वैकल्पिक ‘नयी शक्ति’ पीछे क्यों ?
पहले चरण के निर्वाचन के दौरान प्रायः सभी उम्मीदवारों ने निर्वाचन आचार संहिता विपरीत लाखों खर्च किया है ।

एक बात तो यह भी है कि इस बार नयी वैकल्पिक शक्ति को चुनावी बहस करने का पर्याप्त समय भी नहीं मिला । चुनावी अभियान ने जनता के बीच जिस तरह का राजनीतिक माहौल बनाना चाहिए था, वह नहीं हो पाया । साझा पार्टी की तुलना में विवकेशील और नयां शक्ति नेपाल पुरानी पार्टी है । लेकिन यह दो पार्टियों भी नयी तरंग सिर्जना करने में असफल ही रही । जितने भी जनता तथा मतदाताओं के बीच वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति का बहस हो सकी, वहां भी ‘सही वैकल्पिक शक्ति कौन है ?’ यहां सन्देहात्मक स्थिति दिखाई दी । एक बात तो सच है कि साझा और विवेकशील की तुलना में लोग नयां शक्ति पार्टी को ज्यादा जानते थे । नयां शक्ति पार्टी नेपाल के पूर्वप्रधानमन्त्री डा. बाबुराम भट्टराई तेतृत्व की पार्टी के रूप में लोग जानते थे । लेकिन सुरुआती दिनों में नयां शक्ति पार्टी ने जो तरंग सिर्जना की, वह कालान्तर तक नहीं रह सकी । पार्टी नेता के चरित्र औरयवहार में जनता को कोई भी ऐसा फरक नहीं मिला ताकि वह नयां शक्ति पार्टी और अन्य पुरानी पार्टियों के बीच अंतर पहचान सके । जिसके चलते भी नयां शक्ति पार्टी ने अपेक्षाकृत वोट नहीं पाया ।
यहा नेकपा एमाले के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली का एक कथन को उल्लेख करना सान्दर्भिक होता है । चुनाव के प्रारम्भीक नतीजा आते ही ओली ने एक कार्यक्रम में कहा था– ‘नेपाली कांग्रेस को प्राप्त मत देख कर मैं अचम्भित हो रहा हूँ । जनता क्यों कांग्रेस को वोट देती है ?’ वैसे तो यही प्रश्न ओली तथा नेकपा एमाले को भी कर सकते हैं– ‘जनता क्यों एमाले को वोट दे ?’ पता है– ओली के पास भी इसका सही जवाफ नहीं है । ठीक ओली की तरह प्रश्न कर सकते हैं– नयां शक्ति, विवेकशील और साझा पार्टी को क्यों वोट दे ?’ नयी शक्ति दावा करने वालें के पास भी कांग्रेस, एमाले और माओवादी की तरह ही बनिबनाऊ जवाफ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । जनता देख रही है कि उन लोगों का जवाफ सिर्फ भाषणबाजी के लिए ही है । इसीलिएयवहारतः ‘वैकल्पिक शक्ति यही है’ यह पहचान करना जनता असमर्थ हो रही है ।
सच्चाई तों यही है– देश के लिए कि अब नयी वैकल्पिक शक्ति की आवश्यकता है । बहुतों का विश्वास है कि जनता की यह चाहत एक दिन अवश्य पूरी होगी । अनूभूतिजन्य लोकतन्त्र, समावेशीकरण, सुशासन, विकास और समृद्धि को लेकर आज जो नारा घनीभूत हो रहा है, उसका श्रेय तो नयी शक्ति के बहसकर्ता को ही जाता है । लेकिन वह नयी शक्ति पुरानी पार्टी ही रूपान्तरण होकर बनेगा या नयी पार्टी उसके नेतृत्व करेगी ? अभी तक इसका जवाफ नहीं मिल रहा है ।
ध्यातव्य है कि पहले चरण के निर्वाचन के दौरान प्रायः सभी उम्मीदवारों ने निर्वाचन आचार संहिता विपरीत लाखों खर्च किया है । मतदाता को प्रभावित बनाने के लिए भोज का आयोजन भी किया । जो उम्मीदवार इस तरह भोज का आयोजन करने का हैसियत रखता है, सिर्फ उसी का ज्यादा पहुँच मतदाता तक होती है । लेकिन उम्मीदवारों को भोज में शामिल बहुसंख्यक मतदाता यह नहीं जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए इस तरह लाखों खर्च करनेवाले लोग पैसा कहां से लाते हैं ? और चुनाव जीतने के बाद वह अपनी लगानी कैसे वसूल करते हैं ? साफ है कि ऐसे लोग राज्यकोष से ही अपनी चुनावी खर्च उठाते हैं । इतना ही नहीं परिवार के लालन–पालन के लिए भी वह राज्य कोष को चूसते हैं । भ्रष्टाचार और कुशासन की जग यही से निर्माण होता है । लेकिन यह बात बहुत कम को पता चलता है । जितने को पता है, वह भी चुप बैठते हैं या उन लोगों के साथ ही भ्रष्टाचार में शामिल हो जाते हैं । इस सत्य को बहसंख्यक जनता के पास ले जाकर जनमत अपनी ओर बनाना चाहिए, लेकिन वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति इसमें असफल हो रही है । जहां वैकल्पिक शक्ति की पहुँच है, (जैसे काठमांडू), वहां के मतदाता ने बहुत हद तक विद्रोह भी किया है । लेकिन जहां की जनता इस सच को नहीं जानती है, वहां वोट पुरानी पार्टी को ही मिलेगा, नहीं तो कहां ?