देश गृहयुद्ध की ओर खामोशी से, किन्तु तेजी से बढ़ रहा है :श्वेता दीप्ति
श्वेता दीप्ति, काठमाण्डू,16 दिसम्बर |
इस देश की पीड़ा और मर्म को अपनों से ज्यादा शायद गैर समझते हैं । नेपाली बाजार के लिए एक अच्छी खबर आई अमेरिका की ओर से कि नेपाली वस्त्र को अमेरिका के बाजार में करमुक्त कर दिया गया है क्योंकि भूकम्प की चोट ने नेपाली अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है । यह बात दूसरे मुल्क समझ रहे हैं पर हमारी सरकार सिर्फ आनेवाले राहत को देखकर अपनी स्वार्थ की रोटी सेंकने में लीन थे और आज भी हैं ।
मधेश आन्दोलन से पूरा राष्ट्र प्रभावित हो चुका है किन्तु विडम्बना यह है कि, देश का एक तबका जोर शोर से यह आरोप लगाता आ रहा है कि, मधेश आन्दोलन मधेश का नहीं भारत का है, इसलिए भारत मधेश का साथ दे रहा है, किन्तु अब क्या किया जाय ? अब तो चीन के प्रतिनिधि भी महन्थ जी से मिलकर मधेश की जायज माँगों का समर्थन कर चुके हैं । तो क्या अब मधेश आन्दोलन चीन का हो गया ? जी नहीं, ये आन्दोलन न तो भारत का था और न ही चीन का है । यह नेपाल की ही उस जनता का है जो वर्षों से खुद को नेपाली सिद्ध करने की कोशिश में लगे हुए हैं और हमेशा से शोषण और उपेक्षा का शिकार होते आए हैं जिनकी राष्ट्रीयता को हमेशा शंकित निगाहों से देखा जाता रहा है । जिन्हें गाली देने में, धोती या मर्सिया कहने में समुदाय विशेष की जुबान कभी नहीं हिचकी है । जिसने आज बड़े शान से कहना शुरु कर दिया है कि हाँ हम धोती हैं, हाँ हम मधेशी हैं, हाँ हमारी संस्कृति हमारी परम्पराएँ अलग हैं इसलिए हमें हमारी पहचान और अधिकार चाहिए । जहाँ तक सवाल भारत या चीन का है तो बात सिर्फ इतनी सी है कि ये दो राष्ट्र हमारे पड़ोसी हैं और इनकी दिलचस्पी पर्दे के पीछे से या पर्दे के बाहर से हमेशा रही है और रहेगी । बस ये सच हमारी काबिल सरकार नहीं समझ पा रही है । यह देश ना जाने कैसे मदारियों के हाथ में चला गया है ? ऐसे मदारी हैं जिन्हें ना तो डोर पकड़ने का हुनर पता है ना ही उसे चलाने का । देश की कोई भी समस्या हमारे प्रतिनिधियों को दिख ही नहीं रही है, जबकि हर ओर सिर्फ और सिर्फ समस्या ही है । साइकिल चढ़ने का दावा, लकड़ी जलाकर खाना पकाने का दावा, हवा से बिजली पैदा करने का दावा— बस दावा ही दावा । कोई जिम्मेदारी का अहसास नहीं, कोई निदान नहीं, कोई गम्भीरता नहीं, अगर कुछ है तो खोखली राष्ट्रीयता का बीज बोकर सत्ता पर काबिज रहने की पुरजोर कोशिश । मंत्रियों और नेताओं की एक पूरी फौज बेसिर पैर की बातों को बोलकर अपना मजाक खुद बना रही है । रात के अन्धेरे में गैस, पेट्रोल और डीजल की कालाबाजारी में राष्ट्रवाद न जाने कहाँ हवा हो गई है । एक ऐसा तंत्र सासन कर रहा है, जिसके तहत का हर नेता भ्रष्टाचार के आरोप से लदा हुआ है । मजे की बात तो ये है कि, आज अगर इनका पर्दाफास हो रहा है या इनके नाम सामने आ रहे हैं तो इसमें भी भारत के संलग्न होने की संभावना व्यक्त की जा रही है । आश्चर्य है कि हम उस तंत्र में जी रहे हैं जहाँ कुछ यहाँ की मर्जी से होता ही नहीं है, तो हम दावा किस बात की करते हैं ? जनता की भावनाओं को हवा देकर किसी भी राष्ट्र को गाली दिलवाना और स्वयं उसी राष्ट्र के सहारे के बिना आगे ना बढ़ना, ये कौन सी नीति है ? क्या इस राष्ट्रवाद की परिभाषा कोई बता पाएगा ? क्या राष्ट्रवादिता सिर्फ उस जनता के लिए है जो भूखी मर रही है ?

