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२४ अगस्त



उत्तर कोरिया के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों की अनदेखी के अारोप में यूएस ने चीन और रूस की कई कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इन कंपनियों पर उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम में सहयोग करने का आरोप था। इस साल अमेरिका ने दूसरी बार चीनी कंपनियों और लोगों पर प्रतिबंध लगाया है। इसी साल जून में मनी लॉन्ड्रिग के आरोप में बैंक ऑफ डैनडॉंग को ब्लैकलिस्ट कर दिया था।

अमेरिका के इस कदम से चीन बौखला गया है। चीन के सरकारी अखबार में लिखे संपादकीय में अमेरिका की कड़ी आलोचना की गई है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ‘चीनी कंपनियों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को चीन कभी स्वीकार नहीं करेगा। हालांकि चीन पर इसका थोड़ा असर जरूर पड़ सकता है। चीन का कहना है कि कभी कोई नियम कानूनों का उल्लंघन नहीं किया। यदि अमेरिका के पास इस बात की पुख्ता सबूत हैं कि चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन किया है तो वह डिप्लोमैटिक चैनलों के जरिए बात कर सकता है।

ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता है, ‘उत्तर कोरिया को लेकर चीन पूरी गंभीरता से यूएन सिक्योरिटी काउंसिल के नियमों का पालन कर रहा है। वह उत्तर कोरिया को कोयला, लोहा तथा अन्य सामानों की आपूर्ति पर रोक लगाएगा। अगर कोई भी चीनी कंपनी इन नियमों का पालन नहीं करती है तो उन्हें चीनी कानून के तहत सजा दी जाएगी।’

चीन का कहना है कि अमेरिका ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया है और उसके द्वारा लगाए गए प्रतिबंध एकतरफा और अनुचित हैं। लेख में आगे कहा गया है, ‘किसी एक बात को लेकर अमेरिका यह कैसे कह सकता है कि चीन और उत्तर कोरिया के बीच अवैध व्यापार हो रहा है? दूसरी तरफ वाशिंगटन को को यह अधिकार किसने दिया कि किस वह उस कंपनी पर अपना निर्णय सुना दे जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन किया है? इस तरह के प्रतिबंधों से अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन और रूस की छवि धूमिल करना चाहता है।’

अमेरिका को धमकी देने के अंदाज में ग्लोबल टाइम्स लिखता है, ‘अगर इन प्रतिबंधों से अमेरिका को यह लगता है कि वह चीन पर दवाब बना लेगा तो वह भ्रम में है। चीन अमेरिका के खिलाफ वह हर कदम उठा सकता है चो वह चाहता है। अच्छा है कि अमेरिका अपने गिरेबां में झांके।’

साभार दैनिक जागरण



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