वैकल्पिक ‘नयी शक्ति’ पीछे क्यों ?
विशेषतः इस चुनाव में कांग्रेस–माओवादी और एमाले–राप्रपा के बीच चुनावी तालमेल हुआ था । वैकल्पिक शक्ति के दावेदार नयां शक्ति नेपाल, साझा पार्टी और विवेकशील नेपाली को इन्हीं के साथ लड़ना था ।

एक सत्य यह भी है कि जनता के बीच में जिन समूहों ने अपने को नयी शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, वह तीन समूह में विभाजित थे ।यवहार और चरित्र से जनता पहचान नहीं पा रही थी कि वास्तविक नयी शक्ति कौन है ? पुराने राजनीतिक दल ही नयी शक्ति है या नयी पार्टी ! इस तरह राजनीति में विकल्प खोजने वाला मतदाता असमन्जस्य में पड़ गए और मत विभाजित हो गया । एक बात तो साफ है कि विभाजित नयी शक्ति को मत देने से इन्कार करनेवाले और द्वैध मानसिकता वाले लोगों ने पुरानी पार्टी को ही मत दिया, इसलिए वैकल्पिक शक्ति की तलाश करने वालों की संख्या अभी भी यकीन नहीं है ।
विशेषतः इस चुनाव में कांग्रेस–माओवादी और एमाले–राप्रपा के बीच चुनावी तालमेल हुआ था । वैकल्पिक शक्ति के दावेदार नयां शक्ति नेपाल, साझा पार्टी और विवेकशील नेपाली को इन्हीं के साथ लड़ना था । अगर ये तीन वैकल्पिक पार्टियों के बीच भी पुरानी पार्टी की तरह गठबन्धन किया गया होता, तो कम से कम काठमांडू महानगरपालिका लगायत कुछ स्थानों में निर्णायक मत प्राप्त हो सकता था । काठमांडू में विवेकशील नेपाल की प्रत्याशी रञ्जु दर्शना, साझा पार्टी के प्रत्यासी किशोर थापा और नयां शक्ति गठबन्धन के प्रत्यासी पवित्र बज्राचार्य ने जो मत प्राप्त किया, वह विजयी उम्मीदवार विद्यासुन्दर शाक्य को चुनौती देनेवाला था । काठमांडू महानगरपालिका में विजयी उम्मीदवार शाक्य ने कहा कि ‘रञ्जु दर्शना इतनी ज्यादा (२३ हजार से ज्यादा) मत लाएगी, यह तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी ।’ ऐसा ही कथन है– नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार राजुराज जोशी का । इससे स्पष्ट होता है कि अब पुराने राजनीतिक दल अपने को सुधार नहीं करेंगे तो जनता अवश्य ही विकल्प की तलाश करेंगी । जिसका संकेत काठमांडू के निर्वाचन ने दे चुका है ।
काठमांडू के मतदाताओं ने एक और संकेत भी दिया है– नयी शक्ति निर्माताओं को । वह यह है कि समान धारणा और विचार लेकर चलने वाली पार्टियों के बीच एकता हो । इसी तरह नयां शक्ति नेपाल को प्राप्त मत ने एक और सन्देश दिया है– नयी शक्ति निर्माण की बात सिर्फ भाषण में नहीं,यवहार और चरित्र में भी प्रकट होनी चाहिए । क्योंकि विवेकशील और साझा पार्टी के उम्मीदवारों की तुलना में आधा से कम मत नयां शक्ति पार्टी के उम्मीदवारों को मिला है । पुराने राजनीतिक कार्यकर्ता को लेकर पूर्वप्रधानमन्त्री डा. भट्टराई नेतृत्व में गठित नयां शक्ति नेपाल ने विवेकशील और साझा पार्टी की तुलना में कम मत लाना इसी का संकेत है ।
राजनीति करने का मतलव सिर्फ पद और शक्ति आर्जन करना है और उसके लिए सिर्फ ‘मैं ही योग्य हूँ’ इस तरह का अहंकार इस बार तीनों पार्टी में दिखाई दिया । जिसके चलते नयां शक्ति के दावेदारों ने साझा धरातल नहीं ढूंढ़ पाया, तीनों समूह अकेले ही चुनाव में उतर आए । अब भी ऐसा ही किया जाता है तो नयी शक्ति निर्माण की बात सिर्फ बहस में सीमित रह जाएगी । उदाहरण के लिए काठमांडू महानगरपालिका को ही लिया जा सकता है । अगर रञ्जु दर्शना, किशोर थापा और पवित्रा बज्राचार्य एक होकर चुनाव लड़े होते तो, बहुमत मिल सकता था । प्राप्त मत ने ऐसा ही सन्देश दिया है । काठमांडू ऐसा ‘इपिसेन्टर’ है, जहां से उत्पन्न तरंग पूरे देश में फैल जाता है । वैकल्पिक राजनीतिक शक्ति इस तरह का तरंग निर्माण करने में इस बार असफल हो गयी है । इस बात को स्वीकार करते हैं– ललितपुर महानगरपालिका के लिए साझा पार्टी की तरफ से मेयर पद के प्रत्याशी उम्मीदवार –रमेश महर्जन ।