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मधेश ही नहीं पहाड की भी सम्पर्क भाषा हिन्दी है : सीके लाल, नागरिकता अधिकार है, सुविधा नहीं



 

 

डा.सीके लाल | मूलतः मधेश आन्दोलन के पाँच मुद्दे हैं । जिसमें सबसे पहला मुद्दा नागरिकता है । नागरिकता अधिकार है, सुविधा नहीं । इसका कोई प्रकार नहीं होता है या तो नागरिक या नागरिक होता है । यह आधुनिक राजनीति का सिद्धान्त है । यही मधेश आन्दोलन का सबसे प्रमख मुद्दा है । दूसरा मुद्दा भाषा का है । दूसरे की भाषा चाहे जितना भी जान लो उसमें प्रतिस्पद्र्धा नहीं होती । इसलिए मातृभाषा पर जोर देना आवश्यक होता है । साथ ही मधेश की सम्पर्क भाषा हिन्दी है नेपाली नहीं । मधेश और पहाड की सम्पर्क भाषा भी हिन्दी ही है । इसलिए पहाडी नेता जब मधेश जाते हैं तो हिन्दी में भाषण देते हैं । तीसरा मुद्दा जनसंख्या के आधार में प्रतिनिधि है । यह विश्वव्यापी मान्यता है । इसका तात्पर्य भूमि और जनता को प्यार करना है । काठमान्डौं के शासक को प्यार करना देशभक्ति नहीं है । जननी जन्मभूमिश्चः का तात्पर्य जिस भूमि पर आपने जन्म लिया है वह भूमि है । इसलिए यदि प्रजातंत्र मानना है तो जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधि होना आवश्यक है ।

चौथा मुद्दा है समावेशी का । आन्तरिक हो या बाह्य उपनिवेश के कारण राज्य का चरित्र समावेशी नहीं है । ८० प्रतिशत से अधिक राज्य के अंग में एक ही जाति, भाषा भाषी का वर्चस्व है । २०६३ के बाद का समावेशी भी इसे समेट नहीं सका है । अभी आरक्षण दिया हुआ है । यह सिर्फ एक उपाय है । सीमान्तकृत समुदाय को प्रवद्र्धन, संवद्र्धन भी करना होगा । समावेशिता भी जनसंख्या के आधार पर करना होगा । पाँचवा मुद्दा संघीयता है । मधेश केन्द्र का आंतरिक उपनिवेश है, उपनिवेश हीं । इसलिए पृथकता आवश्यक नहीं है । यदि पृथकता को रोकना है तो संघीयता आवश्यक है । संघीयता ऐसी होनी चाहिए जो मधेश की एकता को नहीं तोड सके । अभी मधेश को छ भागों में बाँटा गया है जो पृथकता की भावना को बढा रहा है । शुरु में एक मधेश एक प्रदेश की माँग थी । इसके बाद एक मधेश दो प्रदेश हुआ । इससे अधिक अगर मधेश को टुकडा कर दिया गया तो संघीयता का कोई औचित्य ही नहीं है । मधेश को प्रान्त बनाने पर विखण्ड होगा यह चिन्ता करना राष्ट्रीय एकता में विश्वास नहीं करना होगा । अगर शक ही करना है तो यह तो छ सात प्रान्त होने पर भी हो सकता है । मधेशी होने के साथ ही वह टुकडा करने वाला होना नहीं है । सिक्किम में विलय की घोषणा करने वाले खस आर्य पहाडी ही हैं । मधेश में दो प्रदेश होना चाहिए । क्योंकि मधेश में दो सभ्यता है । भोजपुरी, राजवंशी, वज्जी, पहाडी जनजाति आदि । इन सबका संगम स्थल मिथिला सभ्यता है । दूसरी सभ्यता अवध है । मिथिला सभ्यता का अर्थ जहाँ राजा जनक से लेकर लिच्छवी और वज्जी गणराज्य तक है वहीं अवध सभ्यता राजा राम से लेकर बुद्ध तक को जोडता है । इन दोनों सभ्यताओं की तुलना में गोर्खाली सभ्यता नहीं है । गोर्खाली संस्कृति है सभ्यता नहीं । सभ्यता को प्रान्त नहीं दे सकते और संस्कृति को पूरा राज्य चाहिए । यही विभेद है । दो सभ्यता को मिलाकर प्रान्त अगर बनता है तो ये अपनी सभ्यता की रक्षा कर सकते हैं । एक मधेश एक प्रदेश का मैं विरोधी हूँ क्योंकि राजा राम और उनका ससुराल एक ही जगह में तो नहीं थे ।

(अन्नपूर्ण पोस्ट में प्रकाशित विश्लेषक सीके लाल के विचारों का कुछ अनुदित अंश )



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