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    साहित्यकार तेज प्रकाश श्रेष्ठ का जन्म सन् १९४७ जनवरी ६ को बैतडी में हुआ था, जहाँ इनके पिताजी रामबहादुर श्रेष्ठ एक सरकारी मुलाजिम थे। नेपाली साहित्य में इन्होंने एम.ए. किया है और इनकी प्रकाशित कृतियों को गिनते समय दोनों हाथों की ऊँगलियाँ कम पडÞ जायँगी। कथा, उपन्यास, कविता, लोक साहित्य, लोक संस्कृति, स्थान परिचय, बालकथा, बालचित्र कथा, बाल एकांकी, बाल कविता, बाल नियात्रा, बाल जीवनी, बाल संस्करण इत्यादि विविध विधाओं में रचना करनेवाले तेजप्रकाश श्रेष्ठ आज भी विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से आवद्ध हैं और उनकी लेखनी सरस्वती साधना में सतत सक्रिय है।



हिमालिनी ः आप बाल साहित्य, आख्यान विधा, लोक साहित्य और संस्कृति सभी क्षेत्रों में कलम चलाते हैं। वैसे कबसे और किससे प्रेरित होकर लेखन क्षेत्र में आपने प्रवेश किया –
श्रेष्ठ ः मेरे बडेÞ भाई कृष्णप्रकाश श्रेष्ठ एक अच्छे साहित्यकार हैं, वे बिगत कुछ वर्षों से रसिया में बसते हैं। हो सकता है, मैं उनसे प्रेरित रहा होऊँ। वैसे मैंने स्कूल जीवन से लिखना शुरु किया था। यद्यपि वे उस समय छपे नहीं थे।
हिमालिनी ः नेपाली बाल साहित्य कितना पुराना है – और इसकी आज की अवस्था कैसी है –
श्रेष्ठ ः नेपाली साहित्य के अन्दर बाल साहित्य एक शताब्दी से भी पुराना है। जयपृथ्वी बहादुर सिंह ने बाल साहित्य की शुरुवात की, ऐसा माना जाता है। बाद में महाकवि लक्ष्मी प्रसाद देवकोटा, युगकवि सिद्धिचरण श्रेष्ठ, देवकुमारी थापा, कृष्णप्रसाद पराजुली आदि शर्ीष्ास्थ साहित्यकारों ने इसे समृद्ध किया। आज तो बाल साहित्यको सींचने और संवारनेवाले बहुतेरे हैं।
हिमालिनी ः चार कथा संग्रह और दो उपन्यासों के रचयिता आप आख्यान विधा में भी एक जानीमानी हस्ती हैं। आज नेपाली आख्यान की अवस्था कैसी है – नए प्रयोगों को आप कैसे ले रहे है –
श्रेष्ठ ः नेपाली आख्यान क्षेत्र में भी नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। नए वाद प्रवेश कर रहे हैं। पश्चिमी साहित्य का प्रभाव प्रष्ट है। नए-नए सशक्त लेखक इस क्षेत्र में पदार्पण कर रहे हें। डा. ध्रुवचन्द्र गौतम तो अख्यान पुरुष ही कहलाते हैं। नए प्रयोग उनके उपन्यासों में दिखते हैं। नयनराज पाण्डे, मधुवन पौडेल, कुमार नगरकोटी, ध्रुव सापकोटा, नारायण वाग्ले सभी आख्यान को सँवार रहे हैं। नए प्रयोगों का आना स्वाभाविक है।
हिमालिनी ः लोकसंस्कृति का अभी क्या हाल है –
