सभासदों की मौज
पहले तय किए गए दो वर्षतथा बाद में बढÞाए गए १ वर्षमें संविधान नहीं बनने के बाद भी सभासदों ने संविधान बनाकर जनता को देने में असफल रही । एक बार फिर भी संविधान सभा की अवधि तीन महीने के लिए तथा आगे और तीन महीने बढÞाने की गारण्टी के साथ बढÞा दी गई लेकिन संविधान निर्माण प्रक्रिया राजनीतिक रुप से ही नहीं खर्च की दृष्टि से भी काफी महंगा साबित हो रहा है । संसद सचिवालय द्वारा दिए गए तथ्यांक के अनुसार संविधान सभा बैठक शुरु होने से लेकर २०६७ चैत्र तक सभासदों के मासिक तलब व भत्ता पर ही ४० करोडÞ रुपैया खर्च किया जा चुका है । एक सभासद को मासिक परिश्रमिक के रुप में ३२ हजार, १ सौ १० रुपैया, स्वकीय सचिव के लिए १३ हजार ९९०, आवास के लिए ६ हजार पाँच सौ, टेलीफोन २ हजार, पानी १ हजार २४८, मसलन्द १ हजार, पत्रपत्रिका के लिए तीन सौ रुपैया दिया जाता है । इसी तरह प्रत्येक बैठक में आने पर दो सौ रुपैया भत्ता व १५० रुपैया गाडÞी भाडÞा भी सभासदों को दिया जाता है । इस समय संविधान सभा में ५ सौ ९७ सभासद है ।
एक वर्षकी अवधि में सभासदों के नाम पर किए गए खर्च विवरण
तलब : २१ करोडÞ ९८ लाख २५ हजार ७ सौ ६१
भत्ता : ३ करोडÞ ३९ लाख ४० हजार ६ सौ
औषधि, उपचार : १५ लाख ४ हजार ८ सौ ७०
धारा, विद्युत: ६४ लाख ३६ हजार १ सौ २१
सञ्चार : १ करोडÞ ३ लाख ७७ हजार ९सौ ५१
कार्यालय सम्बन्धी खर्च ६८ लाख ८७ हजार १ सय ३२
भाडा ८ करोडÞ ४ लाख ९८ हजार ७ सौ २०
सवारी इन्धन : ५२ लाख ५१ हजार ३ सौ ९८
विविध ३ करोड: १२ लाख २१ हजार २ सौ १३
औषधि खरीद : २ लाख ३७ हजार ६७ सौ
कार्यक्रम भ्रमण : ५४ लाख ५४ हजार ७ सौ १
कुल : ४० करोड १६ लाख १२ हजार २ सय ३४
सभामुख तथा उपसभामुख के खर्च
तलब १६ लाख ५३ हजार ९ सौ ३०
भत्ता : १ लाख ८ हजार ४ सौ
औषधि, उपचार: २ हजार २ सौ
कार्यालयसम्बन्धी खर्च: ४३ हजार २ सौ
इन्धन खर्च : ३ लाख ४६ हजार ३ सय ४१
विविध : ८ लाख ५२ हजार ७ सौ
कार्यक्रम भ्रमण : ११ लाख ८२ हजार ७ सौ ४६
कुल : ४१ लाख ८८ हजार ८ सौ २४
स्रोतः संसद सचिवालय
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शान्ति और संविधान के लिए हुए खर्च का विवरण
राष्ट्रसंघीय शान्ति मिसन -अनमिन) ः १३ अर्ब १९ करोडÞ
राष्ट्रसंघीय विकास कार्यक्रम -यूएनडीपी) ः १ अर्ब ७५ करोडÞ
अमेरिकी सहयोग नियोग -एसडीसी) ः २ अब ७२ करोडÞ ५० लाख
स्वीस सहयोग नियोग -एसडीसी) ः २ अर्ब ७२ करोडÞ
यूरोपियन यूनियन -इयू) ः ५१ करोडÞ ५० लाख
सहयोग नियोग -सिडा) ः ४७ करोड
नर्वे ः ४० करोडÞ ४७ लाख
संयुक्त राष्ट्रसंघीय शान्ति निर्माण
परियोजना -यूनएनपीएफएन) ः २१ करोड ११ लाख र्
जर्मन सहयोग नियोग ः १९ करोडÞ
संघीयता और विधान निर्माण के लिए
छलफल और अन्तरक्रिया, विदेश
भ्रमण, स्वदेश में कार्यक्रम संचालन के
लिए जर्मनी-नेपाली गैरसरकारी संस्था ः ५४ करोडÞ १२ लाख
संविधान निर्माण के लिए हुए खर्च ः
स्वीटजरल्याण्ड ः १ अरब ६९ करोडÞ ६८ लाख
अमेरिकी सरकार अर्न्तर्गत -यूएसएड) ः २ अर्ब १५ करोडÞ
यूएनडी ः १ अरब ६४ करोडÞ
यूरोपेली यूनियन ः ५१ करोडÞ ५० लाख
सेडा ः ४६ करोडÞ
कोरिया सरकार ः ४० करोडÞ ८७ लाख
नर्वे सरकार ः ४० करोडÞ ८७ लाख
जमर्न सरकार ः १९ करोडÞ ६ लाख
स्रोत मिरेस्ट नेपाल
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एनजीओ व आईएनजीओ के चक्रव्यूह में सभासद व संविधानसभा
