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इस हमाम मे सभी नंगे हैं ! – बिम्मीशर्मा

बिम्मीशर्मा, काठमांडू ,२८ सेप्टेम्बर |

nepal-constitution-protest_71e6fa5e-639f-11e5-b95f-5445df9fcc89देश दलदल मे फंसा हुआ है । सभी एक दूसरे की तरफ कीचड़ फेंक रहे हैं, छींटाकसी कर रहे हैं । पर अपनी तरफ कोई नहीं देखता है । क्योंकि देश की राजनीति के बड़े तलाब मे सभी नंगे नहा रहे हैं । सभी राष्ट्रवाद के रंग मे रंगें हुए हैं । पर यह रंग कैसा है किसी को भी नहीं दिख रहा है । मधेश बन्द पिछले डेढ महीनों से है पर देश की राजधानी को देश प्रेम का भूत सवार है ।

राजधानी खापी कर और डकार लेकर अघाए हुए जनता, सामन्तों और आईएनजिओ वादी पर राष्ट्रवाद का भूख जगा हुआ है । उधर मधेश की जनता जहां देश की आधी से ज्यादा आवादी रहती है । न्याय और समानता के भूख से बिलबिला रही है । पर उसे अधिकार का ‘भात’ देने की जगह तिरस्कार का ‘लात’ परोसा जा रहा है । सरकार चैन की वंसी बजा कर सिंहदरवार में सो रही है ।

मधेश और वहां की जनता इस तरह देश से दूर कभी नहीं हुआ था । मधेश की जनता को अब लग रहा है की वह सच मे इस देश के नागरिक नहीं हैं । जब अपने घाव दें और उस पर नमक भी छिड़के तो पड़ोसी आ कर मरहम लगाएगा ही । जब देश के नेता डाक्टर बन कर मधेश की बिमारी का गलत डाइग्नोसिस् करे और इलाज भी गलत प्रिस्क्राइब करें तो क्या होगा ?

जब से भारत ने मधेश आन्दोलन के चलते नेपाल सीमा से सटे हुएअपने राज्यबिहार और उत्तर प्रदेश मे होने वाले चुनाव के लिए नाकाबन्दी किया है तब से नेपालीजनता अर्थात राजधानी की जनता का देशप्रेम का बुखार अचानक से बढ गया है । जो कम ही नहीं हो रही है । इस देश प्रेम मे वह इतने अन्धे हो चूके हैं कीउन्हे सही गलत की पहचा नही रह गइ है ।

सरकार चलाने वाले की गलती या भूलचूक का दण्ड वह पूरे देश को देते हैं । और पड़ोसी देश के झण्डे पर पेसाब करना, ट्वाइलेट पेपर पर उस देश का झण्डा बनाना और झण्डे को आग लगा कर आखिर कौन से देश प्रेम का प्रदर्शन कर रहे हैं । हद तो तब हो जाती है जब मधेश का कोई आदमी राजधानी की सड़क पर गोल गप्पा बेचता हुआ दिखे तो पड़ोसी से दुश्मनी के चलते उसका ठेला गिरा कर उसको लताड़ते है । उस बेचारे ने क्या बिगाड़ा था ? वह काला था या मधेश का था इसी लिए पड़ोसी देश का हो गया । क्या आप काले नहीं हैं या आपका मन काला नहीं है ?

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हद हो जाती है तब जब पड़ोसी देश का प्रधानमन्त्री का नाक कटा हुआ और कुत्ते के फोटो मे उनका चेहरा जोड कर अभद्रता दिखाइ जाती है । देश के बांकी हिस्सो में पड़ोसी के प्रति कितना गुस्सा और नफरत है पता नहीं । पर फेसबुक और ट्विटर मे यह नफरत खुब फलफूल कर शीत युद्ध जैसा वातावरण बना रहा है । पड़ोसी के नाकाबन्दी पर आप खुद ही कहते हैं की हमें उसकी नाकाबन्दी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा । हम चीन या पाकिस्तान से सामान आयात कर अपना जुगाड़ कर के स्वावलम्बी व आत्मनिर्भर बनेंगें । तो फिर हाय तौबा क्यों मचा रहे हैं । जब १खर्ब १७अर्ब रुपैंया खर्च कर के आप संविधान बना सकते हैं तो उतने ही पैसे खर्च कर के अपनी तरफ से बार्डर को बन्द कर दीजिए और वहां पर लम्बी दीवार लगा दीजिए ।

जब आप संविधान इतना महंगा बना सकते हैं तो देश मे ही गैस और डीजल का खानी पत्ता लगा कर उत्पादन शुरु कीजिए । बड़ी, बड़ी गाड़ियों का उत्पादन कीजिए । रुई से ले कर सूई तक का उत्पादन कर के खुद आत्मनिर्भर बनिए । तब पड़ोसी भी ताली बजाएगा और आपका सम्मान करेगा । पर नहीं आप तो कागज का घोड़ा और नाव बनाने जैसा ही देश प्रेम का नारा लगा कर पड़ोसी को फेसबुक और ट्विटर मे गंदी, गंदी गालियाँ दे कर अपना राष्ट्रप्रेम का कर्तव्य पूरा करेंगे । इस से तो सिर्फ आपका फ्रस्टेशन ही दिखता है, देश प्रेम तो कपूर की तरह उड़ कर कहीं छूमंतर हो गई है ।

