प्रथम शैलपुत्री : एेसे करें पूजा, माँ हाेंगी प्रसन्न
१८ मार्च

हिमराज के घर जनम लेकर कहलाईं शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन देवी मां के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। यानि ये नवदुर्गा में दुर्गा मां का प्रथम स्वरूप हैं। इनका नाम शैलपुत्री इसलिए पड़ा क्योंकि इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ था। शैलपुत्री का वाहन वृषभ बताया गया है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं में कमल होता है। हालाकि नवरात्रि में नौ दिनों की पूजा और व्रत का अपना महत्व होता है और हर दिन देवी की आराधना की जाति है। इसके बावजूद प्रत्येक दिन हर देवी की पूजा अपना अलग विधान होता है। आइये आज जाने देवी शैलपुत्री की पूजा विधि के बारे में।
शैलपुत्री की पूजा विधि
कहते हैं कि नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उनके पूजन से जीवन में स्थिरता और शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। यही कारण है महिलाओं के लिए शैलपुत्री की पूजा काफी शुभ समझी जाती है। इसलिए देवी के इस स्वरूप की पूजा किस प्रकार करें ये समझना आवश्यक है। इसके लिए सबसे पहले पूजा के स्थान ठीक से साफ और शुद्ध करें। इसके बाद माता की तस्वीर भी साफ जल से शुद्ध करें, इसके बाद लकड़ी के पाटे पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर कलश रखें और माता की तस्वीर भी स्थापित करें। अब एक मुट्ठी में चावल लेकर माता का ध्यान करते हुए अर्पित करें। इसके बाद मां को चूनर चढ़ायें और लाल रोली की बिंदी लगायें। अंत में मां की आरती करके उन्हें प्रणाम करें।