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दुविधा में देश, क्षुब्ध मधेस : अजय कुमार झा

अजयकुमार झा, हिमालिनी अंक अगस्त 024 । किसी भी परिवार, समुदाय, राष्ट्र और संस्कृति का पतन उस दिन से आरम्भ हो जाता है जब हीनता, दीनता, उद्दंडता और बाध्यता को सौंदर्यीकरण कर सम्मान जनक बना दिया जाता है । उसे सामाजिक प्रतिष्ठा के पगड़ी से सुशोभित कर महिमा मंडन किया जाता है । यह गुलाम और दास बनाने का अति सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक सूत्र है । इसमें भोले भाले लोग आस्था, विश्वास और श्रद्धा के चक्रव्यूह में फसकर हंसते हंसते खुद ही अपनी विनाश को निमंत्रण देकर गौरवान्वित महसूस कर रहे होते हैं । इसके मादकता का असर संसार के किसी भी नशीले पदार्थों से अनंत गुणा अधिक और दीर्घकालीन है ।



हिन्दू संस्कृति और परम्परा में किसी भी प्रकार की अक्षमता÷अपंगता को “पुरुषार्थ चतुष्ट्य’’ के प्रति कर्तव्यों के अनुपालना के योग्य नहीं माना गया है । उदाहरण स्वरूप ‘ऋषि च्यवन’ जिन्हें जब उन्हीं के शाप वश राजकन्या से विवाह करना पड़ा, तब ऋषि स्वयं पहले अपने समस्त शारीरिक व्याधियों और अक्षमताओं का समूल नष्ट कर खुदको विवाह के योग्य बनाते है । भगवान दत्तात्रेय और महर्षि पतञ्जलि दोनों की मान्यता है कि, “योगस्थित होने की प्रथम शर्त हमारी शारीरिक और मानसिक अक्षमताओं की पूर्णता ही है ।’’ किसी भी प्रकार के विकार की उपस्थिति में ब्रह्मविद्या की प्राप्ति करना मुस्किल है । समस्त ब्रह्मज्ञ और बुद्ध पुरुषों(ऋषि, महर्षि और ईश्वरीय अवतार) इस विषय में एकमत से देखे जाते हैं । यही नहीं, समस्त ब्रह्मविद्या ग्रंथ और पुराण सहित हमारी लोक मान्यताएं और हमारी कुल परम्पराएँ भी इस पक्ष में एकमत हैं । अर्थात किसी भी व्यक्ति में किसी भी प्रकार का डिसऑर्डर जो उस व्यक्ति को एक सीमा के बाहर एब्नॉर्मल बनाता है, उसे परम्परा में अधिकृत नहीं जाना जाता ।

परंतु, “हिन्दू उलटे मुसलमान’’ लोक कहावत के अन्तर्गत जेहादी संस्कृतियों में विकृत मानसिकता के व्यक्तित्व को अतिरिक्त “शक्ति और आकर्षण’’ के प्रतीक सम्मान दिया जाता है । असुर संस्कृति और सभ्यता में सामाजिक, व्यवहारिक और मानसिक विकृति को “खुदा का नूर’’ (गिफ्ट ऑफ गॉड) के रूप में सम्मानित किया जाता है । यही कारण है कि अनेक मानसिक विकृतियों से ग्रसित लोग कभी चर्च के अधिपति (पोप) हुआ करते थे । जो समूचे समाज को कन्ट्रोल करने की सामर्थ्य रखते थे । जिन्हें “ईश्वर पुत्र” की उपाधि से सम्बोधित किया जाता था ।

गौर कीजिए ! सुकरात जैसा दार्शनिक और उसका शिष्य प्लेटो जब चर्च पोषित जेहादी संस्कृति के उद्देश्य में संशोधन करना आरम्भ किया तब, उसने जो बातें कही, और जिन सिद्धान्त की स्थापना की, वे सब इतने घातक सिद्ध हुए की समूचा यूरोप कालान्तर में गृहयुद्ध की ज्वाला में झुलसने के लिए बाध्य हो गया । देशकाल और परिस्थिति के वैज्ञानिक विश्लेषण ही अंततः तय करते हैं कि कौन सी प्रणाली और विचारधारा समाज के लिए शुभ और सृजनात्मक है, जो समाज को समयानुकूल बना सकती है । आज समग्र विश्व आर्थिक मंदी और आतंकी गतिविधियों से त्राहिमाम स्थिति में जकड़ गया है । विदेशी सहयोग पर निर्भर नेपाल चारो ओर हाथ फैलाए किंकर्तव्यविमूढ स्थिति में है । जब फ्रांस के सामन्ती समाज में पूंजी का प्रवेश अवरूद्ध हो गया तब वहां क्रान्ति सम्पन्न हुई ।

