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महिला होते हुए भी किसी भी रूप में पुरुषों से कम नहीं और बहुआयामी व्यक्तित्व वाली और नेपाल की जानीमानी उद्यमी भवानी राणा से



bhawani-rana
भवानी राणा

हिमालिनी महाप्रबन्धक कविता दास द्वारा हुई बातचीत का सम्पादित अंशः
० आप एक सफल मुकाम पर हैं और नेपाली महिलाओं के लिए एक आदर्श भी, सर्वप्रथम हिमालिनी परिवार की ओर से आपका हार्दिक अभिवादन । कृपया आप अपने विषय में कुछ बताएँ !
– वैसे तो मैं बीरगंज से हूँ, पर अब मैं काठमांडू में ही रहती हूँ । मेरी प्रारम्भिक शिक्षा काठमांडू में सेन्ट मेरी स्कूल से हुई, उसके बाद उच्च शिक्षा मैंने लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त  की । घर का माहौल ऐसा था कि उसने मुझे निखारा । मैंने अपने लिए जो राह सोची उसमें मेरे अभिभावक मेरे माता पिता का पूरा सहयोग मिला । बचपन से हर किसी की कोई ना कोई इच्छा होती है । कोई डाक्टर तो कोई इंजीनियर आदि बनना चाहता है । किन्तु मुझमें शायद नेतृत्व की क्षमता थी, क्योंकि मैं या तो नेता बनना चाहती थी या महिला उद्योगकर्मी बनना चाहती थी । मेरे पिता अंचलाधीश थे, इसलिए प्रशासकीय क्षमता मुझमें थी ।  फिर कुछ आपकी नियति तय करती है और आपके पैर उसी राह पर बढ़ जाते हैं बस आज मैं आपके सामने एक उद्यमी के रूप में हूँ ।
० आप कब से इस क्षेत्र में हैं ?
– मुझे तकरीबन बीस वर्ष हो गए इस क्षेत्र से जुड़े हुए । मैं कई महिला सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हुई हूँ । साथी संस्था से मैं जुड़ी हूँ, जिसमें महिलाओं के अधिकार से जुड़ी बातों पर काम होता है । मैं इस संस्था की भाइस प्रेसीडेन्ट हूँ । इस संस्था से सम्बद्ध होकर मैंने इस क्षेत्र की महिलाओं के साथ और उनके लिए काम किया । मैंने कहा कि मैं पिछले बीस वर्षों से इनसे सम्बद्ध हूँ । पहाड़ी महिला, मुस्लिम महिला, मधेशी महिला, थारु महिला इन सबके लिए हमने काम किया है । इनमें चेतना आई है । ये जान गई हैं कि इनका परिवार में समाज में क्या स्थान है और इनके क्या अधिकार हैं । किन्तु मैं मानती हूँ कि जबतक इनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होगी ये अपने पैरों पर खड़ी नहीं होंगी, तब तक इनकी स्थिति में सुधार नहीं होगा । इसलिए हमारी संस्था इन्हें इन सारी बातों से अवगत कराती है और चेतनामूलक कार्य करती है । मैं महिला उद्यमी महासंघ की भी उपाध्यक्ष हूँ ।
० आप महिला हैं, और उद्योग जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र को आपने चुना, आपका शुरुआती अनुभव कैसा रहा ?
– हमारा समाज पुरुष प्रधान है यह तो हम जानते हैं । कहीं ना कहीं इसका असर हर क्षेत्र में दिखता भी है । जिस अनुपात में महिलाओं को आगे आना चाहिए, ऐसा नहीं हो पा रहा है क्योंकि कहीं ना कहीं पुरुष मानसिकता सामने आ जाती है । मुझे भी थोड़ी कठिनाई हुई घर से बाहर स्वयं को स्थापित करने में, पर यह भी सच है कि जब मैं इस क्षेत्र से जुड़ी तो मैं अकेली थी मेरे आस पास सभी पुरुष वर्ग ही थे पर उनका मुझे अपेक्षित सहयोग मिला । मैंने जब नेपाल उद्योग वाणिज्य महासंघ के लिए चुनाव लड़ा तो उनका सहयोग मिला तभी मैं नेपाल उद्योग वाणिज्य संघ की उपाध्यक्ष बन पाई । मेरे पुरुष सहकर्मी ने साथ नहीं दिया होता तो ऐसा सम्भव नहीं हो पाता । इसलिए मैं मानती हूँ कि क्षमता हमारे अन्दर होती है उसे बाहर लाने की आवश्यकता है और उसे निखारने में आपका परिवार सहयोग करता है । अभी मैं सीनियर एक्जक्यूटिव मेम्बर हूँ यहाँ की ।
० आपने परिवार का नाम लिया, आपके परिवार से आपको कैसा सहयोग मिला ?
