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देवेश झा:मधेस की अवस्था और समस्या की प्रकृति
मधेस क्षेत्र पर विद्यमान नेपाली राज्य सत्ता द्वारा योजनाबद्ध रूप में आन्तरिक उपनिवेश की नीति लागू है । इस नीति के तहत राज्य के शासक वर्ग द्वारा शासक जाति और शासक समुदाय के हित में मधेस क्षेत्र को और मधेस के विभिन्न समुदायों को लक्ष्य बनाकर सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक शोषण किया जा रहा है । मधेस में Garuda baithk 2परम्परागत रूप से बसे हुए समुदायों का आर्थिक, प्राकृतिक श्रोत, जमीन और बासस्थान का हरण करते हुए इन समुदायों के धार्मिक पद्धति, जीवन शैली, वेषभूषा और संस्कृति को राज्य अपने अनुकूल रूपान्तरण कर रहा है । मधेस में सैनिकीकरण किया जा रहा है । तर्राई में बहुमत प्राप्त मधेसी समुदाय के बसोबास और जनसंख्या की संरचना में प्रतिकूल बदलाव लाने का काम किया जा रहा है । औपनिवेशिक राज्य मधेस को नाफा आर्जन करने वाले भूक्षेत्र में रूपान्तरित कर मधेस के नागरिकों को दास बनाए हुए है । मधेसी समुदाय के आत्मसम्मान को कमजोर बनाया गया है । मधेस में कायम यह अवस्था ही आन्तरिक औपनिवेशिकता है । आन्तरिक औपनिवेशिकता मधेस की समस्या है । इस अवस्था ने नेपाल में मधेस की जनता को राजनीतिक दास बनाया हुआ है । इस समुदाय ने देश में सच्चे अर्थों में अपने र्सार्वभौमसत्ता को प्रयोग ही नहीं किया है ।
मधेसियों का मुख्य कार्यभारः
मधेस में वर्तमान औपनिवेशिक राज्यसत्ता के संयन्त्र का मुख्य संचालनकर्त्तर्ााक ही प्रकार के स्वार्थाें का सम्मिश्रति रूप स्थायी सत्ता है जिसका निर्माण मुख्यतः आठ प्रकार के राज्यपोषित अंगों से हुआ है । ये हैं- -१) मंत्रीपरिषद या सरकार -२) खस शासक वर्ग के वर्चस्व वाला संसद -३) राज्य की विद्यमान संरचना का पृष्ठपोषण करने वाले खस शासकीय अधिनायकत्व वाले राजनीतिक दल -४) खस शासक वर्ग का दबदवा वाली सेना, सशस्त्र पुलिस, जनपद पुलिस तथा गुप्तचर सहित का सुरक्षा निकाय -५) एक ही प्रकार के जातीय बाहुल्यता वाला कर्मचारीतन्त्र या प्रशासन संयन्त्र -६) एकात्मवादी राज्य व्यवस्था का हितसंरक्षक के रूप में कार्यरत न्यायप्रणाली या अदालती व्यवस्था -७) निजी पारिवारिक स्वार्थ में डूबे खस शासक समुदाय का चाटुकार पूजिपति वर्ग -८) खस शासक समुदाय का पृष्टपोषक प्रभावशाली संचारगृह प्रसारण प्रकाशन सम्बद्ध जातीय प्रेस तथा पत्रकार । इस संरचना में आमूल परिवर्तन करना ही वस्तुतः मधेसी, जनजाति सहित के बहिष्करण में डाले गये समुदायों का मुख्य कार्यभार है ।
मधेसी राजनीति के पक्षः
अभी मधेस केन्द्रित राजनीतिक वृत्त में संगठन और विचार के आधार पर मुख्यतः तीन धाराएं हैं । पहली, सत्ता र्समर्पणवादी और मुद्दा विर्सजनवादी धार है । ये अपने उद्देश्य में प्रष्ट नहीं हैं । परिवर्तनके नाम पर शब्दजाल बुनते रहते हैं । सदैव सत्ता में जाने को आतुर रहते हैं । सत्ता में जाने पर भी सत्ता को परिवर्तन का माध्यम बनाना नहीं चाहते । विरोधी के समक्ष सम्झौतापरस्त होकर मधेस समस्या का सतही समाधान चाहते हैं । मधेस मुद्दा के पक्ष में लगे हुए दिखाकर यह