Fri. Mar 29th, 2024

बेहाल जनता और बेखबर शासक के बीच नेपाल का भविष्य हिचकोले खा रहाहै : श्वेता दीप्ति

श्वेता दीप्ति, काठमांडू , २१ अक्टूबर | अभावों और परेशानियों के बीच दशहरा समाप्ति की ओर है, किन्तु देश की सबसे ज्वलन्त समस्या का अंत नहीं हो रहा । कोई ठोस निदान अब तक सामने नहीं आ रहा है । सरकार अति व्यस्त है उप प्रधानमंत्री की जमात बढ़ाने में । इस देश की कश्ती सचमुच भँवर में है । देश की आम जनता अपना पेट भर पाने के लिए दिन रात जद्दोजहद में लगी हुई हैं । जो देश पिछले दो महीनों में १० खरब के नुकसान को झेल रहा है, वह देश समस्या के समाधान से अधिक पदों के निर्माण में लगा हुआ है । अभी तो ऐसा लग रहा है कि अगर सत्ता चाहे तो हर महत्वपूर्ण पद दो चार व्यक्तियों में बाँट दे । जनता तो है ही, इनका पेट पालने के लिए और सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए । एक जमात तैयार हो रही है सत्ताधारियों की जिनका शिक्षा से कोई वास्ता नहीं, तो ऐसे में तो सही है कि देश का कोई भी मसला एक प्रधानमंत्री नहीं सुलझा सकता । इस हालात में कई–कई उप प्रधानमंत्री का होना तो आवश्यक ही है ।

r-2
समस्या देश की है उसे तत्काल सम्बोधन करने की जगह नेतागण पड़ोस की यात्रा में दिलचस्पी ले रहे हैं । नए प्रधानमंत्री ने कार्यभार संभाल लिया है अच्छा तो यह होता कि वो स्वयं उन क्षेत्रों का दौरा करते जिनकी वजह से चाहे अनचाहे देश की ये हालत हो रही है । पर ये तो तब होता जब नीयत में कोई खलल नहीं होती । पर हमारे प्र.मं. ने अपने खिलाफ पहले ही ऐसा माहोल तैयार कर लिया है देश की आधी जनसंख्या के सामने कि आसानी से वो वहाँ जा भी नहीं सकते । परन्तु यह रिस्क तो उन्हें लेना ही होगा क्योंकि आखिर वो जनता इसी देश की है बिहार या यू.पी की नहीं और आज विस जिम्मेदार पद पर वो आसीन हैं वहाँ वो नजरें चुरा ही नहीं सकते भले ही अपने मंत्री मंडल में मधेश विरोधियों की पूरी फौज क्यों ना तैयार कर लें । आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी ?

अब तो पड़ोस ने भी स्पष्ट कह दिया है कि पहले मधेश की समस्या का हल निकालें । बाकी सभी समस्याओं का हल स्वतः हो जाएगा । इसी विषय पर भारतीय दूतावास ने मंगलवार को  एक औपचारिक बैठक बुलाई जिसमें नेपाल के मीडियाकर्मी और बुद्धिजीवियों को आमंत्रित किया गया था । भारतीय राजदूत महामहिम रंजीत राय ने भारत सरकार और उसकी नेपाल के लिए धारणा को स्पष्ट किया । उन्होंने स्पष्ट कहा कि नेपाल एक स्वतंत्र देश है और यह भी सच है कि नेपाल और भारत का सम्बन्ध अत्यन्त गहरा है । नेपाल की समस्याओं से भारत अवगत है और चिन्तित भी । वर्तमान में जो नेपाल की अवस्था है उस पर भारत की नजरें हैं और भारत चाहता है कि इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द निकले । भारत यहाँ की समस्याओं के प्रति कितना गम्भीर है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंत्रालय के गठन होने के दो दिनों के भीतर विदेश मंत्री ने भारत का दौरा किया है । भारत उम्मीद करता है कि नेपाल जल्द से जल्द अपने देश के मसलों को सुलझाएगा । जहाँ तक नाकाबन्दी का सवाल है तो भारत बार बार यह कह रहा है कि नाकाबन्दी भारत ने नहीं किया है । भारत की कोशिश है कि किसी भी तरह नेपाल को आवश्यक सामान और इंधन आपूर्ति हो । रक्सौल नाका सबसे अधिक बन्द से प्रभावित है और इसे खोलने की कोशिश जल्द से जल्द होनी चाहिए । अन्य नाकाओं से सामान नेपाल में भेजा जा रहा है । इससे यह बात तो जाहिर है कि भारत ने नाका नहीं किया है । पर रक्सौल नाका सबसे बड़ा नाका है और यहाँ की किल्लत को उसी नाका से दूर किया जा सकता है क्योंकि अन्य नाका से भारत नेपाल की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता । पर यह कोई समस्या का स्थाई समाधान नहीं है । जहाँ तक चीन से तेल या अन्य सामान लाने का सवाल है तो उसकी कीमत शायद ज्यादा हो और उहाँ की जनता को वह वहन करना होगा जो पूरी तरह से यहाँ की सरकार की नीतियों पर निर्भर करता है । दूतावास की ओर से इस सारी ब्रिफिंग में यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समस्या हमारी है और इसे हमें ही दूर करना है इसके लिए किसी और पर दोषारोपण उचित नहीं है ।

