लोकतंत्र अब लोभतंत्र हो चूका है और जल्द ही लोपतंत्र भी हो जाएगा : बिम्मी शर्मा
बिम्मी शर्मा, २५ अप्रैल | (व्यंग्य)
लोकतंत्र बबुआ को इस देश में पधारे हुए १० साल हो गए पर यह का खाते हैं कि बढत नाहीं । इस के साथ पैदा हुए बांकी सारे बच्चे स्कूल जाते हैं । कितनो बच्चो का तो यज्ञोपवित संस्कार हो गया, बेटियों का बेल विवाह और गुफा संस्कार भी हो गया नेपाल में । पर यह लोकतंत्र तो अभी भी गुफा के अंदर ही है । यह लोकतंत्र यहां पैदा नहीं हुआ था, इसको यहां के जनता और नेताओं ने गोद लिया था । दूसरे के गोद से बच्चा छीन कर खुद अभिभावक बन कर पालने में जितनी दिक्कतें आती है वही सब दिक्कते इस लोकतंत्र नाम के बच्चे को पालने, पोसने मे भी आ रहा है ।
यह लोकतंत्र नाम का बच्चा कूपोषण से ग्रस्त है । जन्म से नौ महीने तक के बच्चे को विभिन्न रोग प्रतिरोधी इंजेक्शन लगाया जाता है पर इस बेचारे लोकतंत्र का किसी ने ख्याल नहीं रखा इसी लिए यह बेईमान, भ्रष्ट, लोभी और लूटमार के रोग से ग्रस्त है । इस लोकतंत्र को प्रोटिन, विटामिन और मिनरल्स से भरा खाना किसी ने नहीं खिलाया इसी लिए यह हमेशा दुबला, पतला और शोक ग्रस्त रहता है । जब इस को गोद लिया गया तब देश में सूखा पडा था और नेता गण भूख से ग्रस्त थे इसी लिए यह भोकतंत्र के रुप में नेताओं के घर में रहने लगा । इस के बहाने से विभिन्न राजनीतिक दल और इस के नेता गण खूब फलने, फूलने लगे और यह बेचारा दरिद्र और अवसाद ग्रस्त होता चला गया ।
लोकतंत्र राज करना चाहता था जनता कें दिलों में, खेत खलिहानों में, झोपडपट्टी और अभाव ग्रस्त तन, मन में । पर इस बेचारे की एक न चली और यह सिमट गया सिहं दरवार, संसद भवन, बालुवाटार, शीतल निवास, मंत्री और नेताओं के निवास में । वहां पर इन नेताओं ने इस बेचारे लोकतंत्र का अपहरण कर उसे दाना पानी दिए बिना ही रखा । जिससे यह मायूस हो गया और देश में अधंकार का बोलबाला रहा । यह अंधकार सिर्फ लोडसेडिगं का नहीं अविकास और अन्याय का भी था । हाथ, पावं बंधे होने से यह बेचारा लोकतंत्र अंधकार और अन्याय से लड़ नहीं पाया ।
जब इस को लाने की बात देश में चली तब देश की जनता को बडे–बडे सब्जबाग दिखाए गए । यह आएगा तो असमानता और अन्याय दूर होगी । सभी को रोजगार मिलेगा और जनता दो जून की रोटी खा कर चैन की नींद सोएगें । पर यह सब झूठा आश्वसान था तिकडम बाज नेताओं का । जो सपने दिखाए गए थे देश के नागरिको कों वह सिर्फ सपना ही रह गया । इस लोकतंत्र को अच्छी तरह पालने, पोसने के लिए एक किताब लिखने की जरुरत महसुस हुई । उस किताब में दिए हुए नीति, नियम और निर्देशकों का पालन कर का लोकतंत्र का बलवान बनाने की बात हुई । उस किताब को लिखा भी गया जिसे हम सब संविधान कहते हैं । इस किताब को लिखने के लिए दो, दो बार निर्वाचन का कर्मकांड और यज्ञ किया गया । पर फिर भी यह किताब पवित्र और सब के मनवांछित न बन सका । बेचारा लोकतंत्र अभी तक इस किताब की क, ख, ग, घ भी नहीं पढ पाया है ।
