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मुख्यमन्त्रियों के दरबारों में बहार और मधेश में चित्कार : कैलाश महतो



 

 

 

कैलाश महतो, परासी | विघटन होने के पूर्व सन्ध्या में नेपाल के संसद ने एक नियम पारित करते हुए आने बाले अगहन १० और २१ गते के संसदीय और प्रादेशिक चुनावों से बनने जा रहे प्रदेश सरकारों के मुख्यमन्त्री को किसी भी कानुन के दायरे से उपर रखने की नियम पारित की है । मुख्यन्त्रियों के उपर किसी भी अदालत में किसी भी प्रकार की उल्झनें खडा करने की जनता के अधिकारों को खारेज कर दी गयी है ।
गौर तलब है कि नेपाल संविधान और नियम कानुन की नहीं, पार्टी, उसकी सरकार, समुदाय, वंशज और कुछ व्यक्तियों के आदेशों पर चलती है । नियम, कानुन और अदालत से भी उपर रहे नेपाली राजपरिवार और राजतन्त्र को खात्म करने के करीब एक दशक बाद नेपाल ने फिर उस पूराने व्यवस्था की आवश्यकता को याद की है । फर्क इतना है कि राजा व उसके परिवार वाले सिर्फ एक होते थे, और अब सात होने जा रहे हैं जिनपर देश या प्रदेश के कोई कानुन नहीं लगेंगे ।
जग जाहेर है कि जो समाज सेना के पहुँच से बाहर हों, उसका राजनीति कभी किसी भी मायने में सफल नहीं हो सकता । नेपाल की राजनीतिक ध्रुवीकरण और नेपाली सेना की संरचना दोनों मधेश विपरीत रहे काल में यहाँ जो भी चुनाव हो रहे हैं, उससे मधेश को कुछ भी सकारात्मक परिणाम हासिल होना संभव नहीं है ।
प्रदेश प्रमुख होने बाले मुख्यमन्त्रीयों को कानुन और अदालत से उपर रखने का सरकारी और संसदीय निर्णय का एक ही मकसद हो सकता है कि मधेश में मधेशीयों का सफाया करने का काम नये ढंङ्ग से होने बाले हैं जिसका विरोध मधेशी नहीं कर सकते । करें तो उसके विरुद्ध काम करने बाले मुख्यमन्त्रियों पर कोई कानुन लग नहीं पायेगी । मुख्यमन्त्रियों के दरबार लगेंगे और मधेशियों का नयाँ चित्कार शुरु होगा जिसे मधेशी सहन न कर मधेश से ही पलायन हो जायेगा ।
मधेशी पार्टीयों ने संघीयता माँगी और मधेशी जनता ने मधेश सरकार । मधेश सरकार का अर्थ जनता ने आजादी से ही लगायी थी तब भी, जब मधेशी दल संघीयता की रट लगा रही थी । २०६३–६४ के मधेश आन्दोलन को अगर नेता द्वारा मोडा न गया होता तो मधेश के कुछ और क्षति में ही आजाद मधेश की नारा भी सामने आ जाता जिसका काम होता मधेश सरकार निर्माण करना ।
हाल फिलहाल ही फेसबूक सामाजिक सञ्जाल पर विगत वि.सं.२०४२ की सरकारी एक घटना पोष्ट की गयी है जिसमें लुम्बिनी विकास के नामपर लुम्बिनी में रहे हजारों मधेशी परिवारों को बेघर कर दी गयी । लुम्बिनी विकास कोष ने उनकी १,१५० बिगहा भूमि अतिक्रमण कर ली । बदले में उन्हें प्रति बिगहा रु.६,००० और रु.७,००० दी गयी थी जिसके बलपर उनमें से अधिकांश मधेशी दूसरे जगहों पर जमीन खरीद न सके । उतने पैसों में वे दूसरे जगहों पर कहीं जमीन खरीद न करने के कारण संकडों परिवार भारत पलायन हो गये । आज उन्हीें जमीनों को नेपाली शासकों के खाने कमाने का माध्यम बनाया गया है ।
विकास के नाम पर ही भैरहवा अन्तर्राष्ट्रिय हवाई मैदान ‐एयरपोर्ट) बनाने के लिए मधेशियों के हजारों विगाहा जमीनें अतिक्रमण हुई है । मधेशी जग्गाधनियों के जमीनों का मूल्याङ्कन तानाशाही हिसाब से कौडी के दामों में की गयी है । विमानस्थल निर्माण का ठेकेदार झलनाथ खनाल सुपुत्र होते हैं । जहाज के मालिक नेपाली होता है । कर्मचारी नेपाली होते हैं और मजदुर मधेशी होता है ।
संघीयता के आगोस में पल रहे मधेशी दलों को इस बात को कतई भूलना नहीं चाहिए कि संघीय लोकतन्त्रात्मक गणतन्त्रवादी किसी भी देश की राजनीति प्रणाली स्थानीय निकाय का निर्वाचन केन्द्रीय प्रणाली से नहीं करवाती है । ऐसे देशों में सर्वप्रथम केन्द्रिय तथा संघीय निर्वाचन होना अनिवार्य होता है । प्रादेशिक सरकार ही स्थानीय निर्वाचन कराती है । मगर नेपाल सरकार ने बडी चतुराई से केन्द्रिय सत्ताद्वारा स्थानीय निर्वाचन करायी है, जिसका भयंकर परिणाम मधेश को भुगतना पडेगा ।
गम्भीर होने लायक बात यह बनती है कि मधेशी जनता अपना जमीन उस लुम्बिनी विकास को क्यूँ देगी जिनमें उसकी कोई सहभागिता न हो, उसकी कोई पहूँच न हो ? मधेशी जनता उस विमानस्थल को अपनी भूमि क्यों दे जिसमें उसका व्यापार न हो ?, जिसमें उसका सम्मान और अवसर न हो ?
मधेशी जनता की भूमि, विश्वास, श्रम और संरक्षण में विकसित लुम्बिनी और गौतम बुद्ध एयरपोर्ट से मधेशी जनता को क्या और कौन सा लाभ है ? लुम्बिनी और गौतम बुद्ध हवाई अड्डा में कितने मधेशी को काम मिले हैं ? किन पदों पर हैं ? अगर होंगे भी तो नेपाली शासक, प्रशासक, आम नेपाली, पर्यटक तथा कर्मचारीयों द्वारा किए गये गन्दगियों को साफ करने के लिए सफाई कर्मचारी के रुप में ।
लुम्बिनी विकास और भैरहवा एयरपोर्ट से होने बाली खरबों की कमाईंयों में मधेश को क्या मिल रहा है ? भूमि, विश्वास, श्रम और संरक्षण दे रहे मधेशियों को कितना प्रतिशत लाभांश मिलते हैं ? भूमि, विश्वास, श्रम और संरक्षण देने बाले कितने मधेशी उनका प्रयोग कर पा रहे हैं ?
नेपाल सरकार की यह शासकीय और नैतिक दोनों जिम्मेबारी बनती है कि लुम्बिनी विकास क्षेत्र, मधेश के हवाई अड्डों, राजस्व विभाग तथा कार्यालयों, धार्मिक तथा पर्यटकीय स्थलों लगायत के क्षेत्र, निकाय तथा संसाधनों के आयों में भूमिदाता मधेशी जनता को भी सामेल करायें । भूमि दान के नामपर भूमिहीन और बेसहारा बन चुके उन तमाम मधेशियों की खोज तलास हों और उनके तथा उनके परिवारों के लिए उचित व्यवस्था हों ।



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