Wed. Apr 23rd, 2025

आज से सभी संवैधानिक आयोगों के 11 पद रिक्त

काठमांडू: नेपाल में संवैधानिक आयोगों की नियुक्तियों को लेकर गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। संवैधानिक आयोगों के पांच अध्यक्षों समेत कुल 11 पद रिक्त हो गए हैं, लेकिन सरकार अब तक उनकी नियुक्ति का रास्ता साफ नहीं कर पाई है।

रिक्त पदों की स्थिति

राष्ट्रीय प्राकृतिक स्रोत तथा वित्त आयोग, थारू आयोग, मधेशी आयोग और मुस्लिम आयोग के अध्यक्षों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय समावेशी आयोग का अध्यक्ष और दो सदस्य पहले से ही रिक्त हैं। चुनाव आयोग, महिला आयोग, प्राकृतिक स्रोत तथा वित्त आयोग और मुस्लिम आयोग में भी पहले से एक-एक सदस्य के पद खाली पड़े हैं। वहीं, प्रमुख निर्वाचन आयुक्त दिनेश थपलिया भी जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं।

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नियुक्तियों में संवैधानिक अड़चन

नेपाल के संविधान की धारा 284(3) के अनुसार, संवैधानिक पदों के रिक्त होने से एक माह पूर्व ही संवैधानिक परिषद को नए पदाधिकारियों की सिफारिश करनी होती है। लेकिन, संवैधानिक परिषद का समीकरण सत्ता पक्ष के लिए अनुकूल न होने के कारण नियुक्ति प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो सकी है।

विधेयक संसद में अटका

संवैधानिक परिषद से संबंधित विधेयक पिछले साढ़े नौ महीनों से संसद में लंबित पड़ा है। यह विधेयक संसद की राज्य व्यवस्था एवं सुशासन समिति से पारित हो चुका है, लेकिन इसे सदन से स्वीकृति नहीं मिल पाई है। संसद में इस मुद्दे को बार-बार उठाए जाने के बावजूद सरकार इसे पास कराने में रुचि नहीं दिखा रही है।

सत्तापक्ष और विपक्ष की स्थिति:

  • सत्तारूढ़ गठबंधन: माओवादी केंद्र के प्रमुख सचेतक हितराज पांडे ने कहा कि सरकार ने संवैधानिक परिषद से संबंधित विधेयक को इसलिए रोका है क्योंकि परिषद का अंकगणित सरकार के पक्ष में नहीं है।
  • विपक्षी दल: प्रमुख विपक्षी दल एमाले के मुख्य सचेतक महेश बर्तौला का कहना है कि यह विधेयक पिछले सरकार के कार्यकाल से ही लंबित है, लेकिन अब इसे जल्द ही आगे बढ़ाया जाएगा क्योंकि इसके विषय-वस्तु को लेकर कोई विवाद नहीं है।
  • अन्य सांसद: राज्य व्यवस्था समिति के सभापति रामहरि खतिवड़ा का कहना है कि सरकार को यह विधेयक सदन में आगे बढ़ाना चाहिए था, लेकिन इसे अनावश्यक रूप से रोका गया है।
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आगे की राह

संवैधानिक आयोगों के प्रमुख और सदस्य पदों की नियुक्ति नहीं होने से कई आयोग निष्क्रिय हो सकते हैं, जिससे प्रशासनिक और संवैधानिक कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। ऐसे में सरकार और विपक्षी दलों को जल्द से जल्द कोई हल निकालना होगा ताकि संवैधानिक आयोग प्रभावी रूप से काम कर सकें।

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