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भारतीय चुनाव 2024

नेपाल के बहाने चीन का कुप्रयास

ललित  झा, हिमालिनी अंक मई 2024 ।  दरअसल प्रचंड जी के नेतृत्व में गठित वर्तमान सरकार की पटकथा, छः महिना पूर्व ही, उस वक्त लिख दी गयी थी जब नेकपा एमाले तथा नेकपा (माओवादी केंद्र) पार्टी के द्वितीय और तृतीय श्रेणी के नेताओं का लगातार बीजिंग भ्रमण हो रहा था। औपचारिक तथा अनौपचारिक राजनीतिक भेंटघाट हो रहा था। चिनियाँ कम्युनिष्ट पार्टी की देखरेख मे ही नेकपा एमाले तथा नेकपा माओवादी के बीच, राजनीतिक मतभेद कम किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप सरकार से नेपाली कांग्रेस की बिदाई कि गयी तथा नेकपा एमाले के सहयोग से वर्तमान सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त हुआ। जानकारों की माने तो प्रचंड के नेतृत्व में वर्तमान सरकार के गठन के पीछे चीन की मंशा बहुत स्पष्ट है
 आज के वैश्विक परिदृश्य में, दक्षिण एशिया में चीन की राजनीतिक सक्रियता सर्वविदित है। चीन के लिए दक्षिण एशिया के भुराजनीतिक थिएट्रिक्स में नेपाल एक हॉट केक बन चूका है, जहाँ से वह अपने  भूसामरिक एवं भूराजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति कर सकता है। श्रीलंका और बंगलादेश के बाद नेपाल दक्षिण एशिया का तीसरा महत्वपूर्ण देश है जहाँ से चीन ” सी डॉक्ट्रीन ” का संचालन कर रहा है। मालदीव में चीन प्रायोजित इंडिया आउट अभियान की सफलता से उत्साहित चीन का सारा ध्यान अब नेपाल पर केंद्रित है। मालदीव की तरह नेपाल में भी चीन ऐसी सरकार चाहता है जो, मेड इन चाइना सरकार हो और वह सी डॉक्ट्रीन का अनुगामी हो। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु चीन, काठमांडू में राजनीतिक उलटफेर करके प्रचंड जी के नेतृत्व में ही एक नई सरकार का गठन किया है। हलांकि बाहरी तौर पर देखने से सरकार में यह  राजनीतिक उलटफेर सामान्य लग सकता है लेकिन वास्तविकता में यह सामान्य राजनीतिक उलट फेर न होकर, चीन प्रायोजित राजनीतिक उलटफेर है जिसका स्क्रिप्ट बीजिंग में लिखा गया है।
चीन के सहयोग से निर्मित सुनकोशी मरीन डाइवर्शन का उद्घाटन करते हुए प्रधान मंत्री प्रचंड@ सिंधुली
सर्वप्रथम वह नेपाल में अपनी अतिमहत्वाकांक्षी सामरिक परियोजना B. R. I. का यथाशीघ्र कार्यान्वयन चाहता है, जिसके तहत कुछ बड़ी परियोजनाओ का निर्माण वह करना चाहता है, ताकि नेपाल को चीनी सहयोग तथा कर्ज पर निर्भर बनाया जा सके। नेपाल में B.R.I.के सफल क्रियान्वयन के लिए इस बार चीन सिर्फ कूटनीतिक प्रयास पर ही निर्भर नही है बल्कि इसके लिए चीन की सुरक्षा ऐजेंसीयाँ इस बार होमवर्क करके नेपाल पहुंची है। काठमांडू घाटी से लेकर तराई मधेस के सीमावर्ती जिला सिरहा सर्लाही तक, हर जगह चीनी सुरक्षा एजेंसी M.S.S.(मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सेक्युरिटी), अपना जाल फैला रही है। आज की तारीख में नेपाल में शायद ही कोई ऐसा राजनीतिक दल बचा है जिसमे M.S.S.का एजेंट न हो। कुछ विशेष सूत्रों के अनुसार नेपाल के राजनीतिक दलों के अलावे, उसके व्युरोक्रेसी तथा सुरक्षा निकाय में भी चीन का प्रभाव तेजी से फैल रहा है। आज चीन के प्रभाव का आलम यह है कि जो कार्य राजनीतिक दलों के नेता नही कर पाते है वह कार्य नेपाल के व्युरोक्रेट आसानी से कर देते हैं। नेपाल की व्युरोक्रेसी पर चीन के गहरा होते प्रभाव का ताजा प्रसंग मधेस प्रदेश से जुड़ा हुआ है। मधेस प्रदेश सरकार के एक विभाग के सचिव ने चीन की सरकारी कम्पनी चाइना इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड के अनुरोध पर, उसे फायदा पहुंचाने के लिए उस