पक्ष भावनात्मक चुनावी राजनीति करते रहते हैं । लेकिन यथार्थ में ये स्थायी सत्ता का पृष्टपोषण ही कर रहे हैं । अपना-अपना जातीय आधार खडा करके विगत कुछ वर्षों से सत्ता और विपक्ष के राजनीतिक प्रचार में लगा हुआ यह पक्ष विचार और कर्म से मधेस आन्दोलन की उपलब्धियों को संस्थागत करने के सवाल पर धोखेबाज ही दिखे हैं । वर्तमान संविधानसभा में इन्होंने संघीयता में मधेस के विभाजन को स्वीकार किया है । इस पक्ष ने यथास्थिति में वि.सं. २०७० के दूसरे संविधानसभा निर्वाचन में भाग लिया और अभी संविधान सभा में है । संविधान सभा में इनकी कोई प्रभावकारी भूमिका नहीं है ।
दूसरा, तर्राई मधेस राष्ट्रिय अभियान द्वारा नेतृत्व किये हुए शान्तिपर्ूण्ा आन्दोलनकारियों का पक्षपाती धार है । इसने वर्तमान नेपाली राज्य के एकात्मवादी स्वरूप में आमूल परिवर्तन होना चाहिये, ऐसा सोचा है । स्थायी सत्ता द्वारा पोषित मधेस के ऊपर का आन्तरिक औपनिवेशिकता को तोडÞकर राज्य के नये रूपान्तरण को संर्घष्ा का पहला ध्येय माना है । तत्पश्चात् संघीय नेपाल में स्वशासन के माध्यम से मधेसी समुदाय के लिये विभेदरहित राजनीतिक संरचना की स्थापना और आर्थिक समुन्नति प्राप्त करने को दूसरा ध्येय माना है ।
तीसरा, तर्राई या मधेस को एक स्वतन्त्र और र्सार्वभौमसत्ता सम्पन्न राष्ट्र के रूप में रूपान्तरित करना चाहने वाले स्वप्नजीवी परिवर्तनकारियों वाले अतिवादी चिन्तन का धार है । इसमें तर्राई के सशस्त्र समूह और अहिंसक आन्दोलन की बातें करने वाले भी हैं । उच्च त्याग और आत्मबलिदान की भावना से पे्ररित मधेस के कुछ युवाओं का यह असंगठित समूह राजनीतिक यथार्थ को नहीं समझ पाने वाला, भूराजनीति से बेखबर और भावावेश की राजनीति चाहने वालों का वैचारिक पक्ष है ।
क्षेत्रिय, भू-राजनीतिक स्वार्थ में नेपाल ः
भौगोलिक रूप में नेपाल परम्परा से ही क्षेत्रीय और अन्तर्रर्ाा्रीय सामरिक राजनीतिक स्वार्थ का केन्द्र रहा है । इस स्वार्थ के कारण से नेपाल में आजतक आमूल परिवर्तन के लिए जनता द्वारा किया गया कोई भी आन्दोलन निर्ण्ाायक परिणाम हासिल नहीं कर सका । विशेषतः क्षेत्रीय भू-राजनीति में भारत और चीन की अति सक्रियता एवं हस्तक्षेप के कारण नेपाली जनता का आन्दोलन सब या तो नेपाल के केन्द्रीय सत्ता की स्वार्थ रक्षा के लिये सम्झौतों में अन्त किये गए या निष्कर्षवहीन समाप्त हुए । आज के वर्तमान में नेपाल की गृह राजनीति में हस्तक्षेपकारी भूराजनीति का प्रभाव और भी बढÞा है । मधेस का प्रश्न और भी एक प्रमुख विषय हो गया है ।
मधेसी जनता के न्यायोचित जनाधिकार की मांग को नेपाल की सत्ता ने सदैव भारत के साथ लेन-देन का विषय बनाए जाने का इतिहास है । मधेस द्वारा जनअधिकार की मांग होने पर और उसके लिये होने वाले आन्दालनों को भारत द्वारा उत्प्रेरित तथा भारतीय उक्साहट में किया गया कहकर आन्दोलनों को बदनाम कराया जाता है । जबकि नेपाली राज्यसत्ता स्वयं भारत के साथ अनेकों दृश्य-अदृश्य समझदारी करके आन्दोलन के विरुद्ध दवाबकारी भारतीय भूमिका को नेपाल में खुला आमन्त्रण करने का अनेकों उदाहरण है । ऐसी अवस्था में भारत सरकार नेपाल की सत्ता