कमजोर अर्थव्यवस्था के कारणवश सोवियत संघ की जनता भूख से त्राण पाने के लिए फरवरी क्रान्ति को सफल बनाया । विश्व में पूंजीवाद की गर्भ से माक्र्सवाद का जन्म हुआ लेकिन शासक वर्ग में माक्र्सवाद के रास्ते जब बदलाव नही लाया जा सका, तब माक्र्सवाद की कोख से लेनिनवाद का जन्म हुआ । लेनिनवाद ने केन्द्रीयता की राजनीति के माध्यम से क्रान्ति करने में सफलता तो प्राप्त कर ली और चीन सहित अन्य देशों ने भी इसका अनुकरण किया लेकिन करीब ७० साल के बाद लेनिनवाद पर आधारित सारी सरकारें ध्वस्त हों गई । इस परिघटना से पूरे विश्व मे समाजवाद की वैचारिकी और कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लग गया । इस प्रकार पूरे विश्व में दक्षिणपंथ की विजय हो गई ।

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब पूरे विश्व में पूंजीवाद की गति अवरूद्ध हो गई थी तब पूंजीवाद ने हिटलर को प्रक्षेपित किया । भारत में नरेन्द्र मोदी के राजनीति में पदार्पण, बंगला देश में शेख हसीना के १५ साल सत्तारूढ होने की परिघटना और अमेरिका मे ट्रंप की वापसी की संभावना को इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए । भारत में इन्दिरा गांधी, चंद्रशेखर, शरद पवार, देवी लाल, चरण सिंह, करूणानिधि, लालू, मुलायम तथा नेपाल में कोइराला, देउवा, ओली, प्रचंड, उपेन्द्र यादव, आदि की राजनीति में वंशवाद, परिवारवाद, जातिवाद की राजनीति की दक्षिणपंथ के फासिस्टी चेहरे का उदाहरण माना जा सकता है । किसी भी दल में आन्तरिक जनवाद नही है, सभी दल व्यक्तिवादी और परिवारवादी हैं । मधेस भी इसी गर्त में डूबा हुआ है । शून्य वैचारिक उत्थान के कारण घोर अनिर्णय की विनाशकारी अवस्था में हम अपनी अस्तित्व को खोते जा रहे हैं । न संवाद करने का समय निकाल पाते हैं नहीं आत्म चिंतन और आत्म विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं । अंधेरे में लाठी नचाना और बिना पूर्व तैयारी के भविष्य में छलांग लगाना; आत्मघाती कदम है । आज हम मधेसी भस्मासुर की तरह इस भयावह स्थिति में मुस्कुरा रहें हैं । दूरगामी सृजनात्मक योजनाओं के अभाव में तथा व्यक्तिगत स्वार्थ लिप्सा के प्रभाव में डेढ़ करोड़ नागरिक के अस्तित्व को घोर अन्धकार में डालते जा रहे हैं ।

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बांग्लादेश में दक्षिणपंथी पूंजीवादी शेख हसीना, जो संस्कृति और भाषा को आधार मानकर अंध–राष्ट्रवाद जगाकर, अधिनायकवादी तरीके से १५ वर्षो तक राज करने में सफल रही । दूसरा चेहरा खालिदा जिया का है जो तालिबानी तरीके से धर्म को केन्द्र में रखकर, अधिनायकवादी तरीके से राज करना चाहता है । बांग्लादेश के संकट में प्रत्यक्ष तौर पर धर्म और भाषा की टकराहट दिखाई दे रही है परन्तु अन्तर्वस्तु में दोनो पूंजीवादी संकट की उपज हैं, अधिनायकवादी पूंजीवाद बांग्लादेश की राजनीति का गंतव्य है ।