प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दिया है जिससे तराई मधेस समेत पूरे उत्तर बिहार का जनजीवन संकट में पर सकता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार चीनी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए जिस प्रस्ताव को अवैध तरीके से स्वीकृति प्रदान किया गया है, उसमे 50 लाख से अधिक रुपया बतौर रिश्वत देने में खर्च किया गया है। केंद्र में प्रचंड जी की सरकार होने के कारण, उस सचिव का मनोवल इतना बढ़ा हुआ है कि वह मुख्यमंत्री से बात किये बिना ही चिनियाँ कम्पनी के प्रस्ताव को स्वीकृति दिलाने का ठेका ले चूका था और अंततः उस प्रस्ताव को मधेस प्रदेश सरकार से स्वीकृति मिल गयी। बिना इस बात की परवाह किये कि इस प्रस्ताव की स्वीकृति का दुष्परिणाम कितना भयानक होगा? यदि नेपाल सरकार द्वारा संरक्षित अति संवेदनशील चुड़े वन क्षेत्र तथा उससे निकलने वाली नदियों का विनाशकारी दोहन इसी तरह जारी रहा तो वह दिन दूर नही जब तराई मधेस के निवासियों को मधेस से विस्थापित होना पड़े। क्योकि तब उसके पास न जल बचेगा, न जंगल और न ही जमीन।
चीन का राजदूत चेन सोंग
 प्रचंड सरकार के गठन के पीछे, चीन की दूसरी महत्वपूर्ण मंशा भारत में नरेंद्र मोदी सरकार के संभावित तीसरे कार्यकाल को रोकना है। अपने इस भूराजनीतिक स्वार्थ की पूर्ति हेतु चीन, प्रचंड सरकार का प्रयोग कर रहा है। आजकल भारत में आम चुनाव हो रहा है। अब तक कुल तीन चरण का चुनाव संपन्न हो चूका है और चौथे चरण का चुनाव 13 मई को है, कुल सात चरणों में चुनाव होना है और 4 जून को जनादेश आयेगा लेकिन अबतक जितने भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण हुये हैं सभी में, मोदी के जीतने की संभावना व्यक्त की गयी है मगर चीन नही चाहता कि भारतीय आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की जीत हो, इसलिए बीजिंग के इशारे पर ही प्रचंड सरकार ने बिना किसी पूर्व जानकारी के, सौ रुपये के नोट पर, नेपाल का वह नक्शा छापने का कैबिनेट से स्वीकृति दिया जो पूर्व से विवादित है। कालापानी, लिपुलेक् तथा लिंपियाधुरा को लेकर नेपाल और भारत के बीच विवाद है और दोनों देशों के बीच इस मामले पर उच्च स्तरीय द्विपक्षीय बातचीत जारी है, ऐसे में प्रचंड सरकार द्वारा एकतरफा रूप से विवादित नक्शा के साथ नोट छापने का आदेश देना, दोनों देशों के बीच, सीमा विवाद को भड़काने का प्रयास है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जब भारत में चुनाव हो रहा है तब इस तरह की एक तरफा कारवाई, दोनों देशों के बीच अकारण ही, सीमा विवाद को भड़काने का प्रयास है, और इसका उद्देश्य, भारत के चुनाव में, नरेन्द्र मोदी सरकार को बदनाम करना है, ताकि इस मुद्दे पर, विरोधी दलों के नेता मोदी को निशाना बना सके। यह सब चीन के इशारे पर प्रचंड की सरकार द्वारा किया गया है। जानकारों के अनुसार चीनी सुरक्षा एजेंसीयां हर संभव कोशिश कर रही है, मोदी के विजय रथ को रोकने की क्योंकि यदि नरेन्द्र मोदी तीसरी बार विजयी होते हैं तो निश्चय ही, सभी वैश्विक मंचो पर, भारत, चीन के खिलाफ मजबूती से खड़ा होगा। भारत का तेज आर्थिक विकास दर, राजनीतिक स्थिरता एवं वैश्विक मंचों पर बढ़ता कद, चीन के लिए परेशानी का सबब बन गया है। दुनियाँ की सभी बड़े देश, चीन का बिकल्प भारत में तलाशने लगे हैं। भारत में बढ़ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,और दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना, चीन को परेशान कर रहा है। जानकारों की माने तो चीन मोदी सरकार की आक्रामक कूटनीति तथा राजनीति से असहज हो गया है इसलिए वह भारत में नरेन्द्र मोदी की जीत नही चाहता और वह प्रचंड सरकार को अपने कूटनीतिक मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है।