– सभी ने मेरा साथ दिया और तभी मैं इस स्थान तक पहुँच पाई हूँ क्योंकि अगर उनका साथ नहीं मिलता और मैं उन्हें खुश नहीं रख पाती तो मुझे सब कुछ पाकर भी आत्मसंतुष्टि नहीं मिलती । मैं परिवार को साथ लेकर चलने में विश्वास करती हूँ । अगर आपने सब पा लिया और आपका परिवार आपके साथ नहीं है तो वो उपलब्धि कोई मायने नहीं रखती । मेरे पिता, मेरी माँ मेरे पति सबने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया है ।
० महिला सशक्तिकरण के विषय में आपकी क्या राय है ?
– मैंने अपनी उम्र के साथ–साथ ये जाना कि महिला सशक्तिकरण तभी सम्भव है जब महिला आर्थिक रूप से सशक्त हो । शिक्षा की आवश्यकता है ताकि उनका मानसिक विकास हो और जब ऐसा होता है तभी वो आर्थिक स्तर से मजबूत हो सकती हैं । इसलिए मैं जब भी उनके पास जाती हूँ तो उसे यही कहती हूँ कि आप आर्थिक रूप से मजबूत हों । तभी आप घरेलु हिंसा से भी मुक्त हो सकती हैं ।
० आपने घरेलु हिंसा की बात कही, सरकार ने महिला आयोग का गठन भी किया है पर अधिकांश महिलाएँ वहाँ जाना नहीं चाहती हैं, इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगी ?
– इसके पीछे भी कहीं ना कहीं उसका डर होता है । वो सोचती हैं कि कल फिर उसे उसी घर में वापस जाना होता है । क्योंकि उसका पोषण उसी घर में होता है अगर वो कमाउ हंै तो वो लड़ सकती हैं घर में भी उसे स्थान मिल सकता है । पर अगर वो सक्षम नहीं हैं तो वह डर कर हिंसा सहने को बाध्य हो जाती हैं ।
० घर या काम आप किसे कितना महत्व देती हैं ?
– पहली पहचान हमारी हमारे घर से जुड़ी होती है । इसलिए हर कामकाजी महिला को अपना घर अपने साथ लेकर चलना चाहिए, क्योंकि घर हमारे पक्ष में हो तो समाज आपको खुद स्थान देगा । हमारा कैरियर हमें पहचान देता है तो घर हमारी शान, और पहचान दोनों है । आप तभी सफल कहलाएँगी जब आपसे आपका घर भी खुश रहे । मैं इस मामले में लकी हूँ कि मुझे ऐसा घर मिला जहाँ मेरी सासु माँ और मेरे पति ने मेरा खुले दिल से साथ दिया । और फिर मैं अपने काम के प्रति भी पूरी जिम्मेदार हूँ उसे ईमानदारी से पूरा करती हूँ । काफी लम्बे समय से मैं कर्मक्षेत्र से सम्बद्ध हूँ और पूरी लगन से अपना काम करती हूँ ।
० कई बार ऐसा देखा गया है कि महिला कमाती हैं किन्तु उनकी कमाई पर उनका ही अधिकार नहीं होता है, इस स्थिति में आप क्या कहेंगी ?
– मैं मानती हूँ कि ऐसा होता है । महिलाओं में धैर्य की कमी नहीं होती इसलिए हमेशा हमारा समाज उससे ही अपेक्षा करता है कि वह घर को टूटने से बचाए । इसलिए महिलाओं के ऊपर दोहरी जिम्मेदारी होती है । उसे घर और बाहर दोनों सम्भालना होता है । पर अगर घर में ही उसके साथ गलत होता है तो, उसे पहले कोशिश करनी चाहिए कि घरवालों की सोच बदले । पर  अगर ऐसा नहीं हो तो उसे प्रतिकार करने का भी अधिकार है क्योंकि किसी भी बात की हद होती है और महिलाओं को भी आत्मनिर्णय का अधिकार है ।
० मार्च ८ अर्थात् अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस, ऐसे दिवसों को मनाने का औचित्य ?
– कोई एक दिन जिसे नारी दिवस कहा गया यह संदेश देता है कि हमारी समाज में क्या महत्ता है । महिलाओं में इस चेतना का प्रसार करता है कि उसके अधिकार क्या हैं । चर्चा परिचर्चा को स्थान मिलता है । हम एक दूसरे से जुड़ते हैं ।
० नेपाल की महिलाओं के लिए कोई संदेश ?
– मैं प्रत्येक महिला से यह कहूँगी कि क्षमता आपके भीतर है, उसे पहचानिए । उसे बाहर लाईए । हम नारी हैं यह हमारा कमजोर पक्ष नहीं है, बल्कि यही हमारी शक्ति है । पुरुषों से शारीरिक रूप में कमजोर हो सकते हैं किन्तु हमारा मनोबल और धैर्य ही हमारी शक्ति है । सशक्तिकरण का यह अर्थ नहीं है कि आपका परिवार टूटे बल्कि आपको उसे मजबूती प्रदान करना है स्वयं को मजबूत कर के । आपका स्वावलम्बन ही आपको मजबूती का आधार देगा इसलिए आपको आर्थिक रूप से स्वयं को सशक्त करना है । अन्तरराष्ट्रीय दिवस के अवसर पर सबको मेरी शुभकामना । धन्यवाद ।

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