Kamal-Thapa-and-Narendra-Modi-shake-handsजहाँ तक विदेशमंत्री की भारत यात्रा का सवाल है तो, विदेश मंत्री अपनी यात्रा सम्पन्न कर वापस आ चुके हैं और फिलहाल उनके हाथ खाली ही हैं । वैसे थापा ने जनता को यह आश्वासन दिया है कि यह समस्या दो चार दिनों में सुलझ जाएगी । उनके अनुसार वीरगंज नाका पर रुकी गाड़ियों को किसी अन्य रास्ते से नेपाल में लाया जाएगा । पर क्या सचमुच यही समस्या का समाधान है, यह कितना दूरगामी सिद्ध हो सकता है ? वैसे सूत्रों के अनुसार भारत ने ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया है । भारत ने स्पष्ट कह दिया है कि समस्या की वास्तविकता को समझें और उसका समाधान करें हमारी ओर से कोई रुकावट नहीं है । अवरुद्ध नाका खुलवाने का काम सरकार ही कर सकती है । विदेशमंत्री ने अपनी ओर से भारत सरकार के समक्ष यह प्रतिबद्धता व्यक्त की है कि नेपाल सरकार मधेश समस्याओं का समाधान खोज रही है और संवाद तथा समझदारी से इस समस्या का निकास खोज लेगी । इसी बीच सरकार ने उपप्रधानमंत्री और परराष्ट्रमंत्री कमलथापा के संयोजकतत्व में वार्ता समिति का गठन किया है । जिसमें कानून मंत्री अग्नि खरेल, सामान्य प्रशासन मंत्री रेखा शर्मा और बिना विभागीय मंत्री रामजनम चौधरी हैं । अब देखना यह है कि यह समिति भी सिर्फ औपचारिकता तक सीमित रहती है या कोई सटीक निष्कर्ष भी निकलता है । यह सराहनीय प्रयास हो सकता है बशर्ते इसमें गम्भीरता और ईमानदारी हो ।

देश की आर्थिक अवस्था जर्जर होती जा रही है । व्यवसाय बन्द हो रहे हैं । आम जनता हर मोड़ पर संघर्ष कर रही है, किन्तु हमारी सरकार सिर्फ जुमलों की राजनीति कर रही है । भारत पर आरोप–प्रत्यारोप करने की अपेक्षा अगर घर की समस्याओं पर अपनी दृष्टि डालते तो शायद अब तक समाधान जनता के सामने होता । राजधानी की सड़कें सुनसान हैं किन्तु यह सिर्फ आम जनता की परेशानी है । तेल या गैस की समस्या शायद नेताओं को नहीं हो रही अगर होती तो शायद उनका ध्यान इस ओर भी जाता । पर फिलहाल तो मंत्री पदों के बँटवारे की ओर इनका ज्यादा ध्यान है । कल तक संविधान लागू करने और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर निगाहें टिकी थीं और आज अन्य मंत्रियों को संतुष्ट करने पर । बेहाल जनता और बेखबर शासक, इनके बीच में नेपाल का भविष्य हिचकोले खा रहा है देखना ये है कि इस कश्ती को किनारा कब मिलेगा ।



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.
Loading...
%d bloggers like this: