घर के साथ बिखर गए सपने भी
नेपाल में आए भूकंप में अब तक 5000 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 8000 से ज़्यादा लोग घायल हैं और लाखों बेघर हो गए हैं.
भीषण भूकंप में जो लोग अपनी जान बचा पाए वो अब ज़िंदा रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
22 साल की स्वेछ्या तमराकर, उनके छोटे भाई और मां-बाप को कोई चोट नहीं आई पर उनके पिता की तांबे की दुकान और उसपर बना तीन मंज़िला घर तहस-नहस हो गया.
चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की ख्वाहिश रखने वाली स्वेछ्या ने बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य को बताई आपबीती.
पढ़ें स्वेछया की आपबीती उन्हीं के शब्दों में
जब भूकंप आया तो मॉम डैड नीचे थे, मेरा भाई बाहर गया हुआ था मैं तीसरे फ्लोर पर पढ़ रही थी. लगभग ग्यारह पचास बजे पहला झटका लगा.
मेरे सामने जिस घर में मैं इतने दिनों से रह रही हूं, पूरा का पूरा ढह गया.
स्लीपर्स, मोबाइल वगैरह कहां हैं, कुछ ध्यान में नहीं था.
मैं सीधे तीसरे फ्लोर से दो सेकेंड में नीचे आ गई. बाहर आकर देखा कि सारे लोग अपने अपने घरों से बाहर आ गए हैं.
थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरी जान बाल बाल बच गई.
जान बचने के बाद सवाल था कि अब ज़िंदा हैं तो खाने-पानी की ज़रूरत पड़ेगी.
ज़िंदगी के लिए पैसे चाहिए
हमारी जेबों में जितने पैसे थे बस वही बचे हैं. भूकंप से बच तो गए हैं अब फिर ज़िंदगी बचाने के लिए पैसे चाहिए.
हमारी जान बच गई लेकिन ज़िंदगी के लिए ज़रूरी सारी चीज़ें हमारे घर के साथ ही दफ़न हो गईं. हमारे पास दरी या कंबल तक नहीं है.
मैंने और मेरे भाई ने पढ़ाई में जितने शील्ड्स वगैरह जीते थे सब यहीं पड़े हैं, कुछ नहीं बचा. मेरे सारे सर्टिफिकेट्स नष्ट हो गए.
हमारा पीतल और कॉपर का कारोबार था, वो भी ख़त्म हो गया.
हम बचा खुचा राशन इकट्ठा करके यहां से थोड़ा दूर एक खुली जगह पर टेंट लगा कर रह रहे हैं.
हमारे पास अब तक कोई खाने की सप्लाई कहीं से नहीं आई है.
‘दवाइयाँ नहीं हैं’
हमारे घरेलू मेडिसन बॉक्स में जो दवाइयां थीं बस उतनी ही दवाइयां हमारे पास हैं. वो सब इस्तेमाल हो चुकी हैं.
जिनके घरों के ग्राउंड फ्लोर कम तबाह हुए हैं हम उनके बाथरूम का इस्तेमाल कर रहे हैं.
हम कोशिश कर रहे हैं कि कम से कम पानी का प्रयोग करें. रात को हम पारी बांधकर सोते हैं.
बच्चों और महिलाओं को पहले सुला रहे हैं फिर बारी बारी से सो रहे हैं. एक साथ कोई नहीं सो रहा.
सीए बनने का सपना
मेरा सपना था कि मैं चार्टेड एकाउंटेंट बनूँगी. चार सालों से मैं दिल्ली में रहकर सीए का कोर्स कर रही थी.
मैंने सोचा था कि मई में परीक्षा दूंगी और सीए बन जाऊंगी. क्योंकि मैं घर की सबसे बड़ी लड़की हूं तो परिवार को मुझसे बहुत उम्मीदें रही हैं.
देखते ही देखते बस एक मिनट के अंदर हमारी ज़िंदगी यूँ पलट गई कि हमें सोचना पड़ रहा है कि खाना-पानी मिलेगा या नहीं, सोचना पड़ रहा है.
सीए का तो अभी पता नहीं. बच तो गए हैं लेकिन रहेंगे कहां, खाएंगे क्या…ऐसे बहुत सारे सवाल हैं.