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रामनवमी विशेष : राम से बड़ा राम का नाम, जो सुमिरे भव पार हो जाए : श्वेता दीप्ति

काठमान्डू 6अप्रैल

राम से बड़ा राम का नाम,

जो सुमिरे भव पार हो जाए,

बनेंगे बिगड़े सारे काम रे प्राणी,

उद्धार हो जाए,

राम सें बड़ा राम का नाम,

जो सुमिरे भव पार हो जाए ॥

सदियों से भगवान राम की कथा हिन्दु संस्कृति में रची बसी है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन चरित्र लोगों को सही राह पर चलने की शिक्षा देता आ रहा है, लेकिन क्या भगवान राम से जुड़ी कहानी सिर्फ कथा है, क्या भगवान राम कल्पना हैं, आखिर हमारे पास भगवान राम के सच होने का क्या प्रमाण है?

रामायण और भगवान राम अगर कल्पना नहीं हैं तो क्या आधुनिक विज्ञान उनके सच होने का कोई प्रमाण खोज सकता है। आखिर सदियों से घूमते समय के चक्र में, बनते बिगड़ते ब्रह्मांडीय घटनाओं के बीच हमारी पृथ्वी पर दियों से बनती-बिगड़ती सभ्यताओं की कथाओं के बीच, आखिर किस काल, किस वर्ष, किस तारीख, किस वक्त में और कहां? रामकथा से जुड़ी सभ्यताओं ने सांस ली।

आखिर किस देश काल में रामकथा से जुड़े पात्र सचमुच, हमारी-आपकी तरह बोलते-चलते सशरीर इस दुनिया में थे। अब तक इस सवाल का जवाब हमें वेदों के काल की तरफ ले जाता था।

कहा जाता है कि पांचवी से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व जिस काल को ऋग्दवेद का काल कहा जाता है, तभी महर्षि वाल्मिकी ने रामायण की रचना की। लेकिन अब तक इस बात इतिहासकारों की राय बंटी हुई थी, लेकिन अब इस बात के सच होने का वैज्ञानिक प्रमाण मिल गया है।

भगवान राम के जन्म लेकर धरती पर अवतरित होने की घटना हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है। कई बार यह प्रमाणित करने की कोशिश की जाती रही है कि इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि त्रेतायुग में जन्मे अयोध्या के राजा राम कोई चमत्कारी पुरुष थे। इस बात को सिद्ध करने के लिए कई प्रयत्न किए गए कि वह महज़ एक राजा थे ना कि विष्णु के अवतार, जिन्होंने अपनी चमत्कारी ताकतों द्वारा असुर सम्राट रावण का अंत किया था।

यही वजह है कि रामायण में उल्लिखित रामसेतु, जिस पर चढ़कर राम और उनकी सेना ने लंका पर आक्रमण किया था, को भी भगवान राम की वानर सेना द्वारा बनाया गया मानने से इनकार किया जाता रहा है।

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जहां एक ओर अनेक तथ्यों द्वारा भगवान राम की सत्यता पर संदेह किया जाता रहा है वहीं बहुत से शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने अपने-अपने दावों और शोधों से यह पुख्ता किया है कि भगवान राम एक चमत्कारी पुरुष थे और उन्होंने धरती पर जन्म लिया था।

फादर कामिल बुल्के ने अपने शोध के द्वारा 300 ऐसे प्रमाण पेश किए थे जिनके आधार पर राम के जन्म की घटना को सत्य कहा जा सकता है। भगवान राम से जुड़ा एक अन्य शोध चेन्नई की एक गैर सरकारी संस्था द्वारा किया गया, जिसके अनुसार राम का जन्म 5,114 ईसापूर्व हुआ था। इस शोध के अनुसार राम के जन्म को करीब 7,123 वर्ष हो चुके हैं।

वाल्मीकि रामायण में उल्लिखित राम के जन्म के समय के नक्षत्रों की स्थिति को ‘प्ले‍नेटेरियम’ नामक सॉफ्टवेयर से गणना की गई तो उस समय और तारीख का स्पष्ट ज्ञान हो गया जिस समय राम ने धरती पर जन्म लिया था। प्लेनेटेरियम एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणियों के साथ-साथ गत लाखों सालों के हालातों का भी वर्णन कर सकता है।

यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कॉन्टिन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबॉटिक्स नाम की इस एग्जीबिशन में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, भगवान राम न केवल 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व जन्में थे बल्कि उनका जन्म दोपहर बारह बजकर पांच मिनट (12:05 PM) पर हुआ था। जब रामायण में बताई गए ग्रह-नक्षत्र का प्लेनेटेरियम सॉफ्टवेयर ने आँकलन किया, तो राम जन्म की तिथि 4 दिसंबर ईसा पूर्व यानी आज से 9349 साल बताई गई। रिसर्च में यह भी बताया गया है कि 5076 ईसा पूर्व 12 सितंबर को अशोक वाटिका में माता सीता से हनुमान की मुलाकात हुई थी।

‘यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कन्टीन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबोटिक्स’ में दावा किया कि महाभारत का युद्ध 3139 ईसा पूर्व 13 अक्टूबर को शुरू हुआ था। हालांकि इस तकनीक द्वारा बताई गई जानकारी कितनी सही और सटीक है, इसके बारे में केन्द्रीय मंत्रालय ने कहा है कि वो इसपर ठीक तरीके से जांच करेंगे और सही तथ्य का पता लगाने का प्रयास करेंगे।