के साथ अपने हित का संरक्षण और स्वार्थसिद्ध करने के लिये मधेसी जनता के न्यायोचित मानव अधिकार और र्सवमान्य राजनीतिक अधिकार के विषय पर मौन धारण किये रहती है । इसमें कोई दो मत नहीं कि मधेसी जनसमुदाय सदैव भारत की स्थिरता, शान्ति तथा समुन्नति का पक्षपाती रहा है । इसके वाबजूद भारत की सत्ता ने मधेस के सवाल को अनदेखा किया है । अब मधेस की राजनीतिक शक्तियों को अपने अधिकार के प्रश्न पर अडिग रहकर भारत सरकार के साथ वार्ता करनी होगी कि नेपाल और भारत का परस्पर लेनदेन तथा हित के विषय में मधेस को सौदा की वस्तु नहीं बनाया जाय । यह विषय भारत सरकार समक्ष मजबूती के साथ रखने का समय आ गया है । अन्यथा भारतीय पक्ष के साथ एकपक्षीय सद्भाव एवं लोकाचार के नाम पर मधेसी को नेपाली राज्यसत्ता का दास ही बने रहना होगा ।
मधेसी राष्ट्रीयता के मान्यता का सवालः
मधेस को आन्तरिक उपनिवेश बनाकर राज्यपक्ष पुराने  एकात्मवादी राजनीतिक व्यवस्था को लागू करना चाहता है । इस यथास्थितिवादी सोच को किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता । संसार भर स्थापित मान्यता अनुसार किसी भी जनसांख्यिक विविधतायुक्त देश में संघीयता उस देश का प्रशासनिक विभाजन मात्र नहीं होता । यह विविधता में निहित देश की र्सार्वभौमसत्ता का विभाजन भी है । इसके लिये देश में राष्ट्रीयताओं की मान्यता होनी ही चाहिये । राष्ट्रियताओं की मान्यता के बिना एक अखण्ड देश की र्सार्वभौमसत्ता का विभाजन हो ही नहीं सकता । मधेस की चाहत नेपाल की अखण्डता के भीतर मधेसी राष्ट्रीयता की मान्यता सहित स्वशासन है ।
भावी संविधान में पहचान की मान्यताः
संवैधानिक शब्दावली में पहचान की मान्यता अमर्ूत विषय नहीं है । किसी भी देश के संविधान में कुछ खास विषयों को संवैधानिक रूप में प्रतिस्थापन पश्चात् मात्र उस देश के किसी समुदाय या राष्ट्रियता को मान्यता प्राप्त माना जाता है । इस अर्थ में तर्राई मधेस राष्ट्रीय अभियान ने नेपाल के भावी संविधान में इन विषयों का स्पष्ट प्रतिस्थापन चाहा है ः
-१) मधेसी पहचान को एक राष्ट्रीयता -सब नेशनालिटी) के रूप में संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो ।
-२)     नेपाल का अन्तरिम संविधान २०६३ द्वारा स्पष्ट रूप में स्वीकृत किये गये मधेस क्षेत्र को स्वायत्त मधेस प्रदेश की मान्यता हो ।
-३) नेपाल देश भर समान जनसंख्या पर आधारित निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण किया जाय ।
-४) निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की संसद बने और संसदीय शासन प्रणाली होना चाहिये ।
-५) भावी प्रदेशों से ऊपरी सदन -राष्ट्रीय सभा या अन्य नाम) में सांसद का प्रतिनिधित्व कराये जाने पर प्रत्येक प्रदेश की जनसंख्या के आधार पर ही सांसदों की संख्या का निर्धारण कर प्रतिनिधित्व कराया जाय ।
-६) राज्य की शक्ति परिचालन के सभी संवैधानिक निकायों में पर्ूण्ा समानुपातिक समावेशीकरण होना चाहिये ।
-७) विभिन्न राष्ट्रीयताओं के प्रतिनिधित्व के आधार पर समावेशी न्यायप्रणाली होना चाहिये । केन्द्र और प्रदेश में स्वतन्त्र न्यायपालिका गठन होना चाहिये ।