ध्यान रहे ! यह समस्या महज बांग्लादेश तक ही सीमित नहीं है । यह अब वैश्विक रूप ले चुका है, जो तर्क और संवाद, व्याख्या और वैचारिक आदान प्रदान के रास्ते को छोडकर मार–काट के जरिए इसका समाधान तलाशने की जद्दोजहद में है । समूचे विश्व में वामपंथ की शिकस्त अब पूंजीवाद की शिकस्त साबित होने जा रही है । समाज अब अपना अस्तित्व, अपनी अस्मिता में तलाश रहा है । भारत की तरह नेपाल में पिछडावाद, दलितवाद, नारीवाद, आदिवासी पहचान का संघर्ष, सामाजिक न्याय के लिए नही बल्कि दक्षिणपंथ के अधिनायकवाद के लिए है । राजनीतिक और सामाजिक ढांचे को तोडे बगैर, सामाजिक न्याय नही हो सकता है । नेपाल के मधेस प्रांत की मौजूदा राजनीति में उपेन्द्र यादव जी, राजेंद्र महतो जी, महंत ठाकुर जी लगायत के नेतृत्व में जातीय राजनीति का काला बादल अवश्य मिल जाएंगे । जबतक जातिवाद जीवित रहेगा, फलता–फूलता रहेगा तब तक वे नेता बने रहेंगे ।’

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कुल मिलाकर राजनीतिका मुख्य उद्देश्य, शक्ति हासिल करना होता है । और शक्ति हासिल करने के लिए सत्ता में जाना अनिवार्य होता है । सत्ता के लिए वर्तमान समय में गठबंधन करना, कूटनीतिक योजना बनाना अथवा जिस प्रकार के योजनाओं से सत्ता हासिल हो सकती है उस प्रकार के कार्य को संपन्न करना अनिवार्य होता है । आज नेपाल के मधेस प्रदेश में जनमत पार्टी अल्पमत में होते हुए भी अपने से बड़े पार्टियों के समर्थन में मुख्यमंत्री का पद प्राप्त कर लिया है, यह जनमत पार्टी के लिए शुभ संकेत है । एक उपलब्धि है । राजनीति में इसे अन्यथा नहीं लिया जा सकता बल्कि सफलता के रूप में देखा जाता है । रही बात मधेशी को सम्मानित तथा मधेश को विकसित करने की, मधेश को सुदृढ़ करने की, मधेश के जनता को शिक्षित करने की, समृद्धि के लिए प्रयास करने की तो यह जिम्मेदारी सरकार के ऊपर आना स्वाभाविक है । मेरे समझ में प्रदेश के समग्र विकास की जिम्मेदारी सरकार को खुशी–खुशी लेना चाहिए और दावे के साथ उद्घोषणा भी करना चाहिए । यही उद्घोषणा सरकार के भविष्य के लिए मजबूत आधार बनेगा ।

एक बात साफ हो गयी है कि वर्तमान के नेपाली राजनीति के इन राजनीतिक पार्टियों से कुछ भी आशा नहीं किया जा सकता है । यहां के किसी पार्टी का कोई सिद्धांत नहीं है । सब मिल जुलकर लूटने में माहिर हैं । यहां न पक्ष है न विपक्ष । सबके सब मतलब के यार हैं । जिस देश में सत्ताधारी और विपक्ष दोनों मिलकर देश लूटता हो; उस देश में राजनीतिक आदर्श की बात करना ही लज्जास्पद है । अतः अब व्यक्तित्व की पहचान किया जाय । और अच्छे व्यक्तियों को सम्मान के साथ राजनीति में आगे बढ़ाया जाए ।

जनमत पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनना मधेशी जनता के हृदय में एक योग्यतम व्यक्ति के हाथों में होने का भरोसा दिलाता है । डॉ सी के राउत के प्रति मधेशी जनता में आस्था और विश्वास है, परंतु यह नवनिर्मित सरकार उनके लिए और उनके पार्टी के लिए चुनौती ही नहीं भविष्य का निर्धारक भी है । मधेशी के विकास में अगर चूक जाते हैं, अच्छी योजनाओं को कार्यान्वयन नहीं कर पाते हैं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर मधेश के विकास के लिए एक आधार स्तंभ खड़ा नहीं कर पाते हैं तो यह सरकार के नेतृत्व उनके लिए घातक साबित हो सकता है । अतः एक एक कदम को फूंक फूंक कर सौ सौ बार सोचकर अनेक कसौटियों पर रखकर कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है । सी के राउत जी को भरपूर प्रयास करना होगा कि उनके पार्टी के नेतृत्व में बनी यह सरकार सत प्रतिशत सृजनात्मक हो, शिक्षा में तूफानी परिवर्तन लाए, कृषि क्षेत्र को अत्यधिक जीवित किया जाए, गांव गांव में बनाए जा रहे द्वार और अनावश्यक निर्माण कार्य को रोका जाए, अरबों रुपया द्वार बनाने में खर्च किया गया पिछले ७ वर्षों में लेकिन एक उपलब्धि मुझे दिखा दे कि उससे एक व्यक्ति को लाभ मिला हो ? इस तरह के मूर्खता बड़ी काम न किया जाए । मुझे विश्वास है सिके राउत जी इस तथ्य को समझ रहे होंगे । और व्यवहार में उतरेंगे क्योंकि उनकी सरकार की हार उनकी हार मानी जाएगी, उनकी कमजोरी मानी जाएगी और उनके साथ जो सेंटीमेंट जुड़ा हुआ है मधेशी जनता का वह टूट जाएगा ।

