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राजेन्द्र महतो पर बर्बरता से लाठी बरसाई गई, अब बारी महन्थ और उपेन्द्र की : श्वेता दीप्ति

मंदिरों में राष्ट्रप्रमुख द्वारा दान दिए जा रहे हैं, पर जीती जागती जिन्दगियाँ मर रही हैं उनका खयाल उन्हें नहीं है

हालात यह हो गई है कि आन्दोलन कर रहे नेतृत्व को निशाना बनाया जा रहा है । जिसका सबूत है सद्भावना के अध्यक्ष राजेन्द्र महतो

मधेश के मुद्दे पर या महिला अपमान पर झण्डा लेकर खड़ी होने वाली जनता देश की इस बदहाली पर क्यों चुप है ?


श्वेता दीप्ति, काठमांडू ,३० दिसम्बर |

जब मधेश या मधेशियों को गाली देने का वक्त आता है, तो एक समुदाय विशेष सबसे आगे होता है । यहाँ तक कि अगर मधेश की जनता या नेता शासन के दमन का शिकार होते हैं या मरते हैं तो इनके होठों पर संतुष्टि की मुस्कान आ जाती है और राष्ट्रवाद की इससे बड़ी पहचान भला क्या हो सकती है ? कितना अजीब है ये देश, खुद जो बहुमत के बल पर विश्व का सर्वोत्कृष्ट संविधान लागू करते हैं वही संविधान के सूत्रों

 सद्भावना के अध्यक्ष राजेन्द्र महतो के ऊपर बर्बरता से किया गया दमन । सुनियोजित तरीके से उनपर लाठी बरसाई गई जिसे बकायदे सोशल मीडिया पर सबने देखा । निहत्थे नेता पर इस तरह लाठियाँ बरसाई जा रही थी मानो वो कोई पेशेवर अपराधी हों । आज महतो तो शायद कल महन्थ, यादव, गुप्ता या राउत की बारी भी आ सकती है, क्योंकि ये मधेश के नेता या मधेश की हित को सोचने वाले हैं ।
का पालन नहीं करते । संविधान के सौ दिन पूरे भी नहीं हुए थे और संशोधन की माँग बनाने वालों ने ही शुरु कर दी थी । इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है संविधान की विशेषता या खामियों का । क्या नेतागण इस बात का जवाब दे सकते हैं कि जो संविधान उनकी नजरों में ही अपूर्ण था उसे क्यों इस तरह जारी किया गया ? एक ऐसा संविधान जिसने देश के एक हिस्से को तो रुलाया ही पूरे देश को अस्तव्यस्तता की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है । एक रक्तरंजित संविधान जिसकी रक्तपिपाशा अब तक बुझी नहीं है ।

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अब तो  के ऊपर बर्बरता से किया गया दमन । सुनियोजित तरीके से उनपर लाठी बरसाई गई जिसे बकायदे सोशल मीडिया पर सबने देखा । निहत्थे नेता पर इस तरह लाठियाँ बरसाई जा रही थी मानो वो कोई पेशेवर अपराधी हों । आज महतो तो शायद कल महन्थ, यादव, गुप्ता या राउत की बारी भी आ सकती है, क्योंकि ये मधेश के नेता या मधेश की हित को सोचने वाले हैं । इन सबके बीच अगर कुछ सोचने को विवश करता है, तो वह है यहाँ के समुदाय विशेष की खामोशी क्योंकि, सबसे दुखद तो यह है कि गणतंत्र में साँस ले रही एक विशेष समुदाय की जनता और लोकतंत्र का मजाक उड़ाती सत्ता दोनों चुप हैं । यह कैसा राष्ट्रवाद है ? धृतराष्ट्र नेत्रविहीन था और साथ ही सत्ता तथा पुत्रमोह ने उसे मस्तिष्क से भी अंधा कर दिया था, जिसका परिणाम हुआ महाभारत । हम सब जानते हैं कि जीत, अधिकार की लड़ाई की हुई । सौ पर

