Thu. Dec 5th, 2024

आठ घंटे की लगातार नींद ‘अप्राकृतिक’

आधी रात को नींद खुल जाए तो हम अक्सर चिंता करने लगते हैं. लेकिन ये आपके लिए अच्छा भी हो सकता है.

वैज्ञानिक और ऐतिहासिक सबूत ये संकेत देते हैं कि आठ घंटों की नींद अप्राकृतिक भी हो सकती है.

1990 के दशक की शुरुआत में मनोवैज्ञानिक थॉमस वेर ने एक प्रयोग किया था, जिसमें लोगों के एक समूह को एक महीने तक हर दिन 14 घंटों के लिए अंधेरे में रखा गया.

हालांकि नींद को नियंत्रित करने में थोड़ा वक्त लगा लेकिन चौथे हफ़्ते आते-आते तक प्रयोग में हिस्सा ले रहे लोगों की नींद लेने की आदत एकदम बदल गई थी. वे पहले चार घंटे सोते रहे फिर वे एक या दो घंटे के लिए जाग गए और फिर चार घंटों के लिए सो गए.

इस प्रयोग ने नींद पर काम करने वाले वैज्ञानिकों को बहुत प्रभावित किया लेकिन आम लोगों में अभी भी ये घारणा बनी हुई है कि उनके लिए आठ घंटे लगातार नींद लेना जरुरी है.

दो हिस्सो में नींद

वर्ष 2001 में वर्जीनिया टेक के इतिहासकार रोजर इकिर्च ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया. ये शोध पत्र 16 वर्षों के प्रयोग के बाद लिखा गया था. इसमें कहा गया था कि इतिहास में इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि मानव पहले दो अलग-अलग हिस्सों में अपनी नींद पूरी करता था.

इस शोध पत्र के चार वर्ष बाद उन्होंने अपनी किताब प्रकाशित की, ‘ए डेज़ क्लोज़: नाइट टाइम पास्ट’. इस किताब में उन्होंने दो हिस्सों में नींद पूरी करने के 500 उदाहरण पेश किए. इनमें डायरियाँ थीं, अदालत के रिकॉर्ड थे, मेडिकल की किताबें थीं, साहित्य था. इसमें होमर की आडिसी से लेकर नाइजीरिया के आदिवासियों के मानवशास्त्रीय अध्ययन तक का उदाहरण दिया गया था.

वेर के प्रयोग में हिस्सा लेने वाले लोगों की तरह ही इन उदाहरणों से भी संकेत मिलता है कि पहले लोग शाम ढलने के दो घंटे बाद सो जाते थे फिर एक या दो घंटे जागते थे और फिर दूसरे हिस्से की नींद.

sleep patternसाहित्य में कई प्रमाण हैं कि पहले लोग दो हिस्सों में नींद पूरी करते थे.

एकिर्च कहते हैं, “ये उदाहरणों की संख्या का मामला नहीं है, ये सवाल उन तरीकों का है जिस तरह से इसका जिक्र किया गया है. वे इसका जिक्र इस तरह से करते हैं मानो ये कोई आम बात हो.”

यह भी पढें   सीताराम विवाहपञ्चमी महोत्सव – आज नगरदर्शन

सक्रिय

दो नींद के बीच लोग काफी सक्रिय होते थे. वे शौचालय जाते थे, तंबाकू पीते थे और कुछ लोग पास पड़ोस में भी जाते थे. लेकिन ज्यादातर लोग बिस्तर पर ही होते थे, पढ़ते थे, लिखते थे या फिर प्रार्थनाएं करते थे. 15 वीं शताब्दी में दो नींदों के बीच करने के लिए बहुत सी प्रार्थनाएँ थीं.

ये घंटे एकांत के ही नहीं होते थे. इसमें लोग बिस्तर पर अपने साथी से बातचीत करते थे या फिर संभोग करते थे.

16 वीं शताब्दी की चिकित्सा की एक किताब में कहा गया है कि गर्भधारण के लिए सबसे अच्छा समय दिन भर के काम के बाद का थकावट भरा वक्त नहीं होता, बल्कि पहली नींद के बाद का समय इसके लिए सबसे अच्छा होता है. इसमें कहा गया है कि पहली नींद के बाद इसका ज्यादा आनंद लिया जा सकता है या इसे बेहतर ढंग से किया जा सकता है.