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ध्यान रहे ! देश के एक भी आम नागरिक, जो किसी भी पार्टी और संस्था के सदस्य नहीं है; उनसे गणतंत्र का स्वाद पूछा जाय, तब जा के पता चलेगा कि लोकतंत्र में लोक का हाल क्या है ! इसके बावजूद निराशा की कोई बात नहीं है । हम बदल सकते हैं; हम बदल रहे हैं; इसका प्रमाण काठमांडू के बुद्धिमान देशभक्त नागरिकों ने वालेन को अपना समर्थन देकर दे दिया है । इस से एक ही तीर से दो काम सहज हो गया है । पहला मधेस और पहाड़ के विशुद्ध नेपाली जनता के बीच का वह दरार जो राजा महेंद्र से लेकर गणतंत्रवादी नेताओं के द्वारा योजनाबद्ध तरीके से प्रायोजित था, का खात्मा होने लगा है । दूसरा नेपाल के अस्तित्व संरक्षण एवं संवर्धन के लिए गणतंत्र नहीं गुणतंत्र के गुणवत्ता और आवश्यकता की पहचान । हमें अब इसी पहचान को पोषित करते हुए आनेवाले समय में पूरी जिम्मेदारियों के साथ सक्रिय भूमिका निर्वाह करना होगा । समाज में दवे छुपे अच्छे व्यक्तियों को सम्मान के साथ राजनीति में सक्रिय भूमिका निर्वाह करने के लिए उत्साहित करना होगा । जैसे चिकित्सक के हाथों का छुरा भी प्राणदायी सिद्ध होता है वैसे ही जब ईमानदार के हाथों में हम अपना बागडोर सौपेंगे तो भविष्य सुंदर होगा ही ।

प्रत्येक समाज में कुछ लोग ईमानदार होते ही हैं । ईमानदारी का भी एक जुनून होता है । कुछ लोग मिल जाएंगे जो भ्रष्टाचारी के बदले कष्ट झेलना पसंद करेंगे लेकिन बेइमानी पर नहीं उतरेंगे । क्या ऐसे लोग आप के समाज में नहीं हैं ? ध्यान रहे ! संसार में सत्य है, ईमानदार है; इसी लिए असत्य और बेईमान भी जिंदा है । एक बस ड्राईभर पर हम विश्वास करते हैं; तब जाकर पूरे परिवार का जीवन उसके हाथों में सौंप देते हैं । परंतु, किसी पागल अथवा नसेड़ी पर हम इतना भरोसा नहीं कर सकतें । अतः हमें इतना तो विश्वास है, कि समाज के सब लोग खरब ही नहीं है । बहुत बड़े बड़े समाजसेवी, त्यागी, महात्मा, योगी आज भी अपनी पूरी ऊर्जा के साथ हमारे बीच उपस्थित हैं । उन्हें पहचान ने के लिए हमें ही एक्टिव होना होगा । क्या योगी आदित्य नाथ इसका सर्वोत्तम उदाहरण नहीं हैं ? जाति, पार्टी, क्षेत्र और सिद्धांत विशेष के आधार पर हम विश्वास करने लायक अच्छे व्यक्तियों को नहीं खोज पाएंगे । ऐसे लोगों का अपना अलग सामाजिक और राजनीति कार्नर होता है । ऐसे लोग अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने में नहीं हिचकते । इस तरह के षडयंत्रों से ही राजनीति भरी पड़ी है । महाभारत, प्रथम और दूसरा विश्वयुद्ध, भारत पाक बटवारा, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान और इजराइल हमास युद्ध तथा जापान का एटम कांड और रूस यूक्रेन युद्ध; मानवता के इतिहास में कलंक का धब्बा ही है । ऐसा कलंक तब लगता है जब हम पागल, उद्दंड, अति लोभी, अति लालची, स्वार्थी, पतित तथा गुंडों के हाथों में राष्ट्रीय सक्ति रूपी सत्ता सौंप देते हैं । और महा विनाश को निमंत्रण दे देते हैं ।



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