल वैज्ञानिक के रूप में कई वर्षवहाँ कार्यरत रहे । एक लेखक के तौर पर भी उन्हें पहचाना जाता है । उनकी कई रचनाओं में से वैराग्य देखि बचाव सम्म भी है, जिसमें सप्तरी से काठमान्डौ और काठमान्डौ से कैम्ब्रीज तक की यात्रा का वर्ण्र्ााहै । एक आम मधेशी किस तरह अपनी योग्यता के बावजूद अपने रंग, अपने पहनावे और अपनी भाषा के कारण छला गया यह सब इस किताब में वणिर्त है । किताब की एक एक पंक्तियाँ भोगी हर्ुइ पीडÞा को व्यक्त करती हैं । यह पीडÞा एक राउत की नहीं है कमोवेश यह पीडÞा हर मधेशी ने झेला है । अपमान और अवहेलना का यह बीज आज वह बटवृक्ष बन गया है जिसने उन्हें विदेश में भी चैन से नहीं रहने दिया । नहीं तो नेपाल से पढÞने जाने वाले कथित विद्वान लौटकर फिर अपनी धरती पर कम ही आते हैं, क्योंकि अपनी धरती उन्हें वह सुख सुविधा नहीं देती जो विदेशों में प्राप्त होते हैं । विदेश जाने की ललक तो ऐसी है कि नेता भी इससे बाज नहीं आते हैं । फिर यह सवाल तो उठता है कि आखिर एक सुखी जीवन को छोडÞ डा. राउत को यहाँ क्यों आना पडÞा – जवाब भी हमारे सामने ही है कि, मधेश मोह ने उन्हें आने पर विवश किया और साथ ही मधेश आन्दोलन के पश्चात् पीडिÞत मधेश को उसका आत्मसम्मान, संघीयता, स्वशासन और समानता का अधिकार मधेश को मिला होता तो उनकी सोच भी कुछ और होती और हवा का रुख कुछ और होता । युवा इंजीनियर पुरस्कार, महेन्द्र विद्याभूषण, कुलरत्न गोल्ड मैडल, ट्रफीमेकफ एकेडेमिक एचीभमेन्ट जैसे अवार्ड से विभूषित व्यक्ति आज राष्ट्रद्रोह का आरोप नहीं झेल रहा होता । आखिर डा. राउत की इस मानसिकता का बुद्धिजीवियों के द्वारा, सत्तापक्ष के द्वारा विश्लेषण तो करना होगा ।
इतिहास गवाह है कि किसी भी आन्दोलन और युद्ध के पीछे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक शैक्षिक कारण के साथ ही तात्कालिक कारण होता है । डा. राउत की गिरफ्तारी करके सरकार ने मधेश को एक तात्कालिक कारण दे दिया है । अन्यथा जो व्यक्ति स्वयं पाँच वर्षबाद की राजनीति की बात कर रहा था, उससे अचानक सरकार को क्या खतरा महसूस हुआ – इसके पीछे दो ही बातें हो सकती है या तो संविधान निर्माण की बातों से मधेश और मधेशी जनता का ध्यान हटाना या फिर डा. राउत की ताकत का अंदाजा लगाना । जहाँ तक डा. राउत पर लगे आरोप का सवाल है तो राष्ट्रद्रोह का आरोप बहुत ही गम्भीर आरोप है । किन्तु क्या राष्ट्रद्रोह विखण्डन की बातों से ही होता है – तो, जो देश की जनता की भावनाओं के साथ खेल रहे हैं, अरबों का घोटाला कर के बडÞे पदों पर आसीन हैं, जिन्हें जनता की सुख दुख से कोई लेना देना नहीं है, जहाँ सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं है कि युवा शक्ति को देश पलायन से रोका जा सके, जिस देश की माँ बहनें विदेशों में शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार हो रही हैं, जहाँ गरीबी का दानव जनता को निगल रहा है, यह सब क्या है –
लोकतंत्र में मौलिक अधिकार के तहत प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति स्वतंत्रता प्राप्त है । डा. राउत एक व्यक्ति हैं राष्ट्र नहीं और राष्ट्र का गठन सभी समुदायों के सहयोग से होता है । इनमें से अगर कोई भी असंतुष्ट हैं तो ऐसी बातें उठती रहेंगी और इन्हें ताकत से नहीं बल्कि समानता का अधिकार और उनके स्वाभिमान की रक्षा कर के ही रोका जा सकता है । अनर्गल आरोप प्रत्यारोप, भावनाओं को भडÞका कर आग फैलाने का ही काम करती है । पम्पलेट्स में छपी बातें आधिकारिक नहीं हो सकती, यह एक सोची समझी साजिश भी हो सकती है । इसलिए देश के बुद्धिजीवियों और संचार माध्यम से यह अपील की जानी चाहिए कि वो संयम से काम लें । एक अहिंसात्मक जनजागरण चेतनामूलक कार्यक्रम चलाने वाले को बिना किसी पर्ूव हिदायत या सूचना के गिरफ्तार कर लेना और फिर इतना संगीन आरोप लगाना न्याय संगत तो हरगिज नहीं है । हर ओर से इस गिरफ्तारी का विरोध हो रहा है । सरकार को समय रहते उचित निर्ण्र्ाालेने की आवश्यकता है क्योंकि भावनाओं के भडÞकने से ही बडÞे-बडÞे युद्ध हुए हैं । आज भी नेपाल की पूरी जनता में कुछ प्रतिशत ही ऐसे हैं जो मधेशियों को भी समान दृष्टिकोण से देखने की बात करते हैं । वरना मानसिकता आज भी वही है जो वर्षों पहले थी । दो उच्च पदों पर वो भी ऐसे पद जिनके पास अधिकार नहीं सिर्फरुतबा है, मधेशियों को बिठा देने से माहोल नहीं बदला है । एक दृष्टिकोण से सी.के.राउत की मांग गलत हो सकती है किन्तु इतिहास साक्षी है कि ऐसी मांगे देश विदेश में होती रही हैं और इन मांगों को जनता के अधिकार के तहत रखा गया है और इस पर अमल भी हुआ है । इस मांग के उठने का कारण क्या है और उसका निवारण क्या है, सरकार को उस दिशा में सोचना चाहिए न कि ऐसा कदम उठाना चाहिए जो मुद्दों को और भी तुल दे ।