जनकवि महेश्वर का जयंती समारोह सप्ताह संगोष्ठी के साथ संपन्न हुआ

जनकपुरधाम/मिश्री लाल मधुकर । जन संस्कृति मंच के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव जनकवि कॉ. महेश्वर के जयंती समारोह सप्ताह का समापन जसम दरभंगा इकाई के तत्वावधान में संगोष्ठी से हुआ। समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता जसम दरभंगा के जिलाध्यक्ष डॉ. रामबाबू आर्य ने तथा कार्यक्रम का संचालन जिला सचिव समीर ने किया।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए जसम राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य प्रो.सुरेंद्र सुमन ने कहा कि हर आंदोलन के अपने खास कवि होते हैं। इस लिहाज से महेश्वर नक्सलबाड़ी आंदोलन के अपने खासमखास कवि थे। बीएचयू के दिनों के साथी गोरख पांडेय के साथ उनकी मैत्री मजबूत विचारधारात्मक आधारों पर थी। इन दोनों ही कवियों ने नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रभावित होकर लिखना शुरू किया था। बीएचयू से उच्च शिक्षा प्राप्त कर जब महेश्वर पटना विश्वविद्यालय शिक्षक के रूप में लौटे तब तक वे भाकपा–माले के पूरावक्ती कार्यकर्त्ता बन चुके थे। इस दौरान उन्होंने नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा का नेतृत्व संभाला, हीरावल की स्थापना की और लोकयुद्ध और समकालीन जनमत जैसी गहन वैचारिक सरोकार की पत्रिकाओं का सम्पादन किया। गोरख पांडेय के बाद उन्होंने जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व भी संभाला। इससे उनके रचनात्मक सरोकारों के साथ सामाजिक–राजनीतिक जनपक्षधरता का भी बखूबी पता चलता है। कविता के उद्वेश्य के संबंध में उनका मानना था कि कविता का काम एक्टिवेट करना है। उनके लेख, नाटक, कहानियां और कविताएं आमूलचूल बदलाव की आकांक्षा को अभिव्यक्त करते हैं। आज महेश्वर को गुजरे दो दशक बीत चुके हैं पर उनके लेखन की ओर हिन्दी आलोचना जगत ने ध्यान नहीं दिया है। उनके रचनाकार का सही मूल्यांकन अब भी शेष है।
वहीं जसम बिहार के राज्य उपाध्यक्ष डॉ. कल्याण भारती ने कहा कि महेश्वर पार्टी के मुखपत्र लोकयुद्ध के संभवतः प्रथम संपादक थे। उनसे मेरी मुलाकात पटना के एक प्रेस में हुई थी। उनकी जितनी ख्याति एक बौद्धिक और रचनाकार के रूप में थी, राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनकी वैसी ही ख्याति थी। उन्होंने जनवादी सांस्कृतिक आंदोलन खड़ा करने में पटना और समूचे बिहार में अभूतपूर्व भूमिका निभाई थी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ.रामबाबू आर्य ने कहा कि महेश्वर वास्तविक अर्थों में ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी थे। भोजपुर आंदोलन के समय में पार्टी के दस्तावेजीकरण के प्रायः सभी महत्वपूर्ण कार्य महेश्वर ही किया करते थे। उनकी बौद्धिकता, उनकी रचनात्मकता पूरी तरह जनता को समर्पित थी। लम्बी बीमारी से जूझते हुए मृत्यु से पहले उन्होंने कहा था, पार्टी जीवन देती है। यह बात उनके समर्पण, जिजीविषा और जनपक्षधरता को समझने के लिए काफी है।
डॉ. संजय कुमार ने महेश्वर की कविताओं का पाठ किया। उन्होंने कहा कि महेश्वर की कविताएं जनमुक्ति का घोषणा पत्र है।
मौके पर पीयूष सुमन, डॉ.अनामिका सुमन, अशगरी बेगम, बबिता सुमन आदि उपस्थित थे।
–जसम दरभंगा