इन सबके बीच अगर कुछ सोचने को विवश करता है, तो वह है यहाँ के समुदाय विशेष की खामोशी क्योंकि, सबसे दुखद तो यह है कि गणतंत्र में साँस ले रही एक विशेष समुदाय की जनता और लोकतंत्र का मजाक उड़ाती सत्ता दोनों चुप हैं । यह कैसा राष्ट्रवाद है ? धृतराष्ट्र नेत्रविहीन था और साथ ही सत्ता तथा पुत्रमोह ने उसे मस्तिष्क से भी अंधा कर दिया था, जिसका परिणाम हुआ महाभारत । हम सब जानते हैं कि जीत, अधिकार की लड़ाई की हुई । सौ पर पाँच भारी पड़ गए । रावण का जब विनाश होना था तो, उसके पांडित्य ने भी उसे धोखा दे दिया और विद्वान रावण एक स्त्री मोह के कारण अपना सर्वस्व हार बैठा और उसका नाश हुआ ।
पाँच भारी पड़ गए । रावण का जब विनाश होना था तो, उसके पांडित्य ने भी उसे धोखा दे दिया और विद्वान रावण एक स्त्री मोह के कारण अपना सर्वस्व हार बैठा और उसका नाश हुआ । ये वो गाथाएँ हैं जो हमेशा मानव जीवन को सत्य से परिचित कराती हैं । पर यहाँ तो इन बातों का भी वही हश्र होगा कि भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस खड़ी पगुराय । फुर्सत कहाँ है हमारे नेताओं को चिन्तन मनन करने की । उन्हें तो कुर्सी और पैसा ने इस कदर मोहित कर रखा है कि नजर चुँधियाई हुई है । नेत्र होते हुए भी नेत्रविहीन हैं । स्वयं निर्मित संविधान की धज्जी उड़ाते हुए मंत्रीमण्डल का निर्माण किया जा रहा है, तुष्टिकरण की नीति की तहत छोटे से नेपाल को चलाने के लिए छः–छः उपप्रधानमंत्री और एक–एक मंत्री मण्डल के टुकड़े किए जा रहे हैं । नवनिर्मित मंत्री अपने मंत्रालयों की खोज में हैं । सबके पौ बारह हैं । रामनाम की लूट है लूट सके तो लूट । बहती गंगा है और सब उसमें हाथ धोने को तैयार हैं ।

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इन सबसे परे अगर आश्चर्य कुछ हो रहा है तो इस बात पर कि यहाँ की जनता कितनी काबिल है । मधेश के मुद्दे पर या महिला अपमान पर झण्डा लेकर खड़ी होने वाली जनता देश की इस बदहाली पर क्यों चुप है ? देश को बरबादी की राह पर धकेला जा रहा है । ओली सरकार आज तक किसी विकास की योजना को सामने नहीं ला पा रही है । देश के ऊपर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए निरंतर मंत्रियों का बोझ लादा जा रहा है । जिसके उपर होने वाला खर्च जनता की कमाई से ही वसूला जाएगा । पर ये सारी बातें कोई मायने नहीं रख रही हैं यहाँ की बुद्धिमति जनता के लिए । शायद यह भी घोर राष्ट्रीयवादी होने की पहचान हो । गरीबी की सभी सीमा को पार किया हुआ यह देश इतना अमीर है कि भ्रष्टाचार के आरोप में फँसे हुए अफसर मिनटों में करोड़ों की रकम अख्तियार में जमा कर रिहा हो जाते हैं । वहीं एक हिस्सा ऐसा है जहाँ लोग अपनी जिन्दगी पर रो रहे हैं कि उन्हें प्रकृति ने जिन्दा क्यों छोड़ा ? आलीशान महलों में रहने वाले काश इस दर्द को महसूस कर पाते कि इस कड़ाके की ठण्ड में उनकी रातें कैसी गुजरती होंगी जिनके बिस्तर भीगे होते हैं । मंदिरों में राष्ट्रप्रमुख द्वारा दान दिए जा रहे हैं, पर जीती जागती जिन्दगियाँ मर रही हैं उनका खयाल उन्हें नहीं है । बहरहाल यही है हमारा देश नेपाल ।

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