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nakabandiकागज और मिट्टी के शेर से युद्ध नहीं लड़ा जाता । अभी जितने भी देश प्रेम का डकार मार रहे हैं यह सब डलर, यूरो और यूआन के कठपुतली है । शतरंज की बिसात पर जो सफेद और कालागोटी अपनी चाल चल रहे हैं उसी को लोग घूर कर देख रहे हैं और बाजी पलटने की उम्मीद करते है । पर कोई नहीं देख रहा कि रंगीन और अदृश्य गोटी ही बिसात पर हावी है और बाजी पलट कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहती है ।

जब से नाकाबन्दी शुरु हुई है देश के ही व्यापारी सामान छुपा रहे हैं और बढ़ा चढ़ा कर तिगूना दाम ले रहे हैं । सरकार की तरह उस की प्रशासन भी लाचार हैं इसीलिए इन काले बाजारियों को दण्डित कर ने की जगह पड़ोसी के दादागिरी के आगे घुटना न टेकने के लिए जनता का तथाकथित ‘मनोवल’ बढ़ा रही है । जो सरकार अपने देश के अन्दर बैठे दुश्मन से नहीं लड़ पा रहा है वह पड़ोसी से क्या खाक लडेगा ? क्योंकि सरकार भी उसी हमाम के अन्दर हैं जहां सभी नंगे हैं ।

आप पड़ोसी देश के राजदूतावास के आगे चूल्हा जलाकर गुन्द्रुक और ढिढों बना कर खाते है । और उसी के सामने पैखाना कर के पड़ोसी को भूखा न होने की बात सगर्व बताना चाहते हैं । जब पड़ोसी आपको इतना परेशान कर रहा है तो उसको अनदेखा कर के अपना काम कीजिए । क्यों धर्ना देते हैं पड़ोसी के गेट पर जब पडोसी इतना खुजा रहा है तो उसको धत्ता कर के अपना स्वाभिमानको झुकने मत दीजिए । पर नेपाल के किस दल और नेताओं के पास स्वाभिमान है ?

जब मन्त्री और प्रधानमन्त्री बनने की बारी आती है तो उसी पड़ोसी के पैर पड़ने जाते हैं । बच्चों की पढ़ाई और दवादारु करना है तो अपने पैसे से नहीं उसी पड़ोसी से गिड़गिड़ाकर करवाते है । अब किस मुँह से आप स्वाभिमान की बात करते है ? स्वाभिमान को तो आप ने बरसो पहले दशगजा पर मार डाला था । अब किस औकात से उसको जिन्दा करेंगें आप ? जब सीमा क्षेत्र के पुल पर बैठे हुए आन्दोलनकारीयों को पड़ोसी खाना खिला रहा है तो आपको क्यो अखर रहा है ?आप मे इतना दम है तो आप खाना बना कर ले जाइए और खिलाइए उनको । क्यों बेकार का हाय तौबा मचा रहे है । भूख से बड़ी राष्ट्रियता और देश प्रेम कभी नहीं हो सकता ।

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आपका यह देशप्रेम कहां चला गया था मधेश मे जब निर्दोष पर पुलिस वार कर रही थी । उस समय अपने देश और सरकार को झकझकाते और हम मधेशीयो के साथ हैं कह कर नारा क्यो नहीं लगाया ? उस समय तो वह मधेशी बिहारी और धोती था । जब उसी धोती और बिहारी के घाव पर मरहम या नमक जो भी लगा रहा है तो आप इतना उत्तेजित क्यो हों रहे हैं ? क्योंकि इस देश की जनता हो या नेता या कोई दल सभी इनको बंदर की तरह कहीं न कहीं से नचा रहा है और यह बिना ताल और संगीत के नाचे जा रहे है ।

यह भी नहीं देखते की माहौल कैसा है ? अभी राष्ट्रवाद के ताल पर नाच रहें है । जब नाकाबन्दी खुल जाएगी और सभी समस्या का समाधान हो जाएगा तो यही लोग उसी पड़ोसी की आरती उतारने से भी नहीं चूकेगें । क्योंकि इन के पास आत्म सम्मान नाम का कोई वस्त्र ही नहीं है । यह सभी मौका परस्त हैं और अपने स्वार्थ की पोखरी मे डुबकी लगा रहे हैं । क्योंकि इस हमाम मे सभी नगें है । इसलिए यह शर्माते नहीं हैं और खुल कर अपनी बेशर्मी प्रदर्शन कर रहे हैं । (व्यग्ंय)

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