श्रेष्ठ ः नेपाली लोकसंस्कृति की अवस्था अभी दयनीय है। इसके संरक्षण में कोई आगे नहीं आ रहा। वैसे तो सत्य मोहन जोशी, साफल्य अमात्य, तुलसी दिवस, चूडामणि बन्धु, तेजेश्वर बाबू ग्वंग्व ये सभी लगे हुए हैं- लोक संस्कृति की रक्षा में। नेपाली लोक संस्कृति तथा लोकवार्ता समाज, नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, संस्कृति मन्त्रालय, पुरातत्त्व विभाग- ये सभी इस क्षेत्र में कुछ न कुछ कर रहे हें। मगर इतना ही काफी नहीं है। अभी तो दश पन्ध्र प्रतिशत काम भी नहीं हुआ है। इसे राज्य की ओर से संरक्षण चाहिए। नेता गण को आपसी कलह से फर्ुसत नहीं मिलती, वे विकास का काम कैसे करेंगे –
हिमालिनी ः साहित्य में आजकल उत्तर आधुनिक काल बहुचर्चित है। इस बारे में आप की धारणा क्या है –
श्रेष्ठ ः इस नए बाद के बारे में मैनें भी बहुत सुना है। मगर मेरी कोई स्पष्ट धारणा अभी नहीं बन पाई है। मैं तो रचनाकार ठहरा। रचना करना मेरा धर्म है। मेरी रचना किस वाद के अनुकूल-प्रतिकूल है, यह देखना समालोचकों का काम है। मेरा नहीं। हो सकता है, विकास के क्रम में उत्तर आधुनिक वाद की भी कोई उपयोगिता है, मगर मैं नहीं जनता।
हिमालिनी ः आजकल साहित्यकार राजनीतिक दलों के साथ विशेष घनिष्ठता रखते हैं। साहित्य में राजनीति किस हद तक आप क्षम्य मानते हैं – अभी प्रज्ञा-प्रतिष्ठान में राजनीति की पूंछ पकडÞकर बैतरनी पार करनेवाले तथाकथित प्राज्ञों के बारे में आपकी क्या राय है –
श्रेष्ठ ः ऐसे प्राज्ञ तो घोर अवसरवादी हैं। एक ही साहित्यकार समय की नजाकत को देखते हुए कभी कांग्रेस, कभी एमाले फिर माओवादी और फिर कांग्रेस बनकर मलाई मारते रहते हैं। ऐसे अनैतिक लोग प्राज्ञ बन भी जाएँ तो उससे क्या होगा – उनका कल्याण हो सकता है, मगर साहित्य का कल्याण नहीं होगा। साहित्य किसी राजनीतिक दल का मुखपत्र नहीं होना चाहिए। वैसे तो राजनीति भी समाज का अभिन्न अंग है। साहित्य इससे अछूता नहीं रह सकता। फिर भी राजनीति का प्रभाव बिल्कुल अपरोक्ष रुप में हो तो वहाँ तक क्षम्य है। जैसे विश्वेश्वरप्रसाद कोइराला के साहित्य में देखिए। वे राजनीति में आकंठ डूबे हुए थे। फिर भी उन्होंने अपनी रचनाओं को यथासम्भव राजनीति से दूर ही रखा। साहित्य को राजनीति से एक निश्चित दूरी बनाए रखनी चाहिए।
-हिमालिनी के अतिथि सम्पादक मुकुन्द आचार्य द्वारा ली गई अन्तर्वार्ता)

तेजप्रकाश श्रेष्ठ की प्रकाशित कृतिया“ ः
कहानी संग्रहः- बाँचेका क्षणहरु, संकल्प जिउँदो रहेनछ। कविता संग्रहः- तेस्रो कोण -संयुक्त), मात्र कवितामा बोल्न खोज्छु। लोक सहित्यः- अछामी लोकसाहित्य -लोक संस्कृति नेपाली लोक संस्कति-सम्पदा र परम्परा, स्थान परिचय -अनुसन्धान)ः- स्रि्रौनगढ, शोणीतपुर हो प्राचीन नाउँ। बालकथा संग्रहः- जुनेली साँझ, बूढाको अर्ती, बहिनीको कोसेली। विश्वको बाललोककथा संग्रह खण्ड १ र ५, तिमी पानी देऊ, म फूल दिन्छु, खै मेरो वर्थ डे – भोका डमरुहरु, इखुँचाया, स्वः -नेपाल भाषा), च्बकजभचथ दगकजभच ९व्ः भ्लनष्किज०, अलुजय हा
-नेपाल भाषा), बाल एकांकीः- उपहार के दिने -, स्वप्नलोकका पदचाप
-यात्रा संस्मरण) आदि।

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