नाका अवरोध की आड़ में हर चीज मंहगी हो रही है और जनता इस मार को झेल रही है । सरकार एक सिरे से नाकाम साबित हो चुकी है । न तो वो कालाबाजारी रोक पा रही है, न गैरकानूनी कार्यों को रोक पा रही है और न ही जनता की समस्याओं को सुलझा पा रही है । सत्तापक्ष के ही उप–प्रधानमंत्री अपने प्रधानमंत्री को ज्ञापन पत्र दे रहे हैं और अपनी शर्तों की याद दिला रहे हैं कि उनका कार्यान्वयन किया जाय । एक ओर माधव नेपाल जैसे नेता दिन रात पड़ोसी राष्ट्र की कमियों को निकालने की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे ह, तो दूसरी ओर मधेश की जनता की नागरिकता पर अपना रोष और शंका दिखा रहे हैं । वैसे हमारे प्रधानमंत्री भी नागरिकता जाँच की बात कर चुके हैं । ठीक ही है, एक और आयोग गठन कीजिए अपने मनपसन्द नेताओं की नियुक्ति कीजिए पैसा कमाने का यह एक और अच्छा जरिया सिद्ध होगा । फिर से भत्ता का बाजार गर्म होगा, नेताओं की झोलियाँ लबालब भरेंगी और भला क्या चाहिए ? इधर हमारे गृहमंत्री आत्मालोचना कर रहे हैं कि, उनके बच्चे भूकम्पपीड़ित के नाम पर विदेशों की सैर कर के आए हैं । जनाब इतनी ही ग्लानि हो रही तो नैतिकता के आधार पर पदमुक्त हो जाइए और जाकर उन भूकम्प पीड़ितों के लिए कुछ कीजिए, जिनका हक आपने मारा है । जो आज भी इस शीत लहर में त्रिपाल में जीने को विवश हैं । जरा कल्पना कीजिए की वो किस तरह जी रहे होंगे । मानवता और नैतिकता अगर होगी तो रुह जरुर काँपेगी उन्हें सोच कर । प्रकृति ने तो उन्हें जीने का अवसर दिया, पर आप जैसे नेता तो उन्हें पल–पल मार रहे हैं ।
चार महीने से देश का एक हिस्सा मधेश सुलग रहा है, किन्तु आपको उसकी आँच भी दिखाई नहीं दे रही है । जिस तरह राष्ट्रवाद का बीज बो कर देश को दो हिस्सों में सत्ताधारी नेताओं ने बाँट दिया है, शायद उन्हें यह नहीं दिखाई दे रहा कि यह कट्टर राष्ट्रवाद का नारा देश के एक हिस्से को विखण्डन की राह पर तेजी से धकेल रहा है । आखिर सत्ता कब गम्भीर होगी ? देश गृहयुद्ध की ओर बड़ी खामोशी से, किन्तु तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है । इस भविष्य को अगर सत्ता और सरकार नहीं देख रही तो इससे बेबस, लाचार और अदूरदर्शी शासन और शासक कोई हो ही नहीं सकता । आन्दोलनकारी की गिरफ्तारी या उनपर गोलियाँ बरसाकर खुद सत्ता इस असंतोष को हवा दे रही है और बड़े मजे से तमाशा भी देख रही है । आग को राख से ढंका नहीं जा सकता । न जाने सरकार कब इस सच को समझेगी ? नेपाल की जनता असमंजस में है क्योंकि उन्हें कोई ऐसा प्रतिनिधि नहीं दिख रहा जो देश की बागडोर को काबीलियत के साथ सम्भाल सके ।