ओली की गोली अब कहाँ चलेगी ? – गोपाल ठाकुर
गोपाल ठाकुर, कचोर्वा-१, बारा,दिसंबर २५, २०१५
मधेश आंदोलन जारी है और खस-गोर्खाली उपनिवेशकों का फरेब भी । मधेशी नाका नहीं छोड़ रहे हैं तो ओली कोइराला से लेकर ओली तक की सरकार आये दिन वार्ता का नाटक भी जारी रखी है । मधेशी अपनी भूमि को पहाड़ के गरिफ्त में रखना नहीं चाहते और ये अपने फर्जी गिर्वीकरण का दस्तावेज फाड़ना नहीं चाहते । मधेशी नेपालीकृत होना चाहते हैं और ये उन्हें नेपाली मानना नहीं चाहते । इतिहास गवाह है कि मधेशियों ने ही नेपाल बनाया है तब जब ये फिरंगी बोल्गा से मेसोपोटामिया के बिहड़ों में घूम रहे थे । किंतु हर जगह फिरंगी ही शासक बन जाते हैं किंतु धरतीपुत्र के उठ खड़े होते ही इनकी पुंगी बज जाती है । जैसे कि इन खस-गोर्खाली फिरंगियों के सब से पिछले सरदार ओली की बोली अब इतनी उखड़ने लगी है जाने कब बंद हो जाए । सिर्फ देर है हमारे कथित मधेशवादियों के एक जुट होने की । किंतु वो भी दिन भी अब दूर नहीं ।
मधेश राष्ट्र है उसे संघीय नेपाल में अपना राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार प्राप्त हो । वो राष्ट्र है जिसे कल अंग्रेज और गोर्खाली फिरंगियों ने अपने अपने साम्राज्यों में बाँट दिये । स्वाधीन भारत में उसका भारतीयकरण बहुत ही आसानी से हो गया । किंतु इस गोर्खा साम्राज्य में भूमि नेपाली और भूमिपुत्र को भारतीयकृत करने के हथकंडे अब भी जारी है । इसलिए हमें अपनी ही भूमि पर आप्रवासी वो कहते हैं जो खूद आधुनिक भारत के विभिन्न स्थान से वैध या अबैध रूप से मधेश से नेपाल तक अपना आप्रवासन कायम कर रखा है । नेपाल को तो इन्होंने लूटा ही मधेश को भी अपनी लूट-खसोट के साथ प्रदूषित करने लगे हैं । हाँ हम मधेशी इन्हें समझ तो लिए हैं किंतु बहुद देर से । लेकिन अगर समझ लिए हैं तो इनसे मुक्ति भी अब बहुत जल्द सम्भव है । लेकिन ये तब सम्भव है इस गोर्खा साम्राज्य को संघीय नेपाल में तबदील करते वक्त फिर से मधेश बँटे नहीं । अतः समग्र मधेश एक प्रदेश का तमसुक जो इनके बड़े हाकिमों ने मधेशियों के साथ कर रखा है उसकी पूरी भरपाई हो ।
इसके साथ साथ संवैधानिक रूप से मधेश में आप्रवासन भी अब बंद ही होना चाहिए । आप्रवासन अगर बंद नहीं हुआ तो राजवंशी और थारू जिस तरह से घर से बेघर हो चुके हैं, बाँकी मधेशियों को भी आज या कल यूपी और बिहार में आप्रवासी जीवन जीना ही अंतिम विकल्प होगा ।
किंतु इन तीन मुख्य मुद्दों को तो मधेश आंदोलन के बागडोर संभालनेवाले कथित मधेशवादी नेतृत्व अभी छोड़ ही रखा है । इतना ही नहीं इन खस-साम्राज्यवादियों के बीच के नाटकीय मतभेद में भी कोई कोइराला तो कोई ओली को वोट डालने चले ही जाते हैं । जिस सदन में इनके चिल्लाते-चिल्लाते मधेश विरोधी संविधान इन फिरंगियों ने बना ही डाला और अब भी इनको मार्शल लगाकर मधेश विरोधी एजेंडा के साथ संविधान संशोधन भी करने जा रहे हैं, किंतु पता नहीं ये कथित मधेशवादी को व्यवस्थापिका-संसद की कुर्सियों के साथ किस प्रकार के सुपर-ग्लु के साथ चिपका दिया गया है, ऐसा प्रतिक्रियावादी सदन का तिरस्कार करने में पाँव तले जमीन क्यों खिसक रही है ?