-८) केन्द्र और प्रदेश सब के बीच का हक तथा अधिकार सम्बन्धी विवादों का निराकरण करने के लिये प्रदेशों का समानुपातिक प्रतिनिधित्व वाला संवैधानिक अदालत की व्यवस्था होना चाहिये ।
-९) मधेस की भाषाओं को भी सरकारीकामकाज के लिये औपचारिक मान्यता मिलनी चाहिये । इन्ही विषयों को नया संविधान में समाविष्ट करने के बाद राष्ट में कोई भी समुदाय राजनीतिक रूप में पहचान की मान्यता पा सकता है । भावी मधेस आन्दोलन का ध्येय भी इसी को प्राप्त करना है ।
संविधान सभा की उपयोगिताः
तर्राई मधेस राष्ट्रीय अभियान का प्रथम राष्ट्रिय परिषद की बैठक वि.सं. २०७०, असोज ३ गते विराटनगर में सम्पन्न हर्ुइ थी । इसी बैठक के निर्ण्र्ााअनुसार तमरा अभियान संविधान सभा के दूसरे निर्वाचन में सहभागी नहीं हुआ । इस बैठक के निष्कर्षमें तमरा अभियान ने कहा था- दूसरे संविधान सभा में मधेस को दो गम्भीर दुष्प्रभाव निश्चित रूप से भोगना पडेगा । पहला, भावी संविधान के आधारभूत विषय के बारे में राज्य ने कोई प्रतिबद्धता व्यक्त नहीं की है । संविधान का आधारभूत चरित्र कैसा हो यह निश्चित नहीं है । इससे पर्ूव हुए सम्झौतों को अमान्य किये जाने की अवस्था है । दूसरा, राज्य द्वारा विभिन्न हतकण्डा अपनाकर, कानूनी और संवैधानिक प्रपंच खडा करके मधेसी, जनजाति, दलित आदि समुदाय का प्रतिनिधित्व घटाने का व्यवस्था किया जा चुका है । इसलिये, अब बनने वाले संविधान सभा में राज्य की पर्ुनर्संरचना चाहने वाले पक्ष की उपस्थिति कमजोर रहेगी । इस पक्ष की कमजोर उपस्थिति के कारण राज्य के एकात्मवादी ढांचा में परिवर्तन कर सकने वाला संविधान बनने की सम्भावना ही नहीं है । संविधान सभा द्वारा ही मधेस के न्यायोचित मागों को तिरस्कृत करवाकर भावी आन्दोलन को समेत कमजोर एवं राष्ट्रीय अन्तर्रर्ाा्रीय जनमत के समक्ष अनुचित दिखाने का कार्य होगा । आज तक भावनात्मक रूप में एक रहे हुए मधेस को अब के संविधान सभा द्वारा भौगोलिक और प्रशासनिक रूप में ही विभाजित किया जायगा । मधेस में नेपाली राज्यसत्ता के आन्तरिक औपनिवेशिकता को समाप्त करने हेतु आजतक हुए सभी आन्दोलनों की उपलब्धियों को ध्वस्त करते हुए मधेस और अधिक आन्तरिक औपनिवेशिकता के कठोर चक्रव्यूह में पड जायगा । कल बनने वाले संघीय या केन्द्रीय संसद में मधेस का प्रतिनिधित्व कमजोर रहेगा और समान जनसंख्या के आधार पर राष्ट्रीय विधायिका में मधेसी प्रतिनिधित्व के नैर्सर्गिक अधिकार को समाप्त कर देगा । एक बार हम पुनः नेपाली भाषा के औपनिवेशिक दास हो जाएंगे ।
संविधान सभा का दुष्परिणामः
संविधान के अर्न्तर्वस्तु मेर्ंर् इमानदार राजनीतिक सहमति नहीं हो सकी । इसलिये अब संविधान सभा द्वारा जनता की इच्छा अनुसार एकात्मवादी राज्य संरचना में आमूल परिवर्तन के साथ संविधान नहीं बनना निश्चित हो गया है । मधेसी जनता की मांग तथा इच्छा अनुसार तो अब संविधान बनने की कोई सम्भावना ही नहीं है । इसके लिये इन तथ्यों का गम्भीरता से मनन करना पडÞेगा ।
-१) मधेसी, आदिवासी जनजाति सहित उपेक्षित उत्पीडिÞत समुदाय की जनता के न्यायोचित आन्दोलन के क्रम में संविधान सभा द्वारा राज्य की पर्ुनर्संरचना सम्बन्धित मांगों को पूरा किया जायेगा, ऐसी राज्य के द्वारा लिखित वचनबद्धता की गई थी । अभी स्वयं हस्ताक्षरकारी राज्यपक्ष ने उस वचनबद्धता को अस्वीकार किया है ।