एकिर्च ने अपने शोध में पाया कि पहली और दूसरी नींद का जिक्र 17वीं शताब्दी में खत्म होने लगा. पहले उत्तरी यूरोप के शहरी इलाकों के उच्च मध्यवर्ग में इसकी शुरुआत हुई फिर धीरे-धीरे ये पूरे पश्चिम में फैल गया.

स्ट्रीट लाइट का प्रभाव

उनका कहना है कि 1920 के दशक में दो नींदों की बात पूरी सामाजिक स्मृति से ही ख़त्म हो गई.

एकिर्च का कहना है कि इस परिवर्तन की शुरुआत स्ट्रीट लाइटों में सुधार, घरों में बिजली के आने और कॉफी हाउस शुरु होने के साथ हुई, जिनमें से कई सारी रात खुला होता था. वे कहते हैं कि रात में गतिविधियाँ बढ़ने लगीं और लोगों के आराम का वक्त कम होता गया.

इतिहासकार क्रेग कोस्लोव्यस्की ने अपनी नई किताब में इसका जिक्र किया है कि ऐसा हुआ कैसे होगा.

वे कहते हैं, “17वीं शताब्दी से पहले रात से किसी का संबंध होना अच्छी बात नहीं मानी जाती थी. रात ऐसा समय होता था जब बदनाम लोग इकट्ठे होते थे, जैसे कि अपराधी, वेश्याएँ और शराबी.”

जब दो हिस्सों की नींद आम थी…

  • डॉन कीहोटी प्रकृति का अनुसरण करते थे और पहली नींद से संतुष्ट होने के बाद दूसरी नींद नहीं लेते थे. जहां तक सांचो का सवाल है, उन्हें कभी दूसरी नींद की जरूरत नहीं पड़ती थी क्योंकि उनकी पहली नींद ही रात से सुबह तक चलती थी.” मिगुएल सर्वांटीज़, डॉन कीहोटी (1615)
  • “पहली नींद से जागने के बाद आप गर्म पेय पीयेंगे और अगली नींद से जागने के बाद आपके दुख भी विलीन हो जाएंगे.” एक पुरानी अंग्रेजी गीत, ओल्ड रॉबिन ऑफ पोर्टिंगेल, से
  • नाइजीरिया की टिव जनजाति पहली नींद और दूसरी नींद के जरिए रात के अलग अलग पहर को दर्शाते हैं. (सूत्र रोजर एकिर्च)
यह भी पढें   अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने अपने बेटे को किया माफ..ट्रंप ने कहा शक्ति का किया दुरुपयोग

उनका कहना है, “यहाँ तक कि वे धनी लोग जिनके पास रात भर जलाने के लिए मोमबत्तियाँ होती थीं, वे अपने पैसों का बेहतर उपयोग करना चाहते थे. रात भर जागने का न तो कोई सामाजिक मूल्य था और न इसमें प्रतिष्ठा की ही कोई बात थी.”

और जो परिवर्तन आया वह सुधार और प्रति-सुधार से जुड़ा था. प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक रात भर गोपनीय गतिविधियों में संलग्न रहने लगे. जहाँ पहले रात का वक्त पथभ्रष्ट लोगों के लिए थी धीरे-धीरे वह प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए अंधेरे का फायदा उठाने का समय बन गई.

ये प्रचलन समाजिक दायरों में पसरने लगा, लेकिन सिर्फ़ उन लोगों के लिए जो रात की रौशनी में जीने का खर्च वहन कर सकते थे. लेकिन स्ट्रीट लाइटों के विकास के बाद से रात में सामाजिक रिश्ते निभाने की परंपरा निचले वर्गों में भी आम होने लगा.

वर्ष 1667 में पेरिस रात में रौशनी के लिए सड़कों पर स्ट्रीट लाइट जलाने वाला पहला शहर बना और सदी के अंत तक यूरोप में 50 से ज़्यादा शहर सड़कों पर रौशनी करने लगे.

रात का वक्त फैशन परस्त हो गया और बिस्तर में पड़े रहने को समय की बर्बादी माना जाने लगा.

