Fri. Mar 29th, 2024

पिछले सप्ताह आए विनाशकारी भूकंप ने तबाही का मंजर छोड़ा है कि इससे उबरने में लोगों को काफी वक्‍त लगेंगे। तीन दिनों तक लगातार भूकंप के झटकों ने नेपाल से लेकर पूरे उत्तर भारत तक को हिला कर रख दिया। इस भूकंप की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी चपेट में कई देश आ गए। अकेले नेपाल में कई जिले पूरी तरह तहस नहस हो गए और तकरीबन 80 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। नेपाल में इस समय भोजन, पानी, बिजली और दवाइयों की भारी कमी के कारण घोर संकट मंडरा रहा है और दोबारा भूकंप आने की आशंका के कारण हजारों लोग खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं। नेपाल के लिए यह बेहद मुश्किल की घड़ी है, जो बेहद ही चुनौतीपूर्ण है। वहीं, दूसरी ओर ‘नाथ’ यानी भगवान शिव के धाम पूरी तरह अक्षुण्‍ण रहे।



इस भीषण त्रासदी में नेपाल की राजधानी काठमांडू पूरी तरह बर्बाद हो गया। अधिकांश मकान ढह गए, कुछ बचे तो उनमें दरारें उभर आईं। संचार व्‍यवस्‍था चरमरा गई। सड़कों में दरारें आई गईं तो अन्‍य मूलभूत सुविधाएं भी तहस नहस हो गई। पर इन सबके बीच काठमांडू स्थित भगवान भोलेनाथ के सुप्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा और यह पूरी तरह अक्षुण्‍ण रहा। नेपाल में भयानक जलजला आया, भूकंप ने हजारों की जान ले ली लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर में दरार तक न आई, आज भी वो काठमांडू में सिर उठाए शान से खड़ा है। जबकि 7.9 तीव्रता के भूकंप में धरहरा मीनार एवं दरबार चौक जैसी कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण इमारतें जमीदोंज हो गई। मगर इसे भगवान का एक चमत्‍कार ही कहेंगे कि पांचवीं सदी के पशुपतिनाथ मंदिर जस की तस अपनी जगह खड़ा है। लोग उस समय आश्‍चर्य से भर उठे जब उन्‍होंने देखा कि पशुपतिनाथ मंदिर पूरी तरह सुरक्षित है। इस मंदिर का कई बार निरीक्षण करने के बाद भी इसमें कोई दरार नजर नहीं आई। बता दें कि यह काठमांडू में सबसे प्राचीन हिंदू मंदिर है।

दो साल पहले उत्‍तराखंड में भीषण आपदा के दौरान केदारनाथ की तरह अब नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का भी बालबांका न होना, काफी हैरानी भरा है। कुछ इसे ऊपरवाले का चमत्‍कार कह रहे हैं तो कुछ और…। वहीं, आस्‍था का प्रतीक केदारनाथ धाम अपने आप में चमत्कार है। जून, 2013 की आपदा में सब कुछ नष्ट हो गया है, लेकिन मंदिर को नुकसान तक नहीं पहुंचा। यह अद्भुत संयोग सोचने पर विवश करता है कि कैसे केदारनाथ और पशुपतिनाथ जैसे पुराने ढांचे इतनी बड़ी आपदा झेल गए। दोनों मंदिरों का रत्‍ती भर नुकसान नहीं हुआ। जबकि दोनों आपदाओं के समय इसके आसपास स्थित कई भवन भरभरा कर ढह गए। काठमांडू के पशुपतिनाथ और केदारनाथ का आपस में गहरा संबंध है। केदारनाथ धाम को द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग त्रिकोण आकार का है और इसकी स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे।