-२) पहली संविधान सभा द्वारा राज्य की पर्ुनर्संरचना के क्रम में प्रदेशों की रचना करते समय पहचान के पांच आधार और सामर्थ्य के चार आधार को र्सवसम्मति से स्वीकार किया था । इसमें किसी भी दल की असहमति नहीं थी । अभी स्वयं राज्यपक्ष द्वारा इसको नहीं माना जा रहा ।
-३) पहली संविधान सभा द्वारा गठित अन्तरिम संविधान में हर्ुइ व्यवस्था अनुसार राज्य के पर्ुनर्संरचना आयोग के बहुमत द्वारा १० या १४ प्रदेश बनाने का निर्ण्र्ााहुआ था । अभी इस निर्ण्र्ााको अमान्य किया गया है ।
-४) माओवादी पार्टर्ीीे अवश्य ही मधेस की मुक्ति के सवाल को उठाया था । इस पार्टर्ीीे अपने प्रथम चुनावी घोषणापत्र में मधेस में पर्ूव और पश्चिम सहित दो स्वायत्त मधेस प्रदेश होने की बात कही थी । यह पार्टर्ीीभी मधेस के भूगोल के अन्दर पूरब में कोच प्रदेश, चितवन को काठमाण्डू के साथ जोडÞने और चितवन किसी भी शर्त पर मधेस में रहना नहीं चाहिये एवं कैलाली और कंचनपुर जिला सब उत्तर दक्षिण के प्रदेश में रहना चाहिये जैसे अत्यन्त विवादास्पद बात करके और मधेसी समुदाय के मनोविज्ञान को विखण्डनकारी प्रकार का कहते हुए मधेस में मधेसियों की मात्र सरकार बनने योग्य प्रदेश की रचना नहीं करने की बात कही है ।
-५) पहले संविधान सभा में मधेसी दलों का सहयोग और संख्या बगैर संविधान सभा के भीतर का किसी भी समीकरण या शक्ति का दो तिहाई पहुंच सकने की अवस्था नहीं थी । संविधान सभा द्वारा दो तिहाई बहुमत से संविधान जारी करने के लिये भी मधेसी दलों का सहयोग होना अपरिहार्य था । अभी मधेसी दलों की ऐसी रणनीतिक स्थिति नहीं है । ये सब अत्यन्त कमजोर हो चुके हैं । जनजाति दल भी संविधान सभा में संख्यात्मक आधार में निर्ण्ाायक नहीं हैं । फिर मधेसी और जनजाति के बीच प्रभावकारी कार्यगत एकता भी नहीं बन सकी है ।
-६) अभी तक के विभिन्न निर्वाचनों में मधेस से विशेषरूप से कांग्रेस और एमाले पार्टर्ीीारा उल्लेख्य मत प्राप्त करना एक यथार्थ है । इन पार्टियों द्वारा संविधान सभा के निर्वाचन में प्रत्याशी बने हुए व्यक्ति भी मधेस के मुद्दा में सकारात्मक रहेंगे और संविधान सभा में जाकर मधेस के हित में काम करने की बात कहकर मधेसी जनता को प्रभावित करके कांग्रेस और एमाले पार्टर्ीीे पक्ष में मत प्राप्त किया था । कांग्रेस एमाले के मधेसी सभासद – सांसद भी एक हद तक आशा के पात्र थे । लेकिन, अभी ये सब कांग्रेस और एमाले के मधेस विराधी चिन्तन के आगे प्रभावहीन तथा दास जैसे हो गये हैं ।
-७) संविधान सभा में नेपाली कांग्रेस, एमाले, राप्रपा और अन्य कुछ दलों ने आपस में दो तिहाई सदस्य संख्या पहुचाकर सात प्रदेश का प्रस्ताव किया है । इस प्रस्ताव अनुसार सिवाय दो के सभी प्रदेश उत्तर दक्षिण दिशा के होंगे । मधेस को पांच भाग में बांटा गया है । इस पांच में से कथित जनकपुर प्रदेश में मधेसी समुदाय का उच्च बहुमत है तो कथित लुम्बिनी प्रदेश में मधेसी जनसंख्या आधा बना दिया गया है । मधेस नाम से किसी