इनके इतने नापाक इरादों के बावजूद मधेशी जनता इनके एक आह्वान पर अभी पाँचवे महीने में आंदोलन और चौथे महीने में नेपाल-भारत सीमा नाकाबंदी जारी ही रखी है । अब तो शहादत की गिनती भी आधी शतक से ऊपर हो चुकी है । इन शहीदों में नाबालक और महिलायें भी हैं जिन्हें अपने घरों से घसीटकर इन फिरंगियों के गुर्गों ने गोली मारी है । किंतु ऐसा ही नहीं है कि ये फिरंगी पहाड़ की जनता को भी खूश रखे हों । भूकंप से पीड़ित लाखों लोग बर्सात को तो आसमा तले बिता ही लिया, कड़ाके की ठंढक तक भी उनको ये छत नसीब नहीं करा सके । आये दिन ट्रकों में पेट्रोलियम पदार्थ और बुलेटों में गैस विभिन्न सीमा नाके से नेपाल में आने की खबरें हमारे बीच संप्रेषित होती हैं । इसके साथ साथ भारत को कथित रूप से साइज में लाने के लिए पेट्रोलियम ढूँढने के लिए इने चीन दौरे भी जारी हैं । हाँ भारत से सयकड़ों की संख्या में इंधन के वाहन आने के बावजूद ये एक तरफ भारतीय नाकाबंदी की रट लगा रखे हैं तो चीन से कभी कभार अनुदान की ट्रकों का नेपाल अपने साम्राज्य में फूलमाला और पूजापाठ के साथ स्वागत करते हैं । इसके बावजूद गैस लेने के लिए नेपाल घाटी के चालनाखेल में इकट्ठी भीड़ ने इनके पुलिसकर्मियों को बेरहमी से तो पिटा ही, उनके हथियार भी छिन लिये । इतना ही नहीं इंधन को लेकर ऐसे वारदात काठमांडू सहित के शहरो में आम हो गये हैं । किंतु ये हैं बड़े सातिर । ऐसे वारदातों को इन्होंने कभी हिंस्रक नहीं बताया । ऐसा करने के नाम पर किसी की जान तो ये क्या लेंगे, सामान्य मार-पिटाई भी नहीं कर पाते । इतना ही नहीं किसी पर कोई मुकद्दमा भी दर्ज नहीं करते । ये करेंगे कैसे ? वे इनके अपने जो हैं । इसलिए तो धर्म-निरपेक्षता और गणतंत्र के विरोधी सरेयाम इनकी अपराधी सरकार के सरगना बन बैठे हैं । परिणाम यह है कि एक तरफ ऐसे प्रतिक्रियावादी पश्चगामियों के कथित आंदोलनों में पानी का फोहरा का प्रयोग किया जाता है तो मधेश आंदोलन में नौजवान तो नौजवान हैं, नाबालक बच्चे के सीने और ललाट पर चाहे बामदेव के गुंडे हों या शक्ति के भठियारे, नेपाल पुलिस और सशस्त्र पुलिस के लिवास में विषाक्त गोलियाँ बरसाते हैं । इसी हप्ते गौर में दसवीं कक्षा के छात्र शेष तबरेज आलम की इन हैवानों ने अपनी गिरफ्त में गोली मारकर हत्या कर दी ।
कुल मिलाकर मधेश में दहसत का माहौल है तो पहाड़ में मधेश विरोधी गफलत का । जिन मधेशियों ने भूकंप पीड़ित पहाड़ी भाइयों को अपना पेटकाटर खाद्यान्न भेजा, अपने को नंगा रखकर वस्त्र भेजा, खूद भी मलवे हटाने में हिस्सा लिया, आज ये फिरंगी खस-ब्राह्मण पाखंडी, साम्यवादी, लोकतंत्रवादी और राजावादी भी, आये दिन मधेशियों के खिलाफ भड़काने के मसालों का प्रयोग कर रहे हैं । किंतु जब तक मधेश शांत न होगा, जब तक मधेश संपन्न न होगा, जब तक मधेश मधेशियों का न होगा, तब तक पहाड़ और हिमाल को भी चयन की सांस लेना दुष्कर ही होगा । इस तथ्य को जितना जल्द एक-दूसरे के बीच सार्वजनिक रूप से समझने और समझाने का काम नहीं होगा, तब तक ये खस-गोर्खाली फिरंगी मधेश, पहाड़, हिमाल सब को लूटते रहेंगे । इसके बावजूद गुंगा कोइराला, लतिफाकार ओली और दुपहरिया प्रचंड को खस-गोर्खाली साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन में मधेशियों के साथ पहाड़ के भी आदिवासी जनजाति, दलित और उपेक्षित क्षेत्र की जनता एक साथ आगे आना अपरिहार्य हो गया है ।
अगर ऐसा नहीं हुआ और मधेशियों की निष्ठा पर पहाड़ में शंका के बीज बोने में ये फिरंगी कामयाब होते रहे तो मरता क्या नहीं करता, मधेश इनकी जागीर नहीं रह सकता । इसलिए मधेश आंदोलन एकत्र हो । अपने गंतव्य की समझौताहीन संघर्ष के माध्यम से आगे बढ़े । क्यों कि सुई की नोक बराबर भी मधेश मधेशियों को नसीब नहीं होने देने की कलुषित मानसिकतावालों से किस्ताबंदी में कुछ पाना संभव ही नहीं है । किंतु अब तक जो लक्ष्यबिहीन प्रहार के रूप में मधेश आंदोलन रामभरोसे आगे बढ़ रहा है उसमें तो पता नहीं, ओली की गोली कब किसके सिने पर कहाँ चल जाये !