उत्‍तराखंड में आपदा के समय केदारनाथ मंदिर विशालकाय ढांचे और मंदिर परिसर के ठीक पीछे बड़े अवरोध के रूप में मौजूद चट्टानों के कारण अचानक आई बाढ़ को बर्दाश्त कर गया। कुछ वैसा ही अब अपनी कई ढांचागत विशेषताओं के कारण पशुपतिनाथ मंदिर भी भूकंप के इतने बड़े झटके को सह पाया। कहा जा रहा है कि मंदिर की चर्तुभुजी योजना, हल्की छतें, फर्श से जुड़े हुए स्तंभ और मजबूत जोड़ ने मंदिर को यह आपदा ङोलने में मदद की। काठमांडू मे बागमती नदी के तट पर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर सनातनधर्म के आठ सर्वाधिक पवित्र स्थलों में से एक है। पौराणिक काल मे काठमांडू का नाम कांतिपुर था । मान्यतानुसार मंदिर का ढांचा प्रकृतिक आपदाओं से कई बार नष्ट हुआ है। परंतु इसका गर्भगृह पौराणिक काल से अबतक संपूर्ण रूप से सुरक्षित है। लोग इसे पहली शताब्दी का मानते हैं तो इतिहास इसे तीसरी शताब्दी का मानता हैं। पशुपतिनाथ मंदिर का गर्भगृह कल भी विधमान था और आज भी विधमान है। ज्योतिर्लिंग केदारनाथ की किंवदंती के अनुसार पाण्डवों के स्वर्गप्रयाण के दौरान भगवान शंकर ने पांडवों को भैंसे का रूप वरण कर दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए। मगर भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर धरती के बाहर उनकी पूंछ रह गई वह स्थान ज्योतिर्लिंग केदारनाथ कहलाया, और जहां धरती के बाहर उनका मुख प्रकट हुआ वह स्थान पशुपतिनाथ कहलाया। इस कथा की पुष्टि स्कंदपुराण भी करता है।

पशुपतिनाथ के गर्भगृह में एक मीटर ऊंचा चारमुखी लिंग विग्रह स्थित है। प्रत्येक मुखाकृति के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला व बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहले दक्षिण मुख को अघोर कहते हैं। दूसरे पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं। तीसरे उत्तर मुख को अर्धनारीश्वर या वामदेव कहते हैं। चौथे पश्चिमी मुख को साध्योजटा कहते हैं तथा ऊपरी भाग के निराकार मुख को ईशान कहते हैं। मान्यतानुसार पशुपतिनाथ चतुर्मुखी शिवलिंग चार धामों और चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। यहां महिष रूपधारी भगवान शिव का शिरोभाग है, जिसका पिछला हिस्सा केदारनाथ में है।

साल 2013 के जून महीने में भारी बारिश और जलप्रलय के कारण उत्तराखंड में भयानक बाढ़ और भूस्खलन हुआ। इस भयानक आपदा में हजारों लोग मारे गए थे। सर्वाधिक तबाही रूद्रप्रयाग जिले में स्थित शिव की नगरी केदारनाथ में हुई थी। लेकिन इतनी भारी प्रकृतिक आपदा के बाद भी केदारनाथ मंदिर सुरक्षित रहा और आज भी अटल है। वहीं, अब भीषण भूकंप के उपरांत भी पशुपतिनाथ गर्भग्रह पूरी तरह सुरक्षित है। स्कंदपुराण अनुसार यह दोनों मंदिर एक-दूसरे से मुख और पृष्‍ठ भाग से जुड़े हुए हैं। इन दोनों मंदिरों में अदभुत वास्तु ज्ञान का उपयोग किया गया है।

भूकंप के तेज झटकों से पशुपतिनाथ मंदिर की आस-पास की इमारतें जमीदोज हो गई लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर जस का तस खड़ा है। जिस समय भूकंप ने ताडंव मचाया, उस समय पशुपतिनाथ मंदिर में सैकड़ों भक्त मौजूद थे। भक्तों के अनुसार, इस जलजले से पूरी धरती कांप उठी लेकिन भोलेनाथ ने अपने भक्तों को नई जिंदगी दी है। बता दें कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब भूकंप से नेपाल में इस तरह की तबाही हुई है। इससे पहले साल 1934 में भी नेपाल में 8.3 की तीव्रता से भूकंप आया था। करीब 80 साल पहले आए इस भूकंप ने भी नेपाल में खूब तबाही मचाई थी। उस समय कई ऐतिहासिक स्मारक मिट्टी के ढेर में तब्दील हो गए थे। लेकिन तब भी पशुपतिनाथ मंदिर को कोई आंच नहीं आई थी।

इस विनाशकारी भूकंप के चलते आज आधा नेपाल तबाह हो गया है लेकिन भगवान शिव का यह मंदिर आज भी वैसा है जैसे भूकंप से पहले था। धार्मिक आस्‍थावानों के अनुसार, जिस तरह उत्तराखंड में भयानक जलप्रलय के बाद केदारनाथ मंदिर को कोई नुकसान नही पहुंचा था, उसी तरह आधा नेपाल तबाह होने के बाद भी भोले बाबा का पशुपतिनाथ मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित है। अब इसे भगवान शिव का चमत्‍कार कहें या इसके पीछे कोई अन्‍य वैज्ञानिक कारण। जो भी हो लेकिन इन अदभुत घटनाओं के दृष्टिगत सभी तर्क और कारण भगवत् कृपा के सामने कहीं ठहरते नजर नहीं आते।

source:http://zeenews.india.com/



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