चीन की नीति, पहाड़ पर कब्जा के बाद मधेश पर नजर – जनकपुर से की शुरुआत

रणधीर चौधरी, विराटनगर, २ फरवरी | नेपाल के इतिहास मे पहली बार चिनी राजदुत का जनकपुर दौरा हुआ है । परंतु नेपाल की राष्ट्रीय मिडिया मे चिनी राजदुत के जनकपुर भ्रमण का कवरेज नही दिखा । सायद भारतिय विदेश मन्त्री शुषमा स्वराज का नेपाल भ्रमण के कार्यक्रम ने पत्रकारो का ध्यान केन्द्रित कर लिया होगा । यद्यपी अभी संघिय नेपाल के परिपेक्ष मे चिनी राजदुत का प्रदेश—२ का यह भ्रमण उस प्रदेश मे बसोबास कर रहे लोगो को सोचने पर मजबुर कर रहा है ।
हालाकि राजदुत यु हंग का कहना है कि पिछले महिने हुये बाढ से प्रभावित लोगो को राहत वितरण करने के मकसद से उनको जनकपुर आना पडा । वहाँ से महोत्तरी, सिरहा, सप्तरी और रौतहठ लगायत के जिलो मे भी राहत वितरण का कार्यक्रम है । सबसे पहले बाढ पिडीतो को दिए गए राहत के कारण चिन को धन्यवाद देने मे कंजुसी नही करनी चाहिए । भले ही बाढ आने के छे महिने बाद ही क्युँ न यह राहत आया हो । चिन के साथ नेपाल का केबल कुटनितिक सम्बन्ध नही है । चिन एक प्रभावशाली पडोसी देश है नेपाल का । विश्व पटल पे चिन का बढता प्रभाव तो है ही ।
नेपाल मे सम्पन्न तीन चरण के चुनाव समाप्ती पश्चात राजदुत का जनकपुर मधेश भ्रमण स्वतः महत्वपुर्ण हो जाता है । कुछ प्रश्न जिसका जबाव चिनी अधिकारियो से आना आवश्यक है ।
प्रश्न, मधेश के संघर्ष पर चिन का आधिकारिक धारणा क्या है ? जब मधेश आन्दोलन के दौरान मधेश मे नेपाल सरकार द्वारा बर्बर दमन किया जा रहा था, सिधा भाषा मे कहा जाय तो मधेशियो के सिने और सर पे गोली दागी जा रही थी उस वक्त अन्तराष्ट्रिय स्तर से लोग इसका बिरोध कर रहे थो लेकिन चीन की कोई भी विज्ञप्ती कयूँ नही पढ्ने को मिला ? प्रदेश और संघ के चुनाव पश्चात कथित कम्यूनिस्ट का बोल बाला दिखना सुरु हुवा है नेपाल मे सिर्फ प्रदेश—२ को छोड कर । एसे मे राजदुत यु हंग का जनकपुर भ्रमण को फगत राहत वितरण से जोड कर क्यूँ देखना चाहिए ? इस सभी प्रश्न के बावजुद भी यु हंग की भ्रमण स्वभाविक ही है । क्यूँ की तीव्रतम रुप मे विकसित और परिवर्तित हो रहे २१ मी सदी के विश्व व्यवस्था अत्यन्त संबेदनशिल संक्रमण के अवस्था मे रहे अन्तराष्ट्रिय सम्बन्ध के महत्व को सभी ने स्विकारा है ।
प्रथम और दुसरे विश्व युद्ध पश्चात हुये अनेकन विश्व राजनितिक घटनाओ ने इसका महत्व और ज्यादा बढाया है । इसिलिये, अधुनिक समय मे आ कर विश्व मे आए राजनितिक परिवर्तन, नव-उदारवाद, भूमण्डलीकरण, ध्रुवीय विश्व का पतन, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और इन सभी से परने वाली विश्वव्यापी प्रभाव ने आन्तराष्ट्रिय सम्बन्ध का अवधारणा मे ना सिर्फ क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया है अपितु दिनप्रतिदिन इसका महत्व को बढाते जा रहा है ।
पिछले महिने काठमाण्डु मे एक बरिष्ठ राजनितिक बिश्लेषक से मुझे संवाद करने का अवसर प्राप्त हुवा था । संवाद मे चर्चा नेपाल मे चिनी कुटनिति का भी हुवा था । बिश्लेषक ने मुझे अपना अनुभव वताया था यह कहते हुवे की, “चाइनिज डिप्लोमेसी इज ‘एस—नो’ डिप्लोमेसी”। अर्थात उनका मानना है की चिनी अधिकारी व्याख्या और विवेचना मे विश्वास नही करते । वे सिर्फ हाँ या ना मे वात करते है । इसी लिए उनको समझ पाना आसान नही । उनके तर्क मे ग्र्याविटी दिखा हमको । परंतु नेपाल के वर्तमान सन्दर्भ अर्थात कथित कम्यूनिस्ट के चुनावी जित के पश्चात चिन नेपाल मे ‘आउटस्पोकन’ होना चाहते है । पिछले चुनाव मे प्रदेश—२ मे कम्यूनिस्ट का कमजोर अवतरण के पश्चात ‘लङ टर्म स्ट्राटिजी’को मध्यनजर करते हुवे यह भ्रमण हुवा है यु हंग का ।
एसे मे मधेशवादी दलो का जिम्मेवारी बढ जाती है की प्रदेश—२ मे किस शक्ति का आगमन हुवा और किस मकसद से हुवा इस का खयाल रखे । मधेश के नागरिक समाज और पत्रकार चिनी राजदुत के जनकपुर भ्रमण को गंभिरता के साथ ले कर इस पे विमर्श करना चाहिए । जनकपुर और अन्य जिल्लो मे जिस किसी के साथ राजदुत यु हंग का विशेष संवाद हुवा हो उस हरेक संवाद के अंश आम नागरिक के बीच सार्वजनिक होना चाहिए । क्यूँ की नेपाल और चिन के बीच सिर्फ अन्तराष्ट्रिय राजनितिक सम्बन्ध है । जो की सदैव विश्लेषणात्मक होता है ।