प्रदेश का नामाकरण नहीं किया गया है । थारु, मुसलमान जैसे महत्वपर्ूण्ा समुदाय के अस्तित्व तक को स्वीकार नहीं किया गया है । प्रस्तावित संघीय संरचना में बनने वाले संसद में मधेस का प्रतिनिधित्व एकदम कम होगा । प्रतिनिधित्व के सवाल पर जनसंख्या के सिद्धान्त को पर्ूण्ारूपेण इन्कार किया गया है । नेपाल के बहुभाषिक यथार्थ को नहीं माना गया है, पुनः नेपाली -एक भाषा नीति को माना गया है । प्रदेश की रचना को प्रस्तावित करते समय खसवादी राज्य सत्ता देश के सभी प्राकृतिक श्रोत पर एकाधिकारवादी नियन्त्रण रखा है । मधेस होकर बहने वाली कोशी, नारायणी और कर्ण्ााली जैसी ऊर्जा एवं जलश्रोत के विपुल भण्डार को कब्जा करके रखना चाहा है । जलश्रोत के सम्बन्ध में मधेस को निचले तटीय लाभ के अन्तर्रर्ाा्रीय सिद्धान्त को भी सदा के लिये समाप्त करना चाहा है ।
संविधान सभा का परित्यागः
इन सब आधार पर संविधान बनकर जारी हुआ तो मधेस इस एकात्मवादी राज्य व्यवस्था का दास होगा । मधेसी नागरिक दासत्व में पडेंगे । इस परिस्थिति को संविधान सभा में रह  मधेसी, आदिवासी जनजाति, दलित आदि नहीं बदल सकेंगे । इसलिये अब संविधान सभा में रह रहे मधेसी, आदिवासी जनजाति और दलित प्रतिनिधियों को संविधान सभा का परित्याग कर स्थापित राज्य सत्ता के विरुद्ध निर्ण्ाायक आन्दोलन की धार का निर्माण करना होगा । इसके लिये तमरा अभियान संविधान सभा में रह रहे सभी मधेसी, आदिवासी – जनजाति, दलित सहित बहिष्करण में डाले गये उत्पीडिÞत, उपेक्षित समुदाय के सभासदों को आहृान करता है ।
हम कथित संविधान नहीं मानेंगेः
१) तर्राई मधेस राष्ट्रिय अभियान मधेसी जनता को दास बनाने और मधेस में आन्तरिक औपनिवेशिकता को कायम ही रखने वाले संविधान को नहीं मानेगा । -२) यदि संविधान सभा से प्रकृयागत रूप में ही सही, जनता के परिवर्तन की आकांक्षा के विपरीत संविधान का प्रारूप लाया गया तो इसके विरोध में तमरा अभियान सरकारी पक्ष के समानान्तर अभिमत निर्माण हेतु जनमत निर्माण के लिये सभा, जुलूस आदि का प्रारम्भ करेगा । -३) तमरा अभियान मधेस के प्रत्येक जिलों में सरकारी पक्ष के जनमत या अभिमत निर्माण कार्य को सशक्त, शांतिपर्ूण्ा तथा अहिंसक तवर में अवरोध खडा करेगा । -४) राज्य द्वारा दमन, धरपकड और गिरप\mतारी शुरु कर राज्य आतंक खडा किये जाने पर अभी के अन्तरिम संविधान द्वारा प्रदत्त जनअधिकार की रक्षा के लिये जनता के सहयोग तथा सहभागिता में बन्द, आम हडताल जैसे हर सम्भव रास्तों को अपनाएगा । -५) फिर भी तमरा अभियान चाहता है कि संविधान सभा द्वारा ही संविधान का निर्माण हो । इसलिये हमारी सोच है कि, व्यापक जनदबाव के बिना प्रतिगमनकारियों की बाहुल्यता वाला यह संविधान सभा राज्य के अग्रगमनकारी पर्ुनर्संरचना सहित का संविधान नहीं बनाएगी । इसलिये, आन्दोलन के दबाव मात्र से संविधान सभा जनचाहना के अनुसार का संविधान बनाएगी । तमरा अभियान इस गरुडा घोषणा पर प्रतिबद्ध है । इसमें इस राष्ट्रीय परिषद के सभी सदस्यों के कर्मशील सहभागिता रहने का वचनबद्धता है ।
कार्तिक २१ और २२ गते
गरुडा, रौतहट



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