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मधेश के.पी.ओली का बिर्ता नहीं, यह ऐतिहासिक विरासत हैे : कैलाश महतो

कैलाश महतो, परासी, १६ अक्टूबर ।
प्रधानमन्त्री रहते हुए के.पी.ओली ने भारतीय चैनल दुरदर्शन पर दिए एक अन्तवार्ता में अपने को भी मधेशी कहा था । मधेश में ही उनकी लालन-पालन तथा शिक्षा-दीक्षा से लेकर खाने कमाने तथा राजनीति करने का भी अवसर उन्हें मिलने के कारण वे अपने को मधेशी मानते हैं । उनकी अन्तवार्ता से भी यह स्पष्ट होता है कि वे अपने को मधेशी मानते हैं, लेकिन वे मधेश की मांग स्वीकारते नहीं । अगर वे मधेशी होते तो अपने मिट्टी और जीवन को प्यार करने बाले आन्दोलित मधेशियों के उपर गोलियाँ नहीं चलाते । आन्दोलन के क्रम में मारे गये मधेशियों के प्रति पेड से दो चार पत्ते झरने के बात नहीं करते । झापा से कंचनपुर तक के मानव साङ्गलो को माखे साङ्गलो नहीं कहते ।



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उनके अन्तवार्ता के अनुसार ही वे बचपन में अपने बाप दादा जी के साथ मधेश में आए । वे कमसे कम उनसे पूछ लें तो उन्हें पता चल जायेगा कि मधेश में वे राजनीति, व्यापार या समाज सेवा करने नहीं, अपितु वे मधेशियों के खेत और घरों में मजदुरी और नौकरी करके पेट पालने आए थे । (कर्मचारी और गरीबों के आलावा नेपाल पहाड से कोई जमिन्दार या सम्पन्न लोग मधेश नहीं आए थे ।) वे घर से अन्नबिहिंन होने के कारण ही अपना वतन और भूमि छोडकर मधेश में आए जहाँ पर मधेशी जमिन्दार और मालिक सम्पन्न थे । लेकिन हुआ उल्टा । हरबाही, चरबाही तथा भिख, दुःख एवं कन्दमूल और जडीबुटी बेचकर जीवन यापन करने बाले के.पी तथा भूखा अभागा फिरङ्गी लोग नेपाली शासन के सहयोग और मधेशी जमिन्दारों की दया, माया, कृपा और भोलेपन के कारण वे जमिन्दार, समाजसेवी, व्यापारी तथा राजनेता बन गये और मधेशियों को कङ्गाल बना दिए ।
जिन ओलियों को मधेश ने पनाह दी, खाने को दानापानी दी, पहनने को वस्त्र दी, नहाने और दीशा करने के बाद हाथ पैर राख और साबुन पानी से धोने के तरीके सिखाये, खाना खाने से पहले दतवन करने एवं दाल, भात और सब्जी आदि पका खाने के तरीके बताये, वही मधेशी उन्हें भारत से आये हुए नजर आता है । उनके द्वारा बोले जाने बाले भाषायें सब भारतीय हो गये ।
के.पी हिन्दी सुनना पसन्द नहीं करते । मगर घरमें उनकी पत्नी से लेकर बच्चों तक, दादा से लेकर नाति तक–सब हिन्दी फिल्म देखेंगे, सिरियल् देखेंगे और हिन्दी गीत सुनेंगे । भारत अगर यह कह दे कि तुमको फिर से प्रधानमन्त्री बनना है तो दिल्ली के कुत्ते तक से भी हिन्दी बोलने लगेंगे । पानी और जवानी बेचना हो तो हिन्दी में ही चिल्लायेंगे । चुनाव में दुतावास से भिख लेने हाें तो हिन्दी आ जाती है । मनिषा कोइराला, प्रशान्त तामाङ्ग और हिन्दी नृत्य और गायन प्रतियोगिता में हिन्दी बोलने बाले नेपाली मूल के कहे जाने बाले नेपाली ही होते हैं । लेकिन कोई मधेशी अगर हिन्दी बोले और उसकी माग करे तो वह भारतीय होता है ।
नेपाल और नेपालीपन को नापसन्द कर विदेशी पुरुष के साथ वैवाहिक सम्बन्ध कायम कर वहाँ के नागरिक बनने के साथ साथ जीवन की प्रथम उर्जा विदेश में लगा चुकी सुजाता कोइराला नेपाल की राजनीति और शासन में आ सकती है । भारत सिक्किम के राजनीति में स्थान बना बैठे राम कार्की नेपाल का मन्त्री बन सकता है । ब्रिटेन के नागरिक बन बैठे रामचन्द पौडेल के सूपुत्र नेपाल के राजनैतिक तथा संवैधानिक पद पा सकते हैं । भारतीय बाप के बेटा होने का प्रमाण देने बाले शेर बहादुर नेपाल के प्रधानमन्त्री बन सकते है । मगर अपने माता पिता, साथी भाइ, नाता कुटुम्ब और देश तथा मातृभूमि को हमेशा हमेशा के लिए त्याग करके अपने ससुराल आए नेपाली नागरिकता प्राप्त लोगों को राजनीतिक तथा संवैधानिक निकायों के उच्च पदों पर सेवा करने की अनुमति नहीं होने का सूत्र जपने बाला ओली निकृष्ट साम्प्रदायिक नहीं तो क्या है ?