राम के पुत्र लव-कुश के विषय में भी शोध संपन्न किए गए, जिनके अनुसार यह प्रमाणित हुआ कि लव-कुश की 50वीं पीढ़ी से शल्य वंश का उद्भव हुआ था जिन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। इसे आधार माना जाए तो लव और कुश का जन्म महाभारत काल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुआ था यानि आज से करीब 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।

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राम के जन्म लेने का प्रमाण केवल भारत में ही नहीं बल्कि अनेक देशों में लिखी गई पुस्तकों और ग्रंथों में भी मिलता है। बाली, जावा, सुमात्रा, नेपाल, लाओस, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, कंपूचिया, मलेशिया, श्रीलंका और थाईलैंड आदि देशों की संस्कृतियों व पौराणिक ग्रंथों द्वारा आज भी वहां राम को जीवित रखा गया है।

हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ रामायण के रचयिता वाल्मीकि ने रामायण की रचना भगवान राम के काल के दौरान ही की थी। इसी वजह से इस ग्रंथ को सबसे अधिक प्रमाणिक भी माना जाता है। वाल्मीकि ने पुराणों में गठित इतिहास को मिथकीय स्वरूप द्वारा रामायण में गढ़ा था। इसमें तथ्यों की क्रमबद्धता ना होने की वजह से ही शायद राम के जन्म को लेकर विवाद कायम रहा है।

इसके बाद गोस्वामी तुलसीदास, जिनका जन्म सन् 1554 ई. हुआ था, ने रामचरित मानस की रचना की। सत्य है कि रामायण से अधिक रामचरित मानस को लोकप्रियता मिली है लेकिन यह ग्रंथ भी रामायण के तथ्यों पर ही आधारित है।

भाषा में कम्बन रामायण, असम में असमी रामायण, उड़िया में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, बंगाली में रामायण पांचाली, मराठी में भावार्थ रामायण आदि को प्राचीनकाल में ही लिख दिया गया था।

भारत के अलावा विदेशी भाषा में भी रामायण की रचना हुई जिनमें कंपूचिया की रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण, लाओस फ्रलक-फ्रलाम, मलेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन और नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण आदि प्रमुख हैं।

इन सभी के अलावा अन्य भी बहुत से ऐसे देश हैं जहां रामायण को लिखा गया। इससे यह प्रमाणित होता है कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी राम कथा का गहरा प्रभाव रहा है।

संस्कृत और पालि साहित्य का प्राचीनकाल से ही श्रीलंका से गहरा संबंध रहा है। रामायण समेत अन्य कई भारतीय महाकाव्यों के आधार पर रचित जानकी हरण के श्रीलंकाई रचनाकार और वहां के राजा, कुमार दास को कालिदास के घनिष्ठ मित्र की संज्ञा दी जाती है। इतना ही नहीं सिंघली भाषा में लिखी गई मलेराज की कथा भी राम के जीवन से ही जुड़ी हुई है।

शुरुआती दौर में बर्मा को ब्रह्मादेश के नाम से जाना जाता था। बर्मा की प्राचीनतम रचना रामवत्थु श्री राम के जीवन से ही प्रभावित है। इसके अलावा लाओस में भी रामकथा के आधार पर कई रचनाओं का विकास हुआ, जिनमें फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), ख्वाय थोरफी, पोम्मचक (ब्रह्म चक्र) और लंका नाई आदि प्रमुख हैं।

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प्रारंभिक काल में इंडोनेशिया और मलेशिया में पहले हिन्दू धर्म के लोग ही रहा करते थे लेकिन फिलिपींस के इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद वहां धार्मिक हिंसा ने जन्म लिया, जिसकी वजह से समस्त देश के लोगों ने इस्लाम को अपना लिया। इसलिए जिस तरह फिलिपींस में रामायण का एक अलग ही स्वरूप विद्यमान है कुछ उसी तरह इंडोनेशिया और जावा की रामायण भी उसी से मिलती-जुलती है।

डॉ. जॉन. आर. फ्रुकैसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में रचित एक रामकथा को खोजा जिसका नाम मसलादिया लाबन दिया गया। रामकथा पर आधारित जावा की प्राचीनतम कृति ‘रामायण काकावीन’ है। काकावीन की रचना जावा की प्राचीनतम कावी भाषा में हुई है।

13वीं शताब्दी में मलेशिया का भी इस्लामीकरण हुआ। यहां रामकथा पर एक विस्तृत ग्रंथ की रचना हुई जिसका नाम है ‘हिकायत सेरिराम’। माना जाता है मूल रूप से मलेशिया पर रावण के मामा का शासन था।

चीनी रामायण को ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’ ने नाम से जाना जाता है। इन दोनों ही ग्रंथों में रामायण के अलग-अलग पात्रों का जिक्र है। इन चीनी रामायणों के अनुसार राजा दशरथ अयोध्या के नहीं बल्कि जंबू द्वीप के सम्राट थे जिनके पहले पुत्र का नाम लोमो था। चीनी लोक कथाओं के अनुसार राम का जन्म 7,323 ईसापूर्व हुआ था।

चीन की अपेक्षा उसके उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया के लोगों को राम के जीवन की विस्तृत जानकारी है। वहां रहने वाले लामाओं के घरों या निवास स्थलों से राम की सेना यानि वानरों की कई प्रतिमाएं मिलती हैं। मंगोलिया से राम के जीवन से जुड़ी कई पांडुलिपियां भी प्राप्त हुई हैं।

तिब्बत के लोग रामकथा को किंरस-पुंस-पा से जानते हैं। प्राचीनकाल से ही यहां वाल्मीकि रामायण काफी प्रख्यात रही है। तिब्बत के तुन-हुआंग नामक स्थल से रामायण की छ: प्रतियां भी प्राप्त हुई हैं।

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