‘चीन द्वारा बनाए गए संविधान सभा भवन में भारत के द्वारा दी गई बस में चढÞकर अमेरिका द्वारा दी गई टेलिविजन देखकर, यूरोपेली देशों द्वारा दी गई कर्ुर्सर्ीीर बैठकर उनके द्वारा दी गई माईक में बोलकर हम किस तरह के राष्ट्रवादी और आत्मनिर्भर संविधान सभा की बात कर रहे हैं -‘ नेपाली कांग्रेस के युवा नेता तथा सभासद गगन थापा ने माओवादी द्वारा उठाए नेपाली राजनीति में विदेशी हस्तक्षेप की रट पर अपनी असंतुष्टि व्यक्त की थी । गगन थापा ने आगे कहा कि ऐसी स्थिति में विदेशी हमारे इशारे पर चलेंगे या फिर हम उनके एजेण्डे पर चलेंगे ।
गगन थापा की इस अभिव्यक्ति से एक बात समझ में आ रही है कि संविधान निर्माण के काम में भी किस कदर दूसरे पर निर्भर हैं । हमारी परनिर्भरता आर्थिक सहयोग और स्रोतसाधन में ही नहीं नीतिगत स्तर पर भी दातृ निकाय का इस ओर इन्टरेस्ट और प्रभाव दिखता है । शांति व संविधान के नाम पर विदेशों से आ रहे आर्थिक सहयोग के कारण प्रत्यक्ष रुप से हमारे प्रति विदेशियों की सदिच्छा व सदासयता दिखने पर भी उनके द्वारा अप्रत्यक्ष रुप से अपनी इच्छा थोपना चाहते हैं । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमे देखने को भी मिलता है ।
सहयोग के नाम पर विभिन्न दाता देशों द्वारा अपने देश की संघीयता, न्याय प्रणाली व राजनीतिक व्यवस्था को उपयुक्त बताते हुए हुबहू नेपाल में अवलम्बन करने का दबाव दिया जा रहा है । इसका आधार बनाने के लिए दाता देशों द्वारा सभासदों को अध्ययन भ्रमण के नाम पर अपने देश ले जाते रहे हैं ।
आर्थिक सहयोग को आधार बनाकर संविधान सभा के भीतर प्रवेश करने वाले दाता व सहयोगी संस्थाओं ने अपने-अपने आग्रह व स्वार्थ के हिसाब से सभासदों पर लाँबिंग करने की प्रवृति बढÞी है । अधिकार व समावेशी जैसे लुभावने नारे सभासदों के मार्फ समावेश कराने में वे सफल रहे है, जिसके कारण संविधान जनआकांक्ष का महज एक दस्तावेज बन कर रहने की संभावना प्रबल है । नेकपा संयुक्त की सभासद कल्पना राना स्वीकारती है कि सभासदों का नाम बेचकर देश में सक्रिय दर्जनों एनजीओं और आईएनजीओ द्वारा करोडÞों रुपैया विदेश से लाया गया है । लेकिन सभासदों को इसकी पूरी जानकारी भी नहीं है । नेपाल के लिए कैसा संविधान दर्ीघायु होगा, कितना पूरा किया जा सकेगा यह छोडÞकर दाताओं को खुश करने के लिए एनजीओं तथा आइएनजीओं व्यस्त हे । सभासद राना कहती है, “अच्छी बहस के लिए बुलाया जाता है और वहाँ जाने पर मालूल चलता है कि यह सिर्फएक कमाने का जरिया मात्र है ।
संविधान निर्माण के लिए पिछले तीन वर्षो में कितना खर्च हुआ – कहाँ से किस प्रयोजन के लिए कितना सहयोग मिला – सही आंकडÞा मिलना काफी मुश्किल है । लेकिन जो आंकडेÞ हमे मिले हे, उसे देखकर ऐसा लगता है कि इस नाम पर एनजीओं ताथ आईएनजीओं ने पैसे की नदी ही बहा दी है । मिरेस्ट नेपाल नामक संस्था द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक में कहा गया है कि संविधान निर्माण के नाम पर करीब ९१ अरब २६ करोडÞ ७४ लाख रुपैया अब तक खर्च किया जा चुका है । इसमें संविधान के लिए १५ अरब रुपैया खर्च हुआ है । ये रकम नजवरी २००७ से डिसम्बर २०१० तक विभिन्न दाताओं द्वारा संविधान निर्माण प्रक्रिया के लिए सहयोग के नाम पर दिया है । ििि