दमन कब तक
ने पाल के मधे शियों को शासक के द्वारा शो षण कर ना या दबाना कोर् इ नई बात नहीं है । र ाणा शासन से ले कर आज के बहुदलीय, संघीय लो कतान्त्रिक गणतन्त्रतात्मक राज्य के रुप में स् थापित हो ने तक भी उक्त विभे दकारी नीति में अन्तर नहीं आ पाया है । मधे श में व्याप्त बेरो जगारी, अशिक्षा औ र शो षण को हटाकर समावे शी ने पाल बनाने की अवधार णा अभी भी अधुरी है । समावे शी की भावना के वल खस शासको ं के क्षे त्र मे ं औ र समाज में सिकुडती, सिमटती जा र ही है । ने पाल में मधे श क्षे त्र नहीं है । मधे श क्षे त्र हिन्दुस् तान मे ं खो जना पडे Þगा, ऐ सा कहने वाले शासक लो गों की नीति ही बन गई है कि मधे शी भाइयो ं मे ं फूट डालो ओरराज कर ो । अदूर दर्शी मधे शी ने ता इस नीति का शिकार हो र हे है । खस शासको ं को लगता है कि ने पाल के वल उन्हीं लो गो ं का दे श है । लगता है कि मधे शी जनता किसी पर ाए र ाष्ट्र का नागरि क ।
आजकल मधे श मे ं गै र न्यायिक हत्या, मधे शी युवाओ ं को पुलिस द्वार ा अवाञ्छित घटनाओ ं मे ं द्वे षपर्ूण्ा तर ीके से फँसाकर जे ल भे जना तथा जे ल ले जाते समय इंकाउण्टर कर ना शासको ं की नीति बन गई है । मधे श मे ं र हने वाले मधे शियो ं को आपर ाधिक घटनाओ ं मे ं फँसाकर मधे श से पलायन कर ाकर निर्विघ्न र ाज्य संचालन कर ने का शासको ं का सपना सपना ही र ह जाएगा । इतिहास साक्षी है कि जहाँ अधिक दमन हो ता है , वहीं विस् फो ट हो ता है । पश्चिमी जिला रुपन्दे ही मे ं मधे शी युवाओ ं को अने काने क घटनाओ ं मे ं फँसाकर दुःख दे ना कडÞी से कडÞी सजाय दिलावाना वर्तमान शासको ं की नीति बन गई है । यहाँ मधे शियो ं के हित मे ं एक भी मीडिया न हो ने के कार ण मधे शियो ं पर हो र हे दमन के बार े मे ं शासक प्रभावित मिडियाकर्मी लो ग कुछ भी नहीं लिखते है ं । इस क्षे त्र मे ं र हने वाले गिने गिने मधे शी पत्रकार लो ग भी हो र हे दमन नीति के बार े मे ं नहीं लिख र हे है ं । जो बहुत ही दुःख की बात है ।