१८३वीं बार रक्तदान कर प्रेमसागर कर्माचार्य ने दिया मानवता का जीवंत उदाहरण
नेपालगंज (बांके) / पवन जायसवाल । “रक्त सम्राट” और “राष्ट्रीय रक्तनायक” जैसे प्रतिष्ठित उपाधियों से सम्मानित तथा नेपाल स्वयंसेवी रक्तदाता समाज के केन्द्रीय अध्यक्ष प्रेमसागर कर्माचार्य ने एक बार फिर मानव सेवा का अद्वितीय उदाहरण पेश किया है। उन्होंने शनिवार को कञ्चनपुर के महेन्द्रनगर स्थित रक्तसञ्चार केन्द्र में अपना १८३वां स्वेच्छिक रक्तदान किया।
नेपाल के इतिहास में सबसे अधिक बार रक्तदान करने वाले स्वयंसेवी कर्माचार्य का यह प्रयास केवल संख्यात्मक उपलब्धि नहीं, बल्कि जीवन बचाने के प्रति गहराई से जुड़ा एक संकल्प है। उन्होंने कहा, “खून का कोई विकल्प नहीं होता। इसलिए १८ वर्ष की उम्र पूरा करने वाले युवाओं को जन्मदिन जैसे अवसर पर रक्तदान करके उसे एक सार्थक उत्सव के रूप में मनाना चाहिए।”

‘दान किया खून मुफ्त होना चाहिए’
कर्माचार्य लंबे समय से इस बात की वकालत कर रहे हैं कि स्वेच्छा से दान किया गया खून नागरिकों को निःशुल्क मिलना चाहिए। उनका कहना है, “जब रक्तदाता बिना किसी शुल्क के रक्तदान करते हैं, तो फिर रक्त सञ्चार केन्द्रों द्वारा नागरिकों से परीक्षण के नाम पर शुल्क लेना अमानवीय है। सरकार को चाहिए कि वह रक्त और रक्त के तत्वों को निःशुल्क उपलब्ध कराए।”

देशभर में फैलाई चेतना, युवाओं को करते हैं प्रेरित
प्रेमसागर कर्माचार्य न केवल स्वयं रक्तदान करते हैं, बल्कि पूरे देश में युवाओं को इस पुनीत कार्य के लिए प्रेरित भी करते हैं। उनका नारा है — “रक्तदाताओं की कोई सीमा नहीं होती।”
उन्होंने जुम्ला, डडेल्धुरा, सुर्खेत, बाँके, गोरखा, बर्दिया, नुवाकोट, स्याङ्जा, बझाङ सहित दर्जनों जिलों में जाकर स्वयं रक्तदान किया है और स्थानीय युवाओं को इस कार्य के प्रति जागरूक किया है।
उनका कहना है, “जो संस्थाएं रक्तदान कार्यक्रम आयोजित करती हैं, उन्हें साल में केवल एक बार नहीं बल्कि कम से कम चार बार रक्तदान कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए।”
**सम्मान और प्रेरणा के प्रतीक
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१८३वीं बार रक्तदान कर प्रेमसागर कर्माचार्य ने दिया मानवता का जीवंत उदाहरण
नेपालगंज (बांके) / पवन जायसवाल
“रक्त सम्राट” और “राष्ट्रीय रक्तनायक” जैसे प्रतिष्ठित उपाधियों से सम्मानित तथा नेपाल स्वयंसेवी रक्तदाता समाज के केन्द्रीय अध्यक्ष प्रेमसागर कर्माचार्य ने एक बार फिर मानव सेवा का अद्वितीय उदाहरण पेश किया है। उन्होंने शनिवार को कञ्चनपुर के महेन्द्रनगर स्थित रक्तसञ्चार केन्द्र में अपना १८३वां स्वेच्छिक रक्तदान किया।
नेपाल के इतिहास में सबसे अधिक बार रक्तदान करने वाले स्वयंसेवी कर्माचार्य का यह प्रयास केवल संख्यात्मक उपलब्धि नहीं, बल्कि जीवन बचाने के प्रति गहराई से जुड़ा एक संकल्प है। उन्होंने कहा, “खून का कोई विकल्प नहीं होता। इसलिए १८ वर्ष की उम्र पूरा करने वाले युवाओं को जन्मदिन जैसे अवसर पर रक्तदान करके उसे एक सार्थक उत्सव के रूप में मनाना चाहिए।”
‘दान किया खून मुफ्त होना चाहिए’
कर्माचार्य लंबे समय से इस बात की वकालत कर रहे हैं कि स्वेच्छा से दान किया गया खून नागरिकों को निःशुल्क मिलना चाहिए। उनका कहना है, “जब रक्तदाता बिना किसी शुल्क के रक्तदान करते हैं, तो फिर रक्त सञ्चार केन्द्रों द्वारा नागरिकों से परीक्षण के नाम पर शुल्क लेना अमानवीय है। सरकार को चाहिए कि वह रक्त और रक्त के तत्वों को निःशुल्क उपलब्ध कराए।”
देशभर में फैलाई चेतना, युवाओं को करते हैं प्रेरित
प्रेमसागर कर्माचार्य न केवल स्वयं रक्तदान करते हैं, बल्कि पूरे देश में युवाओं को इस पुनीत कार्य के लिए प्रेरित भी करते हैं। उनका नारा है — “रक्तदाताओं की कोई सीमा नहीं होती।”
उन्होंने जुम्ला, डडेल्धुरा, सुर्खेत, बाँके, गोरखा, बर्दिया, नुवाकोट, स्याङ्जा, बझाङ सहित दर्जनों जिलों में जाकर स्वयं रक्तदान किया है और स्थानीय युवाओं को इस कार्य के प्रति जागरूक किया है।
उनका कहना है, “जो संस्थाएं रक्तदान कार्यक्रम आयोजित करती हैं, उन्हें साल में केवल एक बार नहीं बल्कि कम से कम चार बार रक्तदान कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए।”
सम्मान और प्रेरणा के प्रतीक
कर्माचार्य की इस अतुलनीय सामाजिक सेवा के लिए देशभर की विभिन्न संस्थाओं ने उन्हें “रक्त सम्राट”, “राष्ट्रीय रक्तनायक” जैसी उपाधियाँ देकर सम्मानित किया है। उनका यह निरन्तर योगदान केवल प्रेरणा नहीं, बल्कि मानवता और सहानुभूति का सशक्त प्रतीक बन चुका है।
१८३ बार रक्तदान करने वाले प्रेमसागर कर्माचार्य युवा पीढ़ी के लिए एक जीवित पाठशाला की तरह हैं, जो यह सिखाते हैं—
“रक्तदान करें, जीवन बचाएं।”