इस लोकतंत्र और संविधान को देश के एक हिस्से ने जबरदस्ती अपनी गोदी में रख लिया और मधेश और मधेशियों को इस लोकतंत्र को खिलाने और संविधान कि किताब को पढने से वंचित रखा । इस लोकतंत्र के कान भरे जाने लगे सारे मधेशियों के खिलाफ और कहा गया कि यह तुम्हारे सौतेले भाई, बहन हैं इनसे तुम्हे खतरा हैं इसी लिए इनसे दूरी बना कर रखो और अपना मत मानो । लोकतंत्र बेचारा भोला, भाला सा बच्चा जो जिसने जैसा कहा करता गया । जो जिस तरह नचाता था उसी तरह नाचता रहा । इस लोकतंत्र को बंदर जैसे नेताओं ने अपने हाथ आया नारियल समझा और जनता के सिर पर फोड दिया । नारियल के अंदर का पानी और फल इन बंदररों ने खुद खाया और जनता के माथे पर दिया गहरा चोट । जनता बेचारी बिलबिला रही है ।
अधिकांश जनता को यह गोद लिया हुआ लोकतंत्र फूटी आंख नहीं सुहाता है । जनता चाहती है कि यह लोकतंत्र नाम का बच्चा जहां से आया है वहीं चला जाए । पर नेताओं नें सिहं दरवार में इस लोकतंत्र नाम के बच्चे को जंजीर से बांध कर रखा है । लोकतंत्र है तभी तो नेताओं मे लोभतंत्र कायम है । लोकतंत्र के भाई, बंधू के रुप में लूटतंत्र, जोकतंत्र, शोकतंत्र, फूटतंत्र, जूटतंत्र, कूटतंत्र सभी इस के आसपास डेरा जमाए हुए हैं । लोकतंत्र दिन, रात इन्ही के साथ खेलता और उठता बैंठता है । लोकतंत्र तो बेचारा अकेले ही आया था इस देश में पर नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए साए कि तरह ईस सब तंत्रो को लोकतंत्र के पिछे चिपका दिया । इन्ही के कारण लोकतंत्र बदनाम है, उसका जीना हराम है ।
लोकतंत्र का दशंवा जनम दिन पूरे देश में धूम धाम से मनाया जा रहा है । पर बेचारा लोकतंत्र अच्छी तरह चल नहीं पा रहा है । उसको घसीट कर मंच मे ले जाया जाता है । जहां वह हर साल अपने आने का प्रयोजन बताता है खुद को मजबुत करने के लिए सभी से याचना करना है । पर लोकतंत्र के जड़ में खाद्य, पानी है ही नहीं । इसी लिए जब भी किसी दल विशेष का आंदोलन, किसी धार्मिक रैली या राजतंत्र लौटाने कि बात पर यह जड से ही हिल जाता है । तब विभिन्न राजनीतिक दल और इस के नेता गण आश्वासन कि डोरी बांध कर इस के जड़ को गिरने से बचाने की नाकाम कोशिश करते हैं । पर यह लोकतंत्र है कि छोटी सी आंधी या मेघ कि गडगडाहट से भी सिहर जाता है ।
जब लोकतंत्र को गोद लिया गया तब जनता से पूछा ही नहीं गया । नेताओं नें जबरदस्ती नेपाल मां की गोद में इस पराए जाए को पटक दिया और इस को दूध पिलाने का आदेश दिया । पर मां के स्तन से दूध तो नहीं टपका हां खून और आंख से आंसू जरुर टपक पड़े । जब से यह लोकतंत्र आया हैं मां का दूध और खून ही नहीं हाड और मांस भी खा चुका है । पर फिर भी इसका पेट नहीं भरा । क्योंकि यह लोकतंत्र अब लोभतंत्र में परिणत हो चूका है इसी लिए यह जल्द ही लोपतंत्र भी हो जाएगा । हाय रे लोकतंत्र तूं क्यों इतना कमीना निकला ? हमने तेरा क्या बिगाड़ा था जो हमारी पूरी व्यवस्था को तू चौपट कर रहा है ? क्यों तूं नेताओं के हाथ का खिलौना बना ? क्यों हम लोगों का हमसाया न बना ? क्यों तुझे झोपड़पट्टी न दिखाई दी सिर्फ नेताओं के महल ही दिखाई दिए ?