 हलांकि भारत चीन की ऐसी हरकतों के प्रति सतर्क है और वह चीन की विस्तारवादी कूटनीतिक मंशा को सफल नही होने दे रहा। भारत के विदेश मंत्री डा. एस जयशंकर ने प्रचंड सरकार द्वारा असमय सीमा विवाद का मुद्दा उठाये जाने पर संयमित प्रतिक्रिया देते हुए कहा है “भारत नेपाल के बीच सीमा विवाद के विषय पर दोनों देशों के बीच तय प्रक्रिया के अनुसार बातचीत चल रही है और इस तरह की किसी भी एकतरफा कारवाई से, जमीनी हकीकत नही बदलने वाली।
सर्लाही के बरहथवा नगरपालिका द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्कूली बच्चों को किट देते हुए चीनी राजदूत
 हालांकि भारत नेपाल अटुट रिश्तों को खराब करने की चीनी आकांक्षा नया नही है। 7 सेप्टेम्बर, 2023 को काठमांडू में आयोजित एक कार्यक्रम में, नेपाल में चीन के राजदूत चेन सोंग ने सभी कूटनीतिक मर्यादा को लाँघते हुए सार्वजनिक रूप से कहा था “दुर्भाग्य से आपके पास भारत जैसा पड़ोसी देश है जो एक बड़ा बाजार है और आप उसका फायदा उठा सकते हैं लेकिन भारत की नीति नेपाल तथा अन्य पड़ोसी देशों के प्रति दोस्ताना नही है, और यह नेपाल के लिए लाभकारी नही है। हम इसे पॉलिसी ऑफ कॉन्सट्रेंट कहते हैं”। दरअसल चीनी राजदूत का यह कथन सीधा सीधा नेपाल के लोगों को भारत के विरोध में भड़काने का प्रयास था जो विभिन्न कारणों से अब तक सफल नहीं हो सका है लेकिन तब से लेकर अब तक उनका यह भारत विरोधी प्रयास अनवरत जारी है। चीन अपने इस कार्य में ” फाउंडेशन फॉर ट्रांस हिमालियन रिसर्च एंड स्टडीज” तथा “फ्रेंड्स ऑफ सिल्क रोड क्लब नेपाल ” जैसी संस्थाओ को पर्याप्त फंड देकर लगाया हुआ है। बीजिंग चाहता है कि मालदीव की तरह नेपाल में भी, डिप्लोमैटिक थिएट्रिक्स का निर्माण हो, नेपाल में भी चीनी ऋण तथा आर्थिक सहायता को बढ़ाया जाय ताकि नेपाल को चीन की सहायता पर निर्भर बनाया जा सके, नेपाल के हिमाल, पहाड़ और तराई में चीन के प्रभाव को फैलाया जा सके।
सर्लाही के बरहथवा नगरपालिका द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्कूली बच्चों को किट देते हुए चीनी राजदूत
 नेपाल के राष्ट्रिय राजनीतिक परिदृश्य को बदलने का चीन का प्रयास वर्षों से जारी है। वर्ष 2018 में चीनी कम्युनिष्ट पार्टी तथा नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के बीच एक “राजनीतिक समझौता” हुआ था। उस वक्त नेकपा के कई नेता, नेपाल को “सी पथ” का अनुगामी बनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त किया था मगर नेपाल में चीन का यह राजनीतिक प्रयोग सफल नहीं हो सका था। काठमांडू की मनोरम घाटियों में सी जिनपिंग का सपना टूट गया था लेकिन बड़ी मशक्कत के बाद एक बार पुनः प्रचंड की सरकार उसी राजनीतिक समीकरण के आधार पर, बीजिंग के निर्देशन मे बनी है। ऐसे में अब देखना यह है कि प्रचंड की यह “मेड इन चाइना” सरकार, बीजिंग के इशारे पर नेपाल में क्या क्या भूराजनीतिक खेल करती हैं? क्या मालदीव के राष्ट्रपति मो मोइज्जु की तरह, प्रचंड भी नेपाल में इंडिया आउट अभियान का संचालन करेंगे? या फिर के पी ओली के राजनीति का शिकार हो जायेंगे और जिस तरह से उपेंद्र यादव को इन लोगों ने निबटाने का प्रयास किया है, वैसे ही स्वयं निबटा दिये जायेंगे। बहरहाल इन आशंकाओं तथा पल पल बदलती नेपाल की राजनीतिक दृश्यों पटकथाओ के बीच , प्रचंड की मेड इन चाइना सरकार, बीजिंग द्वारा लिखित स्क्रिप्ट पढ़ने में व्यस्त हैं।
ललित झा
राजनीतिक सम्पादक, हिमालिनी



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