जर्मनी के लीपज़िग जैसे छोटे शहर भी रात के करीब 700 रौशनदानों के देखभाल के लिए 100 लोगों को काम पर रखने लगे.

एकिर्च कहते हैं, “19 शताब्दि के पहले पहले लोग समय और कार्यक्षमता के प्रति संवेदनशील होने लगे थे. औधौगिक क्रांति ने इस रूख को और मजबूत कर दिया.”

बदलाव

औद्योगिक क्रांति के बाद यूरोप में बच्चों को एक नींद लेने की आदत डाली जानी लगी

लोगों की प्रवृति में आती बदलाव को साल 1829 की एक जर्नल दर्शाती है जिसमें माता-पिता से ये कहा गया है कि वो बच्चों की पहली नींद और दूसरी नींद की आदत को खत्म करें.

जर्नल में कहा गया कि अगर बच्चे को कोई बीमारी नहीं है तो उसे पहली नींद से ज्यादा आराम की जरूरत नहीं है. पहली नींद के बाद वो आम तौर पर उठने वाले समय पर जाग जाएंगे और अगर उसके बाद वो दूसरी नींद ले तो उन्हें सिखाया जाए कि ये गलत है और उनके लिए अच्छा नहीं है.

यह भी पढें   दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ का आदेश वापस

आज ज्यादातर लोग आठ घंटे की नींद के लिए अभ्यास तो चुके हैं लेकिन एकिर्च मानते हैं कि नींद की समस्याओं की जड़ ‘टुकड़ों में नींद’ की शरीर की प्राकृतिक प्राथमिकता और हर जगह कृत्रिम रौशनी का होना हो सकता है.

ये एक खास प्रकार के अनिद्रा रोग का कारण भी हो सकता है जिसमें लोगों की रात में नींद खुल जाती है और फिर दोबारा सोने में दिक्कत आती है.

मनोवैज्ञानिक ग्रेग जैकब्स का कहना है कि मानव जाति के इतिहास में ज्यादातर समय एक खास तरीके से सोया गया. रात में जागना मानव के सामान्य शरीर-विज्ञान का हिस्सा है.

उनका कहना है कि ये मानना कि एक बार में ही नींद पूरी कर लेनी चाहिए हानिकारक भी हो सकता है. ये रात में उठने वाले लोगों को फिक्र पैदा कर सकती है और यही फिक्र और व्यग्रता उनकी दिनचर्या में भी शामिल हो सकती है.

आधी रात जागना

ऑक्सफोर्ड में बॉडी क्लॉक के प्रोफेसर रसेल फोस्टर भी इस बात को मानते हैं और कहते हैं कि लोग रात में उठते हैं घबरा जाते है जबकि दरअस्ल वो दो-विभाजीय नींद की प्रक्रिया का उनुभव कर रहे होते हैं.

फोस्टर कहते हैं कि आधी रात जागने पर घबराए नहीं

फोस्टर कहते हैं, “सेहत की 30 प्रतिशत से ज्यादा समस्या सीधे तौर पर या घुमा फिराकर नींद से ही जुड़ी होती हैं. लेकिन मेडिकल की पढ़ाई में नींद की उपेक्षा की गई है और ऐसे बहुत कम केंद्र है जहां नींद की पढ़ाई की जाती है.”

जैकब इशारा करते हैं कि दो नींदों के बीच जागने के समय लोग विश्राम करते थे और इस प्रक्रिया में उन्हें तनाव को प्राकृतिक रूप से कम करने में मदद मिलती होगी.

कई ऐतिहासिक विवरणों में एकिर्च ने पाया कि लोग इस समय का इस्तेमाल अपने सपनों पर विचार करने में करते थे.

वो कहते हैं, “आज हम उन चीज़ों को कम समय देते हैं. ये कोई संयोंग नहीं है कि आधुनिक जीवन में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ गई है जो तनाव, फिक्र, अवसाद, या शराब और मादक पदार्थों के सेवन से ग्रस्त हो रहे है.

तो अगली बार जब आप बीच नींद में जाग जाएं, तो घबराएं नहीं बल्कि अपने पूर्वजों को याद करें और तनाव मुक्त रहें. लेटे हुए जागते रहना आपके लिए अच्छा भी हो सकता है.

news from bbc

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
%d bloggers like this: