ए तो हो ना हि था
जयप्रकाश गुप्ता
इस बात का संकेत बहुत पहले से ही मिलने लगा था । आखिर भीतर रहकर कब तक विचारों से समझौता किया जाएगा । मधेशी जनअधिकार फोरम नेपाल अब तक ६ बार विभाजन का देश झेल चुकी है । क्या कारण है कि इस पार्टर् प्रति समर्पित नेता व कार्यकर्ताओं की इस पार्टर् या इसके नेतृत्व वर्ग से विरक्ति होने लगती है – ये सब कुछ ऐसे प्रश्न है, जो हर किसी के मन में उठना स्वाभाविक है । यह एक शोध का विषय है कि क्यों बार-बार विभाजन होता है । वैसे तो आने वाले समय में मेधशी जनता इसका मूल्यांकन अवस्श्य करेगी । लेकिन फिर भी पार्टर्ीीवभाजन पर नवगठित मधेशी जनअधिकार फरोम गणतांत्रिक के तरफ से काफी विचार विमर्श के बाद इसपर श्वेतपत्र जारी किया गया है । इस श्वेत पत्र में वो सब कारण दर्शाए गए है, जिससे यह बात साफ हो जाएगी कि अब तक क्यों फोरम नेपाल में विभाजन होता रहा है । और क्यों एक बार फिर से इसे विभाजन का शिकार होना पडा है ।
१. मधेशी जनअधिकार फोरम नेपाल के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव ने पार्टर्ीीे उद्देश्य तथा लक्ष्य प्राप्ति के लिए इमान्दारी के साथ काम नहीं किया ।
२. पार्टर्ीीे व्यापक जनाधार रहे क्षेत्र मधेश की प्रजातान्त्रिक भावना के विपरीत सदैव उग्रवामपंथी गठबंधन के पक्ष में रहे उपेन्द्र यादव ।
३. मधेश आन्दोलन के उपलब्धि को संस्थागत करने के बदले निरन्तर सत्ता स्वार्थ में ही लगे रहे ।
४. उपेन्द्र यादव की कमजोरी के कारण ही बार-बार संसदीय दल में विभाजन आने के बाद भी पार्टर्ीीी एकता के पक्ष में काम करने में वो असफल व असक्षम रहे ।
५. पार्टर्ीीथा संसदीय दल के निर्ण्र्ााके विरुद्ध पार्टर्ीीे भीतर गुटबन्दी को बढÞावा दिया ।
६. सरकार में सहभागिता के सर्ंदर्भ में भी पार्टर्ीीथा संसदीय दल के औपचारिक निर्ण्र्ााके विरुद्ध मंत्रियों को चयन किया ।
७. विदेश मंत्री के रुप में सरकार के संवेदनशील मंत्रालय की जिम्मेवारी में रहकर भी हमेशा मधेश और देश के हित के खिलाफ भारत की सुरक्षा के विरुद्ध काम करते हुए पार्टर्ीीे विदेश नीति के संबंध को ही असंतुलित कर दिया ।
८. पार्टर्ीीे विधान, संसदीय दल के विधान विपरीत पार्टर्ीीे भीतर आन्तरिक प्रजातंत्र को खत्म किया गया ।
९. पार्टर्ीीें लोकतांत्रिक पद्धति, मूल्य, मान्यता के विपरीत कार्य किया ।
१०. पार्टर्ीीध्यक्ष के रुप में आम मधेशी के अधिकार को सुनिश्चित करने के बदले व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए पार्टर्ीीा दुरुपयोग कर, व्यक्तिगत लाभ उठाकर, मधेशी जनता की भावना के प्रति कुठाराघात करने के साथ ही पार्टर्ीीहत के संरक्षण तथा सर्म्वर्द्धन करने के काम में उदासीन रहने की बात स्पष्ट ।
११. पार्टर्ीीे भीतर बडे पैमाने पर आर्थिक अनियमितता करते हुए विराटनगर, वीरगंज, काठमांडू सहित बिहार के कुछ स्थानों पर भी उपेन्द्र यादव द्वारा व्यक्तिगत संपत्ति आर्जित करने की बात पहले भी प्रमाणित हो चुकी है ।
१२. उपेन्द्र यादव नेपाली राजनीति लोकतांत्रिक या अलोकतांत्रिक गठबंधन की पहचान करने में पूरी तरह असफल रहे ।
१३. पार्टर्ीीनर्ण्र्ााकी हमेशा अनदेखी करते हुए राजनीतिक स्वेच्छाचारिता का काम ही किया और हमेशा पार्टर्ीीर अपना ही सिद्धान्त, अपना विचार, अपना व्यक्तिगत निर्ण्र्ााथोपने का काम किया ।
ये और ऐसे अनेक कारण है, जिससे उपेन्द्र यादव का नेतृत्व स्वीकार कर एक ही पार्टर्ीीें काम करने की संभावना बिलकुल भी खत्म हो गयी थी । इस कारण फोरम नेपाल के २५ सभासदों में से १३ सदस्यों ने मिलकर एक अलग ही राजनीतिक दल की घोषणा करने को विवश हुए । वास्तव में यह एक बाध्यात्मक निर्ण्र्ााहै व अनेक प्रयत्न करने के बाद भी उपेन्द्र यादव के चाल चरित्र और विचार में कोई र्फक नहीं आने के कारण भारी मन से यह निर्ण्र्ाालेना पडा ।
एक बात और स्पष्ट कह देना चाहिए कि पार्टर्ीीा यह विभाजन नेतृत्व के झगडेÞ या फिर मंत्रीमंडल के विभाजन को लेकर नहीं हुआ है, जैसा कि प्रचार किया जा रहा है । पार्टर्ीीे विभाजन में उपर्युक्त कारणों के अलावा भी और कई कारण हैं, जिसे जानना जरुरी है ।
संविधान सभा में निर्वाचित होने के पश्चात के कुछ राजनीतिक घटनाक्रम तथा पार्टर्ीीे कई महत्वपर्ूण्ा निर्ण्र्ाालेने की प्रक्रिया में भी उपेन्द्र यादव ने जानबूझकर भयंकर गलतियाँ की है । संविधान सभा का प्रत्यक्ष निर्वाचन और दौरान और उसके बाद समानुपातिक प्रणाली से सदस्यों के चयन करते समय अशोभनीय तरीके से उपेन्द्र यादव ने पैसे की लेनदेन की थी । जिसके कारण फोरम को अपेक्षा से कही कम सीटें ही मिल पाई ।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में उपेन्द्र यादव ने पहले संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा में हुए समझदारी के विपरीत सत्ता समीकरण में प+mसाया । ये निर्ण्र्ााउपेन्द्र के अकेले का ही था । इसका परिणाम यह हुआ कि फोरम ने बडी उपलब्धि खो दी । और तो और हमेशा ही निराश क्षुब्ध व कार्यहीन रहने वाले उपराष्ट्रपति का पद मिला । उपराष्ट्रपति के पद पर भी पहले वचन देकर पार्टर्ीीे वरिष्ठ नेता सीतानन्दन राय को धोखा दिया गया । इसी धोखे के कारण फोरम को संविधान सभा के सभामुख जैसा महत्वपर्ूण्ा पद उपेन्द्र यादव की गलती से हमने खो दिया ।
माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड को प्रधानमंत्री के रुप में र्समर्थन के समय भी फोरम संसदीय दल ने निर्ण्र्ााकिया था फोरम को माओवादी की सरकार बनाने में र्समर्थन नहीं करना चाहिए । लेकिन उपेन्द्र यादव ने अकेले ही बिना शर्त र्समर्थन कर दिया । जिसका परिणाम यह हुआ कि संयुक्त सरकार की साझा समझदारी पत्र पर मधेशी मुद्दों को दरकिनार करते हुए भी चुपचाप सिर झुकाकर हस्ताक्षर करने को बाध्य हुए ।
इससे पहले विजय गच्छेदार ने जब पार्टर्ीीे विभाजन किया तो उसके मुख्य दो कारण थे- उपेन्द्र यादव चाहते थे कि माओवादी के नेतृत्व की सरकार के र्समर्थन में ही पार्टर्ीीो रहनी चाहिए और विजय कुमार गच्छेदार चाहते थे कि माधव नेपाल को र्समर्थन देकर पार्टर्ीीो सरकार में शामिल होना चाहिए । इसी विवाद के कारण पार्टर्ीीें विभाजन हुआ ।
मधेश आन्दोलन की सहमति को पूरा कराने के लिए मधेशी सभासदों ने लगतार १२ दिनों तक संसद को अवरुद्ध रखा । सरकार से ६५ समझौते को संविधान में रखे जाने पर पार्टर्ीीे भीतर खूब बहस हर्ुइ । लेकिन पार्टर्ीीी भावनाओं के विपरीत उपेन्द्र ने माओवादी के समथ मिलकर अदूरदर्शी समझदारी की और तुरंत माओवादी नेतृत्व की सरकार में शामिल हो गए । जिससे मधेश को काफी क्षति पहुँची ।
इसी तरह राज्य पुनर्संरचना जैसे अति संवेदनशील और महत्वपर्ूण्ा विषय पर पार्टर्ीीे सह अध्यक्ष के नाते एक खाका तैयार कर इस पर विचार विमर्श करना चाहिए । लेकिन उपेन्द्र ने अपने मन से एक निम्नस्तर के रिटायर्ड सरकारी अधिकारी द्वारा तीन पन्ने का तैयार किया गया राज्य पुनर्संरचना व शक्ति संतुलन के सम्बंध में तैयार किए गए दस्तावेज को पार्टर्ीीी आधिकारिक धारणा के रुप में जमा कर्राई ।
उपेन्द्र यादव के ही व्यक्तिगत कारणों से मधेशी मोर्चा से चार बार वो अलग हो चुके हैं । विभिन्न विषयों पर मोर्चा से आबद्ध दलों के बीच सहमति ना होने में उपेन्द्र यादव का व्यक्तिगत स्वार्थ एवं अहम् हमशा हावी रहा । इसी कारण भी संविधान निर्माण के विभिन्न समितियों में मधेश के मुद्दे को दरकिनार किया जाता रहा है । उपेन्द्र यादव ने मधेशी मोर्चा को सत्ता तक पहुँचने के लिए सीढी के रुप में प्रयोग किया । पिछली बार भी जब मधेशी मोर्चा ने गच्छेदार को प्रधानमंत्री पद पर र्समर्थन करने का निर्ण्र्ााकिया तो उपेन्द्र यादव ने अपने को मोर्चा से ही अलग कर दिया । और तो और उपेन्द्र यादव उस पार्टर्ीीौर उस व्यक्ति के नेतृत्व की सरकार में शामिल हो गए, जिसे वो खुद फोरम विभाजन के सबसे बडेÞ खलनायक के रुप में चित्रित करते है । यानि कि झलनाथ खनाल पार्टर्ीीध्यक्ष होते हुए भी उपेन्द्र यादव ने योजनाबद्ध तरीके से पार्टर्ीीे भीतर लगातार षड्यन्त्रकारी निर्ण्र्ााकरने के अलावा और कोई काम नहीं किया ।
उपेन्द्र यादव की माओवादी परस्त सोच एवं चिन्तन तथा अन्तरनिहित प्रतिबद्धता के कारण फोरम का प्रजातांत्रिक चरित्र के ऊपर गम्भीर प्रश्नचिहृन खडÞा हो गया है । मधेश मुद्दे के नाम पर यादव ने फोरम को एजेण्डे को माओवादी का एजेण्डा बनाया और फोरम के विचारधारा को भी माओवादी के विचार का गुलाम बना दिया है । दर्ुभाग्यवश फोरम नेपाल नेपाली राजनीति में हाल ही में देखे गए प्रचण्ड-झलनाथ की रची दुष्चक्रम में फँसी हर्ुइ है । इसी ध्रुवीकरण के कारण नए संविधान के लिए भी उपेन्द्र यादव ने माओवादी के राजनैतिक एजेण्डा को पूरी तरह ना सिर्फअपना लिया है बल्कि उसे पूरा करवाने की पूरी कोशिश में लगे है । िि
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