झापा से कंचनपुर तक मधेश प्रदेश माँगने बाले मधेशियों को के.पी देशद्रोही मानते हैं । प्रधानमन्त्री बन चुके ऐसे इंसान को इतना बात तो समझ लेना ही बेहतर होगा कि देश किसी ओली सोली का नहीं होता । वह जनता का होता है । देश किसी ब्रम्हा या विष्णु द्वारा नहीं, जनता द्वारा बनायी जाती है और जनता चाहे तो दो नहीं, दो हजार जर्मनियों को भी एक देश बना सकता है । प्रकृति में सारे ग्रह और ब्रम्हाण्डों का टुटना, फुटना और जुटना चलता रहता है । जब ब्रम्हाण्ड आवश्यकता और परिस्थिति के साथ टुटता और जुटता है तो देश का टुटना फुटना काफी सहज और स्वाभाविक होता है । और वैसे भी मधेश पर किसी नेपाल या नेपालियों का राज कायम रखना गैर कानुनी है । ओली साहब से मधेश का इतिहास और प्रमाण देखने को अनुरोध है । मधेश नेपाल से काफी अलग है । अब नेपाल को मधेश से वापस जाना ही बुद्धिमानी होगी ।
झापा से कंचनपुर तक अब प्रदेश नहीं, देश बनने जा रहा है । उसकी तैयारीयाँ हो रही है । जनता तैयार है । सिर्फ हम मधेशी राजनेता, राजनीतिक पृष्ठभूमि, कर्मचारीतन्त्र, कुटनीतिज्ञ, रणनीतिज्ञ और दक्ष जनशक्ति निर्माण की तैयारी में हैं जो नेपाली शासकों से हम खुले रुप में जानकारी कराते आ रहे हैं ।
कैलाली घटना में नियोजित रुप से मधेशियों को दोषी बनाया गया है । अगर मधेशियों ने ही सुरक्षाकर्मियों को मारा है तो मरने बाले सुरक्षाकर्मियों का पोष्टमार्टम क्यूँ नहीं कराया गया ? आङ्गकाजी शेर्पा के रिपोर्टों को सार्वजनिक क्यूँ नहीं किया जा रहा है ? मधेशियों के शान्तिपूर्ण विरोध जुलुस में घुषपैठिया का काम नेपाली प्रहरी ने किया । नेपाली सुरक्षाकमिर्यों को गोली मारने बाले भी सुरक्षाकर्मी खुद रहे हैं । सोये हुए बच्चे को गोली प्रहरी के बन्दुक से लगी है । नेपाल सरकार के पास कोई प्रमाण है कि प्रदर्शनकारियों ने बन्दुक रखा था और गोलियाँ चलायी ?
मधेशी मोर्चा के न्यायपुर्ण माँग अनुसार कैलाली घटना के आरोपियों के मुद्दे फिर्ता लेने की राज्य जब बात करती है तो राज्य का नौकरी करने बाले प्रहरी पमुख द्वारा राज्य से टक्कर लेने पर उतारु होना तो यही संकेत करता है कि नेपाली राज्य अपने समुदायों पर शासन करने का रुचि नहीं रखता है । वहीं मृतक एसएसपी न्यापाने की धर्मपत्नी यह धम्की देती है कि उनके पति के हत्या आरोपियों को मुक्ति नहीं मिलनी चाहिए ।
जिसने मरने और मारने के लिए ही कसम खाकर पुलिस की नौकरी की । १८–२० साल के नौकरी अवधि में ऐशो आराम के साथ करोडों अरबों रुपये कमाकर अपने पिछे छोड दें और अपने प्राकृतिक मेहनत के बल पर आर्जन किए भूमि, धन, सम्पति तथा जीवन और इज्जत समेत को बचाने तथा संरक्षण के लिए प्रार्थना या शान्तिपूर्ण आन्दोलन करने बाले हजारों मधेशियों को भूमिहीन, सम्पतिहीन, इज्जतहीन और जीवनहीन बनाना क्या किसी राज्य और उसके प्रशासन का धर्म या अधिकार है ? क्या मृतक एसएसपी पत्नी को बाँकी सिन्दुरहीन महिला नहीं दिखायी देती ? एक ही प्रकार के आन्दोलन में काठमाण्डौ और सूर्खेत में उसी राज्य और उसके प्रहरी द्वारा पानी का गोली और टिकापुर लगायत मधेश के बाँकी जिलों में मधेशियों पर बन्दुक की गोली चलना जनद्रोह नहीं ? उसपर कानुन नहीं लगनी चाहिए ?
टिकापुर के ही मुनुवा गाविस के मधेशी किसानों के पाँच सौ बिगहा से ज्यादा जमीन वहीं के दुष्यन्त मल्ल और उनके स्वर्गीय पिता टेक बहादुर मल्ल ने विभिन्न बैंकों में बन्धकी रख किसानों के जमीन बइमानी की है । क्या कहेंगे ओली जी ? टिकापुर में ही मधेशी कहकर एक भारतीय बरफ बेचने बाले का बरफ खाकर पैसे माँगने पर पिटते पिटते नेपाली तीन गुण्डों ने उन्हें मार डाला और नेपाली प्रशासन चूँ तक नहीं बोलती तबतक जबतक भारतीय पक्ष घर में घुसकर लात नहीं मारती है ।
ओली जी, मधेश आपकी बिर्ता नहीं–यह मधेशियों का अपना ऐतिहासिक विरासत है जो आप अपने कब्जे में ज्यादा दिनों तक अब नहीं रख सकते । आप अपने बोली को कम से कम झोली में छिपाकर रखें । जो मन में आए, बोल देने से तो आप नेपाल को नहीं चला सकते तो मधेश तो आप के समझ से बाहर है । कहते हैं न, “अब पछताकर का होई जब चिडिया चुक गइल खेत ।” तनाब में नहीं रहिए ओली जी, रिल्याक्स्ड रहें ता कि आप लोग मधेश के पडोसी नेता बनकर शान्ति तथा मैत्रीपर्ण सम्झौते करके प्रतिष्ठा के साथ संसार छोडें । उपरबाले आप सबको सद्बुद्धि दें… ।



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